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गोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर विभिन्न विद्वानों ने अपने- चारित्रोजवल मोहोपशमता संसार निर्वेगता। अपने शोध पत्रों का वाचन किया। जिनकी विषद समीक्षा
अन्तर्बाह्य परिग्रह त्यजनतां धर्मज्ञता साधुता,
साधो-साधुजनस्य लक्षणमिदं तद्वत्सचित्तोभवे॥ पूज्य मुनिश्री के द्वारा होती थी। जिसमें पूज्य क्षुल्लक गम्भीरसागर जी महाराज तथा पूज्य क्षुल्लक धैर्यसागर जी
परमपूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ज्ञान, महाराज भी विभिन्न उद्धरण बताकर लोगों का मार्गदर्शन
ध्यान और तपस्या में रत रहकर हम सभी को मोक्ष का मार्ग करते थे। एक ऐसी ही गोष्ठी अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह
निरन्तर दिखाते रहें, हमारे जीवन में सद् संस्कारों को विकसित में श्रावकाचार पर सूरत में होने जा रही है, जिससे समाज
करते रहें। उनकी चर्या तथा चर्चा का मार्गदर्शन पाकर हम के अनेक व्यक्ति लाभान्वित होंगे। श्रावक संस्कार शिविर,
सभी सच्चे मुनिधर्म के प्रति श्रद्धालु बनें, हमारा तनाव कम पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव, अनेक मण्डल विधानों
हो तथा हम सभी को सद्धर्मवृद्धिरस्तु' का आशीर्वाद सदैव का आयोजन तथा सांगानेर में मर्तियों का निकालकर दर्शनार्थ | प्राप्त होता रहे, यही पूज्य मुनिवर से कामना करते हैं। जनता के समक्ष लाना, एक महान तपस्वी, संत के पुरुषार्थ
सत्य, अहिंसा सदाचारमय जिनकी अमृतवाणी है।
ज्ञान, ध्यान का अतुलित बल जिनकी सानी है। का साक्षादिग्दर्शन कराते हैं। विद्वानों के प्रति पूर्ण वात्सल्य
श्रमण परम्परा के मुनियों में जिनका नाम प्रथम है। भी आपकी महत्वपूर्ण विशेषता है। आपकी चर्या ठीक
परम पूज्य मुनिसुधासागर जी को शत बार नमन है। इसी मार्ग का प्रतिबिम्ब जान पड़ती हैदेहे निर्ममता गुरोः विनयता नित्यं श्रुताभ्यासता
सनावद (म.प्र.)
विचार करें इस चातुर्मास में
डॉ. ज्योति जैन चातुर्मास के चार माह साधु संघ, आर्यिका संघ, त्यागी | वितरण की प्रवृति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसी तरह वृन्द, वर्षायोग के लिए एक ही स्थान पर रहते हैं। इन चार | पोस्टर, बंदनवार और बड़े- बड़े होर्डिंग्स से चातुर्मास का महीनों में ज्ञान और धर्म की अविरल धारा बहती है। श्रमण | पूरा क्षेत्र घिर जाता है। सोचिए? इन सब प्रचार सामग्री से संघ का यह समय स्वकल्याण का तो होता ही है साधना, ] पर्यावरण पर कितना असर पड़ता है। समस्त प्रचार सामग्री चिन्तन, मनन का भी होता है। श्रावकों को भी उपदेश व | कट-फट कर धूल-धूसरित हो पुरानी पड़ बेकार हो जाती चिन्तन से एक दिशा मिलती है। जरा विचार करें इस पहलू | है। कहां तक मंदिर, संस्था के लोग संभाल कर रख पाते पर भी, जो पर्यावरण से संबंधित है। देखें - चातुर्मास के हैं। प्रचार सामग्री हानिकारक रसायनों से युक्त होती है। बढ़ते पोस्टर और उनकी बढ़ती साइज ने मानो चातुर्मास में | इसी तरह चातुर्मास की उपलब्धियों पर किताबों का छपना एक अघोषित प्रतियोगिता रच डाली 'किसका कितना भी बहुत होने लगा है। मुफ्त में बँटने वाली इन कृतियों से बड़ा पोस्टर।' मंहगे से मंहगा कागज, प्लास्टिक कोटेड घर का क्या मंदिरों की अल्मारियाँ भी भरती जा रही हैं।
और कहीं-कहीं तो प्लास्टिक से बने पोस्टर। प्लास्टिक से | अत्यन्त दुःख तो तब होता है जब इन मुफ्त में वितरित पर्यावरण को नुकसान होता है, यह तो सर्वविदित है ही। कृतियों को अविवेकी श्रावक रद्दी वाले को बेच देते हैं। मंदिरों में भी बढ़ती पोस्टरों की संख्या में किसी भी पोस्टर और जब रद्दी के रूप में इन्हें देखें तो? चातुर्मास में को ज्यादा दिन का समय नहीं मिलता। चातुर्मास में प्रचार | अहिंसा-पर्यावरण पर गोष्ठी, वादविवाद प्रतियोगिता, सामग्री की भी वृद्धि होती जा रही है। विभिन्न पोजों के | चित्रकला प्रतियोगिता आदि सम्पन्न होती हैं, पर पर्यावरण भव्य चित्र, कैलेण्डर, पोलिथिन बैग, शॉपिंग बैग, डायरी, | के इस पहलू पर सोचने की फुरसत किसे?.. कीरिंग और भी न जाने कितने आइटम बनने और मुफ्त
पोस्ट बाक्स-20, खतौली-251201 उ. प्र. 10 सितम्बर 2004 जिनभाषित
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