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________________ शरीर की गर्मी निकलनी मुश्किल हो जाती है, लेकिन हवा | वातावरण शुद्ध होता है वायुमण्डल की घुलनशील विषाक्त तेज होने से गर्मी खूब निकलती है प्रातःकालीन ठण्ड या | | गैसें जल से घुल जाती हैं यदि ऐसा संभव न हो तो जंगल, गर्मी के मौसम में 15 से 45 मिनिट तक ठण्डा वायुस्नान | मैदान तथा घर की छत सुविधानुसार काम ताजगी एवं स्वास्थ्य प्रदान करता है। डॉ. नागेन्द्र कुमार जी | नीरज इस्पाती ठंड में भी इसका प्रयोग करते रहते हैं। 6. खुले में वायुस्नान का प्रयोग 5 मिनिट से धीरे-धीरे डॉ. नीरज जी 1996 में बस्सी, जयपुर के प्राकृतिक | बढ़ाते हुए एक-दो माह पश्चात 30-45 मिनिट करें। प्रथम चिकित्सालय के प्रभारी थे उस समय हम 12 बहिनें उनसे | दिन ही अधिक समय वायुस्नान लेने से उपद्रव हो सकते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त कर रहे थे। हठधर्मिता न करें। जनवरी का समय था ठंड बहुत तेज पड़ रही थी इसलिए हम | 7. वायुस्नान लेते समय वायु का तापमान , शारीरिक लोगों के कमरे पर आए और बोले आप लोग इस कमरे को | स्थिति, वायु की गति वायु की आद्रता आदि विभिन्न कब्र की तरह क्यों पैक किए हुए हो। अपने जीवन में स्वच्छ | परिस्थितियों का ध्यान रखें। हठधर्मिता न करें। जब तक हवा तथा सद्विचारों का प्रवेशद्वार कभी बंद नहीं करना | वायुस्नान प्रीतिकर लगे तब तक करें। कंपकंपी न आने पावे। चाहिए। खिड़कियाँ हमेशा खोलकर सोएं तथा सिर को ढककर | कंपकंपी की स्थिति में शरीर को गर्म करने के लिए व्यायाम, तो कभी भी नहीं सोना चाहिए। इस तरह उस दिन उन्होंने आसान, हाथों या सूखे तौलिये से सूखा घर्षण करें। तेजी से जीवन का एक महत्वपूर्ण सूत्र हमें दे दिया था। टहलें या दौड़े। गर्म कपड़ों से शरीर को ढंकें। वायुस्नान की विधियाँ- वायुस्नान का सर्वोत्तम समय 8. अभ्यंतर वायुस्नान की दृष्टि से प्रत्येक मौसम में खिड़की सूर्योदय के दो घण्टे पूर्व तथा एक घण्टे बाद का है, जिसे | | रोशनदान खोलकर अथवा बाहर खुले विस्तृत आकाश के ऋषियों ने ब्रह्ममुहूर्त कहा है। ब्रह्ममुहूर्त में उठने तथा वायुस्नान | नीचे सोना सर्वोत्तम है सिर्फ ठंड के दिनों में करने का स्वास्थ्य तथा ध्यान की दृष्टि से अपना महत्व है। कमरे में सोएं। इस समय मन, चित्त, वातावरण सभी कुछ शांत एवं प्रदूषण | 9. हम सब सिर्फ फेफड़ों द्वारा ही श्वास नहीं लेते हैं। रहित होता है ब्रह्मबेला में ब्रह्मांड किरणें भी प्रभावित करती | बल्कि शरीर का प्रत्येक रोमकूप भी श्वांस लेता है। प्रयोग हैं। ब्रह्म अर्थात स्वास्थ्य इसलिए यह ध्यानियों तथा द्वारा देखा गया है कि शरीर के रोमकूपों को मोम द्वारा बंद स्वास्थ्यार्थियों की बेला है। इस महाबेला में प्रायः लोग बेहोश कर देने पर प्राणी की मृत्यु हो जाती है। इसलिए शरीर पर होकर निंद्रा, आलस्य तथा प्रमाद में पड़े रहते हैं। जिन्हें कपड़े भी सूती तथा सछिद्र हों। पाकिस्तान के एक हृदय रोग स्वास्थ्य तथा धर्म की आकांक्षा है, वे इस समय उठकर | विशेषज्ञ ने खोज की है कि टैरेलिन तथा अन्य संलेषित तन्तु वायुस्नान लें। से बने कपड़े पहनने से हृदय रोग, उच्चरक्तचाप, त्वचा रोग ___ 1. वायुस्नान का अभ्यास गर्मी के प्रात:कालीन | तथा अन्य घातक रोग होते हैं। स्वास्थ्यदायी मौसम से प्रारम्भ करें फिर जाड़े के दिनों में | 10. वायुस्नान के साथ सूर्यस्नान भी लिया जा सकता है। जारी रखते हुए निरंतर करें। प्रात:कालीन सूर्य की किरणों में अल्ट्रावायलेट किरणें होती 2. वृद्ध तथा अशक्त स्वास्थ्य साधक पहले अपने कपड़ों हैं। जो त्वचा के सम्पर्क में विटामिन डी, कैल्शियम तथा को कम करें सछिद्र पतले सूती कपड़े पहनें, जिससे त्वचा फास्फोरस अवशोषित होकर शरीर के लिए उपयोगी बनते का स्पर्श हवा से हो सके। हैं। धूपस्नान तथा वायुस्नान दोनों मिलकर चपापचय (विष ___3. ठंड के दिनों में शरीर जैसे-जैसे बर्दाश्त करने में निष्कासन, स्वस्थ कोषिकाओं का सृजन, आहार का सक्षम हो जाए अपने कमरे में 5-10 मिनिट निर्वस्त्र होकर सात्मीकरण आदि) क्रिया को उत्तेजित तथा उन्नत करते हैं। टहलें खिड़कियाँ, रोशनदान सभी खुले रखें। धूपस्नान व वायुस्नान के समय यदि रोयेंदार सूखे तौलिए या 4. कमरे में 30 मिनिट यह प्रयोग निर्विघ्न सफल हो जाए | हथेलियों व अंगुलियों से घर्षण 30-40 मिनिट किया जाए तो फिर कमरे के बाहर छत मैदान या खुली जगह 5 से 15 | तो स्वास्थ्य के लिए सोने में सोहागा बाली कहावत चरितार्थ मिनिट तक निर्वस्त्र रहने की आदत डालें। होती है। धूपस्नान के समय इन क्रियाओं से शरीर की स्नायुशक्ति 5. जब खुली जगह आधे घंटे तक निर्वस्त्र रहने की | का संचार व्यवस्थित होता है। सभी प्रकार के रोगियों के आदत हो जाए, फिर इसी प्रयोग को झील, नदी, तालाब या | लिए ये क्रियाएं पुनर्जीवन एवं स्वास्थ्यदायक हैं। समुद्र के किनारें करें। सर्वोत्तम जगह पानी का किनारा ही है क्योंकि वहाँ ऑक्सीजन अधिक होने से वायुमण्डल तथा । कार्ड पैलेस, वर्णी कालोनी, सागर (म.प्र.) 24 अगस्त 2004 जिन भाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524288
Book TitleJinabhashita 2004 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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