SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विलय करने की घोषणा कर दी। परंतु एक हिस्से पर पाकिस्तानियों। शीघ्र बनने दे। ने अनधिकृत कब्जा बना ही लिया और शेष सम्पूर्ण काश्मीर भारत | | यहाँ का जम्मू शहर सम्पूर्ण रूप से भारतीय परिवेश में का हिस्सा हो गया। हालांकि संविधान में धारा 370 ने जहाँ | रचा-पचा है। रघुवंशी राजा जाम्बुलोचन द्वारा बसाये जाने के काश्मीरियों को विशेष दर्जा दिया वहीं पाकिस्तानियों ने मुस्लिम | कारण जम्मू कहलाया। प्रत्येक समाज के लोग जम्मू में भारतीय बहुलता के कारण साजिशन धार्मिक भावनाएँ भड़काए रखकर संस्कृति का निर्वाहन करते हैं। एक श्री विनोद कुमार जैन से जम्मू और सीमा पार से घुसपैठ कराकर भारत में अशांति बनाए रखी जो की अकादमी के सम्पादक श्री श्यामलाल रैणा ने परिचय कराया आज तक बरकरार है। यही नहीं पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों ने तो ज्ञात हुआ कि जम्मू में पाँच सौ स्थानक वासी जैन परिवार हैं विगत 50 वर्षों से अधिक की इस अवधि में काश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय | जिनके उपासरे (चैत्यालय) भी हैं। श्वेताम्बर जैनों के भी 50 घर मुद्दा बनाने के भरपूर प्रयास किए और इसी मुद्दे को वे सत्ता पर | हैं और उनके दो जिनालय हैं, परंतु मूल दिगम्बर जैनियों के ने के लिए जनभावना भड़काने में मददगार मानते केवल चार घर हैं और दिगम्बर जैन मंदिर न तो जम्मू में हैं और न हैं। जो भी हो आज लाखों फौज काश्मीर में लगाए रखकर वर्षों से | ही श्रीनगर में । यह आश्चर्य जनक था। वस्तुत: जम्मू में दिगम्बर जो समस्या निराकृत नहीं हो रही है मेरी राय में सभी देशवासियों | जैन मंदिर की स्थापना नितांत आवश्यक है। हाँ, श्रीनगर के को एक सा कानून बनाकर वहाँ भी सभी को जमीन खरीदने, | अमीराकदल मोहल्ले में विशाल जैन फैक्ट्री वालों के घर में जिन बेचने, उद्योग चलाने के लिए और बेरोजगारों को काम देने की | विम्ब दर्शन अवश्य उपलब्ध हो सकते हैं। सिखों के गुरूद्वारे और अनुमति देकर समस्या का स्थायी निदान निकाला जा सकता है। ईसाइयों के चर्च हैं। अब धारा 370 की वास्तव में कोई आवश्यकता नहीं रही। यह जानकर हर्ष भी हुआ और विस्मय भी कि जम्मू में उदाहरण के लिए जब तक भोपाल में राजधानी का मुख्यालय | प्राचीन काल में ब्रजभाषा में ही काव्य रचना होती थी। इसमें नहीं था तब तक ऐसी ही समस्या यहाँ भी कमोवेश थीं, पर अब | बुंदेलों के शब्द भी बहुतायत से होते थे। यहाँ की अकादमी से हर दृष्टि से यह एक शांत और संतुलित शहर माना जाता है। यह | प्रकाशित शीराजा का कविता विशेषांक का शुभारंभ की सन् संतुलन बनाकर ही काश्मीर में आतंकवाद की समस्या समाप्त की | 1612 ई. के कवि परस राम की इन पंक्तियों से हुआ हैजा सकती है। सम्प्रदायों का संतुलन ही वहाँ समभाव बना सकता ओइम होत प्रात दिन सांय रजनी, है। वरना यह विडम्बना बहुत कचोटती है कि विगत 5-6 दशकों छिन-छिन अवध घटावे है। से जिस काश्मीर को बचाने के लिए हमारे सैनिक प्रतिदिन किसी बीतत मास बहोर ऋत बरखे, न किसी रूप में कुर्बानी दे रहे हैं वहाँ दफन होने का भी हक फिर घूमत इत आबे है। नहीं? यह 7-8 लाख फौज इस तरह कम करके बचे हुए धन से 75 चित्रगुप्त नगर, कोटरा भारत के ही नहीं उस हिस्से के विकास को भी नई गति मिल भोपाल ४६२००३ सकती है। हालाँकि वोट की राजनीति शायद ही ऐसी स्थिति वहाँ। दुधारू मवेशियों की ५६ नस्लें लुप्त भारत में पाई जाने वाली गाय, भैंस, भेड़ व बकरियों की पिछले करीब ६० वर्षों में लगभग ५६ देशी नस्लें लुप्त हो चुकी हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि पशुओं की नस्लों को लुप्त होने से बचाने की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो देश पर पशुधन संकट के बादल मंडरा सकते हैं। साथ ही इससे सीमांत व मझोले किसानों के लिए पशुपालन मुश्किल हो जाएगा, जो कि उनके जीविकोपार्जन का आज भी गाँवों में मुख्य आधार है। दूसरी ओर, वैज्ञानिकों का कहना है कि यहाँ लुप्त हो चुकी कई नस्लों के पशु आज भी विदेशों में पाए जाते हैं और पशुधन के क्षेत्र में भारत का नाम दुनिया में रोशन किए हुए हैं। रोम की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन के रिकार्ड के अनुसार, आजादी से पूर्व भारत में गायों की ६१ प्रकार की नस्लें पाई जाती थीं, जो अब केवल ३० ही बची हैं। भैंस की कुल १९ नस्लों में से अब १० नस्लें ही रह गई हैं। भैंस व गायों समेत अब तक कुल ४० नस्ल देश से लुप्त हो चुकी हैं। इसी प्रकार भेड़ की ४९ में से ४२ और बकरी की २९ में से २० नस्लें बची हैं। देश में पाए जाने वाली अन्य कई पशुओं की नस्लें भी कम हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे और मझोले किसानों के लिए पशुधन उनके जीविकोपार्जन साधनों का अहम हिस्सा है। देशी नस्लों के पशु उनके लिए सस्ते व सुलभ तथा साधारण परिवेश में आसानी से पाले जा सकते हैं। . रोम के खाद्य एवं कृषि संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत से इतनी अधिक नस्लों का लुप्त होने का मुख्य कारण नस्ल सुधार सिस्टम में पशु प्रबंधन की शुद्धता से किसान का अनभिज्ञ होना है। आजाद सिंह, करनाल नवम्बर 2004 जिनभाषित 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524291
Book TitleJinabhashita 2004 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy