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________________ आती है एवं किंकर्तव्यविमूढ़ होकर अन्त में आत्महत्या तक क्रोध का प्रतिपक्षी भी कर लेता है। अथवा दूसरे व्यक्ति की हत्या भी कर देता __1.एक लोकोक्ति है कि ठंडा लोहा गर्म लोहे को काटता है। प्रयोग करने पर इसकी सत्यता स्वयं प्रमाणित होगी। 8.प्रतिकार के अभाव में एवं क्रोध का प्रभाव नहीं होने ___2. अपने वक्तव्य को बहुत ही मधुर एवं धीमे स्वर में : पर व्यक्ति के अन्दर घुटन होती है फलस्वरूप वह पागल बोलिए। अथवा अर्धविक्षिप्त भी हो सकता है। 3. ऐसे प्रमाण दीजिये कि सामने वाले को उसकी 9.गर्भवती स्त्री के क्रोध के कारण गर्भस्थ शिशु विकार गलती का स्वयं ही अहसास-अनुमान हो सके। ग्रस्त हो सकता है। गर्भपात भी होने की संभावना रहती है। 4. अपनी बात पर कायम रहते हुए कई बार बोलिए। 10.सामान्य क्रोध करने वाला व्यक्ति शीघ्र शान्त हो जाता है एवं अपने में ही पश्चताप करता भी है। तीव्र क्रोध 5.धीमी, ठंडी मधुर वाणी का प्रभाव तीव्र एवं दीर्घ दीर्घस्थाई, उन्मादी, ध्वंसप्रवृति कराने वाला होता है। किसी स्थाई होता है। क्रोध तो विरोधी पैदा करता है। का कोई उपदेश नहीं मानता ऐसे व्यक्ति के द्वारा शक्ति के 6.कर्मचारी को वेतन देने के अतिरिक्त उसके संकट, दुरुपयोग से स्व-पर का विनाश ही होता है। .. कष्ट के समय यथोचित सेवा की व्यवस्था भी कीजिये। वह 11.अकेला, असहाय, बेसहारा, लाचार, कुंठित व्यक्ति आजीवन आपका विश्वस्त रहेगा। कृतज्ञ बना रहेगा। क्रोध के द्वारा अपने प्रति लोगों का ध्यान आकर्षण करना क्रोध का मुख्य प्रतिपक्षी, 'क्षमा' चाहता है, साथ ही अपने अभिमत एवं व्यवहार का समर्थन ___ इस अद्भुत गुण को शक्तिशाली ज्ञानी व्यक्ति ही धारण भी चाहता है, पर मिलता कुछ नहीं। फलतः उसकी शारीरिक करता है एवं जीवन भर प्रयोग करता रहता है। विश्व में : एवं मानसिक दोनों ही स्थितियाँ और कमजोर हो जाती हैं। महापुरुषों में यही गुण प्रधान रहता आया है। खीझ के मारे परिवार-परिजन के साथ अपना भी सर्वनाश कर लेता है। 1.समतारूपी शीतला से ही क्रोध शान्त रहता है। पर के क्रोध को भी शान्त किया जा सकता है। ___ 12.क्रोध से पतली रक्तवाहिनी नसें रक्त का दबाव बढ़ने के कारण फट जाती हैं परिणाम स्वरूप कोई घातक 2.सामने वाला व्यक्ति क्रोध करे, गाली भी दे और आप रोग हो जाता है या मृत्यु हो जाती है। प्रभावित नहीं होवें तो उसे मजा ही नहीं आयेगा। कुछ समय के पश्चात स्वयं ही लज्जित हो जाता है। क्रोध के कारण 13. मनोवैज्ञानिक केप्रान एवं सेडोक ने बताया है कि उसी का अनिष्ट होता है। गाली से उसी का मुख एवं मन क्रोध के कारण मस्तिष्कीय हार्मोन में कमी आ जाती है। मैला हुआ, आपके शरीर व मन का कुछ भी नहीं बिगड़ता एसिड-केमिकल की मात्रा ही घट जाती है और मस्तिष्क के एमीगडल, टेंपोरल लोब, लिम्बिक सिस्टम आदि के विकृत होने पर व्यक्ति की आकृति वीभत्स, कुत्सित एवं 3. तलवार के वार से बने घाव भी मिट जाते हैं पर भयंकर हो जाती है और सामूहिक विध्वंसात्मक हिंसा के वचनों के प्रहार से बना वैर भाव भवान्तर तक साथ चलता कार्य कर देता है। ऐसा व्यक्ति का अपने आप का नियंत्रण है। इसी भव में समझौता, समर्पण, क्षमा याचना, क्षमादान ही पूर्णतः समाप्त हो जाता है। के द्वारा वैर को येन-केन-प्रकरण समाप्त कर ही देना चाहिए। यह बड़ी तीक्ष्ण शल्य है जो अन्तर के अन्तरतम स्थल पर क्रोध के कारण चुभती रहती है। इसका पोषण नहीं शीघ्र ही शोषण कर ही व्यवधान, अवरोध, कटाक्ष, व्यंग, विरोध, तनाव, मनपसन्द | देना चाहिए। क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायों कार्य के नहीं होने पर, अन्य व्यक्ति से उसके सामर्थ्य-बुद्धि में क्रोध को प्रथम में रखने का अर्थ है कि यही सर्वाधिक से अधिक का कार्य की अपेक्षा करना, असफलता, असंतोष, घातक कषाय है। इसको जीतकर क्षमा गुण को प्रकट करने भूख, थकान एवं कमजोरी है। मान, माया, लोभ में व्याघात पर ही आत्मा के शेष अन्य गुण समूहों की प्राप्ति सम्भव हो होने पर भी क्रोध भड़कता है। पाती है। ऐसे गुणवान जीव ही मुक्त हो जाते हैं। है। 12 अक्टूबर 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524290
Book TitleJinabhashita 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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