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________________ मेरा कनाडा प्रवास पं. राकेश जैन पर्वाधिराज पर्युषण पर्व पर धर्म प्रभावना हेतु इस बार श्री | रूचि जाग्रत की, जिसका फल ये हुआ कि पर्युषण पर्व के बाद दि.जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर की ओर से विदेश कनाडा | कई लोगों ने विशेष कक्षा लगाकर जैन धर्म शिक्षा भाग - 1 में जाने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ। जैन धर्म को जानने एवं समझने | बड़े ही उत्साह से भाग लिया और पंक्तिशः परिभाषाओं को वाले तथा पर्युषण पर्व पर कुछ पुण्यार्जन करने के इच्छुक जैन लोग अच्छी तरह याद भी किया। कार्ड पर चौबीस तीर्थंकरों के नाम विदेशों में भी हैं, जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई। जैसा कि मैंने | और चिन्ह लिखकर ऑफिस ले जाते थे और जैसे ही समय कनाडा के विषय में गुरु मुख से और अन्य बड़े उम्र के लोगों से मिलता उसे बार बार देखते और याद करते थे। वहाँ पर लोग सुना था, उसको वैसा ही पाया। जैसे ही मेरा हवाई जहाज कनाडा | ज्यादातर सर्विस करते हैं, बिजनेसमेन बहुत कम हैं। दिन के 10के सुन्दर शहर टोरन्टो में उतरा उसके ठीक 10 मिनट पूर्व ही | 15 घण्टे तक इनका ऑफिस वर्क होता है। जिसको ये बड़ी धरती का जो दृश्य मैंने ऊपर से देखा तो मन आह्लादित हो गया, | ईमानदारी एवं कर्त्तव्य निष्ठा से करते हैं। तथा सप्ताह में दो दिन सुन्दर सी हरियाली के बीच पंक्ति बद्ध मकानों एवं रोड पर चलने । शनिवार और रविवार का अवकाश होता है, जिस दिन लोग बड़ी वाली अनुशासित गाड़ियाँ, मध्य में हरे पानी की बड़ी-बड़ी झीलें । संख्या में मंदिर आकर पूजन-पाठ और स्वाध्याय करते हैं। तथा आसमान को मानो छूने के लिए आतुर कुछ ऊँची अट्टालिकाएँ। वहाँ पर लोगों ने सम्यक्प्रकार से पूजा विधि को एवं पूजा मन को प्रभावित कर गयीं। 25 दिन के इस छोटे से प्रवास में जो के अर्थ को जानने के प्रति भी अत्यंत रूचि दिखाई। उनको जब अविस्मरणीय एवं प्रभावक कुछ संस्मरण हैं उनको मैं आपके | पूजा को बोलने की एवं करने की विधि तथा अर्थ समझाया तो सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ। .. उन्हें पूजा के प्रति और अच्छी रूचि जगी। वहाँ का मंदिर जैन मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, उसमें भारतीय संस्कार होने से वे लोग संगीत प्रिय हैं। अतः दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों की प्रतिमाएँ अलग- प्रतिदिन पूजन एवं प्रवचन के बाद एक धार्मिक या आध्यात्मिक अलग वेदियों पर विराजमान हैं। जैन नाम से एकता के सूत्र में बंधे भजन हारमोनियम के साथ सुनना ज्यादा पसंद करते हैं और फिर उस समन्वयक समाज के इस सौहार्द पूर्ण प्रयास को देखकर हृदय | उसे आँखें बंद करके दोहराते भी हैं। गदगद हो गया। जाने से पहले कई तरह के संदेह मन में थे कि पता नहीं, ___वहाँ श्रावकों की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगी कि खान-पान वहाँ लोगों का कैसा होगा और मेरे नियम पल पायेंगे मंदिर का पूरा काम यहाँ तक कि झाडू लगाने से लेकर बर्तन साफ | या नहीं। परंतु मुझे यह बताते हुए बड़ी खुशी हो रही है कि करने तक का काम श्रावक स्वयं करते हैं। जितने लोग मेरे सम्पर्क में आये उनमें से कोई भी माँस-अण्डा या शाम को प्रवचन का समय 7:30 होता था। 7:25 तक | मछली नहीं खाते थे और शराब को भी स्पर्श तक नहीं करते थे। कोई नहीं दिखता, परंतु जैसे ही 7:30 होते, चारों ओर से लगभग पाश्चात्य देशों में रहकर भी शाकाहार के प्रति इतनी जागति अत्यंत 80-100 किमी. की दूरी से निर्धारित समय पर सभी साधर्मी बंधु सराहनीय है। आ जाते थे। वहाँ यद्यपि श्रोताओं की संख्या ज्यादा नहीं होती थी, वहाँ की सरकार ने मंदिरों और घरों को बहुत अच्छी परंतु जितने भी आते थे, बड़ी ध्यान पूर्वक बात को सुनते और | सुरक्षा प्रदान कर रखी है। यदि थोड़ी सी भी आग लग जाए या समझते थे तथा बाद में प्रश्नोत्तर भी करते थे और थोड़ा बहुत जीवन | धुआँ निकलने लगे तो तुरंत ऊपर उसका सायरन बजने लग जाता में उतारने का प्रयास भी करते थे। है, जिससे तत्संबंधी सुरक्षादल तत्काल वहाँ बचाव कर सके। मुझे आश्चर्य इस बात का हुआ कि मुझसे पहले वहाँ कई | सुरक्षा कर्मियों को अनिष्ट की शंका न हो। यदि कोई अपरिचित बड़े-बड़े विद्वानों के आध्यात्मिक प्रवचन हो चुके थे। परंतु उन | व्यक्ति मंदिर को आकर खोलने के बाद उसके कोड वर्ड को नहीं श्रोताओं को प्रारंभिक पाँच इन्द्रिय, चार कषाय, पाँच पाप और चार | दबाये तो भी मंदिर में जोर जोर से सायरन बजने लग जाता है। गतियों का भी ज्ञान नहीं था। मुझे यह समझ में नहीं आता है कि | इससे चोरी आदि का डर नहीं रहता है। पाप, कषायें एवं इंद्रिय निग्रह का ज्ञान कराये बिना आत्मा का वहाँ सब्जियों की दुकानों पर और किराने की दुकानों पर चिन्तन और चर्चा भला कैसे हो जाती होगी, क्योंकि जैसा पण्डित | भी बहुत सफाई और शुद्धता का ध्यान रखा जाता है। यदि किसी दौलतराम जी ने कहा है कि - 'बिन जाने तें दोष गुणन को कैसे | फल या सब्जी में कीड़ा लगा हुआ मिल जाए या किसी दुकानदार तजिये गहिये।' परिणामत: उन लोगों के मन में स्वाध्याय की | पर चूहा घूमता दिख जाए तो उस दुकान पर बड़ा भारी जुर्माना नवम्बर 2004 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524291
Book TitleJinabhashita 2004 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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