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________________ प्राकृतिक चिकित्सा गर्भिणी के लिए उचित/अनुचित व्यवहार और प्राकृतिक उपचार डॉ. वन्दना जैन सामान्यतः माँ बनना प्रत्येक स्त्री का सपना होता है। | गहरे श्वांस लेना व छोड़ना) करना चाहिए। हो क्यों न, एक नये जीवन को दान देने का सौभाग्य जो | यदि भ्रमण में सुविधा न हो, तो घर की छत व आँगन उसे प्राप्त होता है। पर गर्भावस्था में माँ को काफी परेशानियों | में ही टहलना चाहिए। (थकावट आने तक)। इसके साथ का सामना करना पड़ता है, किन्तु कुछ सामान्य सावधानियों | ही पारिवारिक कार्य करते हए शरीर को क्रियाशील व से माँ उन परेशानियों को कम कर सकती है। गर्भावस्था के कर्मठ बनाये रखना चाहिए। पारिवारिक कार्य स्वेच्छापूर्वक समय यदि कब्ज हो, तो किसी रेचक दवा का प्रयोग नहीं करते रहने से प्रसव बिना कष्ट के व जल्दी होता है तथा करना चाहिये, इससे गर्भपात तक हो सकता है लेकिन खतरे की आशंका भी नहीं रहती। नियमित रूप से गीली कमर पट्टी और कटि-स्नान लेने से निषेध - गर्भिणी के पेट पर कभी भी मालिश नहीं कोष्ठवद्धता (कब्ज) नहीं रह सकती। इसके सिवा प्रसव करना चाहिए। यदि वह किसी कारण से परिश्रम न कर के पहले दिन तक इन दोनों को चालू रखने से गर्भावस्था सके, तो हाथ पैर की मालिश एक अच्छा विकल्प है। इस में अनेक रोगों से छुट्टी मिलती है। अत्यन्त आसानी से | समय अत्यधिक परिश्रम नहीं करना चाहिए। जल्दी-जल्दी प्रसव होता है। प्रसव का कष्ट, तो अनेक अंशों से गायब हो | चलना, एकाएक उठकर बैठना, बोझ उठाना, अधिक देर जाता है। कटि-स्नान का पानी खूब ठंडा नहीं होना चाहिए। तक खड़े रहना, जल्दी सीढ़ी चढ़कर ऊपर जाना व उतरना, समशीतोष्ण रहना चाहिए। डॉ. नागेन्द्र कुमार जी 'नीरज' | लम्बे डग भरकर चलना, कूदकर कमरे से उतरना, घोड़े की पत्नी डॉ. मन्जु नीरज ने स्वयं की बच्ची के जन्म के | की सवारी, साइकिल चलाना, टेनिस खेलना, नाचना और पहले दिन तक यह उपचार (कटि स्नान व पेट पर गीली | तैरना छोड़ देना चाहिए। इन सब से कभी रक्तस्त्राव व लपेट) लिया, तो प्रसव बिना बाधा के आराम से हो गया। | गर्भपात भी हो सकता है। आठवें महीने के बाद ट्रेन व नाव यदि कटि-स्नान संभव न हो, तो गीली लपेट के ऊपर ऊनी | का सफर भी ठीक नहीं है तथा पैर से सिलाई मशीन लपेट लगाकर भी काम चलाया जा सकता है। इससे ही चलाना भी छोड देना चाहिए। काफी लाभ होगा। हर तरह की जल्दबाजी का काम छोड़ देना चाहिए। गर्भावस्था में प्रतिदिन दो बार स्नान करना चाहिए, | व हर काम को धीरे करना चाहिए। हर काम में अधिकता क्योंकि जीवनी शक्ति की वृद्धि के लिये इससे बढ़कर | से बचना चाहिए। परिश्रम का कार्य करने के बाद, थकावट कोई साधन नहीं है। यदि दोबारा स्नान में असुविधा हो, तो | आने से पहले विश्राम करना चाहिए। विश्राम किये बिना भीगी तौलिया (नैपकिन)से सम्पूर्ण शरीर पोंछ लेना चाहिए। | परिश्रम करना उचित नहीं है। स्नान से पूर्व कुछ देर धूप में रहने व मालिश करने से शरीर प्रतिदिन 20 मिनिट तक शवासन लगाना चाहिए। के खाद्य कैल्शियम आदि लवण आसानी से शरीर में गृहीत आठ घंटे विश्राम आवश्यक है तथा उस समय कमरे की होते हैं। सभी खिड़कियाँ खुली रखना आवश्यक है। यदि हृदय इस समय परिमितरूप से परिश्रम करना नितान्त | कमजोर हो, तो एक महीने तक नहाने के पहले 10 मिनिट आवश्यक है। प्रतिदिन खुली हवा में एक दो किलोमीटर के लिए पाद (पैरों का) स्नान देना उचित है। तक टहल सकें, तो सर्वोत्तम है। इससे मेहनत भी हो जाती आवश्यकता पड़ने पर 10-15 मिनिट भापस्नान दिया है तथा रक्त-संचार में वृद्धि होती है। भूख भी खुल जाती जा सकता है, पर द्वितीय मास के बाद अधिक समय है। पाचन अच्छी तरह से होकर शरीर से मल भली प्रकार | भापस्नान देना उचित नहीं है। इस समय हमेशा प्रसन्न बने से निकल जाता है तथा नींद भी अच्छी आती है। भ्रमण के रहना चाहिए । इसलिए हमारे देश में साध (सादें या पंचामृत) समय श्वांस प्रश्वांस का व्यायाम, दीर्घ श्वसन प्राणायम (लम्बे | की व्यवस्था है। गर्भिणी की मानसिक अवस्था संतान का 20 दिसंबर 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524292
Book TitleJinabhashita 2004 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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