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________________ सुनने की कला सीखें या फिर परिणाम भुगतें प्रश्न : 28 जनवरी 1986, प्रातः 11.38 मिनिट पर अमेरिका के शहर फ्लोरिडा में कौन सी घटना घटी थी? उत्तर : चैलेंजर नामक अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। प्रश्न : 73 वें सेकन्ड के पश्चात् क्या हुआ था ? उत्तर : आकाश में विस्फोट एवं अंतरिक्षयान चैलेंजर सात अंतरिक्ष यात्रियों सहित नष्ट हो गया था एवं अरबों डालर की क्षति । प्रश्न: विस्फोट का कारण क्या था? उत्तर : एक गर्म हवा के पाईप के जोड़ का खुल जाना तथा गरम हवा का ईंधन की टंकी में प्रवेश जिसमें तरल उदजन वायु भरी थी | प्रश्न: प्रमुख कारण क्या थे? उत्तर : अनसुनी करना । सूचना प्रणाली की विफलता । 48 घंटे पूर्व उस जोड़ से गरम गैस रिसने की संभावना पर चर्चा की गई थी, परंतु अंतरिक्षयान की उड़ान से सम्बन्धित सभी तकनीशियों को यह तथ्य नहीं बताया गया था कि तरल उदजन (हाइड्रोजन) में गर्म गैस के प्रवेश से ईंधन की टंकी में विस्फोट हो सकता है। जिन्हें बताया गया था, उन्होंने सुना ही नहीं। कुछ ने सुनकर भी अनसुनी कर दी, क्योंकि जिम्मेदारी किसी को नहीं दी गई। अतः आप जब कोई कार्य कर रहे हैं, तो अच्छी तरह से सहयोगी - भावना से सुनें, अन्यथा दुर्घटना हो सकती है। प्रश्न : सुनना क्यों आवश्यक है? उत्तर : 1. सभी कार्य बातचीत के माध्यम से सम्पन्न होते हैं। 2. अधिकतम सूचनाएँ मौखिक होती हैं। 3. किसी बड़े कार्य को या परियोजना को सम्पन्न करने में कई संस्थाओं का योगदान होता है । तब 18 दिसंबर 2004 जिनभाषित Jain Education International इंजी. धर्मचन्द्र बाझल्य सूचनाओं / आदेशों की बाढ़ सी आ जाती है। कभी अत्यंत महत्पूर्ण सूचना/आदेश भी मौखिक हो जाते हैं । 4. आप जो करने जा रहे हैं उसका अच्छा या बुरा परिणाम, सफलता एवं असफलता आपके सुनने की क्षमता पर निर्भर करेगी। 5. आपके सुनने की कला तथा क्षमता का प्रभाव दूसरों पर भी पड़ेगा। आपकी संस्था की कार्यकुशलता / दक्षता पर भी प्रभाव पड़ेगा । 6. आर्थिक लाभ या हानि भी हो सकती है। प्रश्न: हम अच्छी तरह एकाग्रचित्त होकर क्यों नहीं सुनते हैं? उत्तर : हमारे ग्रहण करने की क्षमता ठीक नहीं है । सुनते समय हमारी इच्छाएँ, भ्रम, आकांक्षाएँ, भावुकता, मान्यताएँ, आवश्यकताएँ, ईर्ष्या, पूर्वाग्रह, उतावलापन इत्यादि अनेक अनजाने कारण बाहर आने को, विस्फोट करने को तैयार रहते हैं । अतः हम सुनने की अपेक्षा बोलना आरंभ कर देते हैं । 2. हमें लिखने-पढ़ने एवं बोलने की कला सिखाई जाती है। भाषण प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं, किन्तु सुनने की कला प्रतियोगिता पर कम ध्यान दिया जाता है। I 3. हम अपने आपको ज्ञानी समझते हैं । श्रोताओं के मध्य अपना प्रभाव जमाने हेतु हम बीच में बोलकर ज्ञान बघारने लगते हैं। यह हमारा अहं है। 4. सोचने की गति बोलने की गति से कई गुनी अधिक होती है। दो शब्दों के अंतराल में हम सपना देखने लगते हैं। पूरी बात सुनने का धैर्य नहीं होता है। हम अधूरे कथन पर ही अधीर हो जाते हैं और बीच में बोलने लगते हैं । 5. हमारी मानसिकता, पूर्वाग्रह, संस्कार, अल्पज्ञान, अहम्, अंधविश्वास इत्यादि सभी सुनने में आड़े आते हैं। 6. तनावग्रस्त होने के कारण हम अच्छी तरह से For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524292
Book TitleJinabhashita 2004 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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