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आगे मैंने शंका का निवारण करना चाहा कि'चरण' तो जैन | करना भी नहीं छोड़ा। म.प्र. के गुना स्थित जैन तीर्थ का नाम धर्मावलम्बियों के धर्म में ही मानने की परम्परा है, हिन्दुओं में | बजरंगगढ़ है तो उसका नाम भी बदलने की नहीं सोची। देवगढ़ प्रायः नहीं। दत्तात्रय के चरणों का पुराणों में कहीं उल्लेख भी | में, खजुराहो में हिन्दु मंदिर साथ में पूज्य है। सोनागिरी पर तो नहीं मिलता।
कतिपय हिन्दुओं ने नई स्थापना कर अवरोध भी उत्पन्न किया ___ मैंने उनसे ऐतिहासिक पक्ष की बात कही कि जैन शास्त्रों के | पर जैन समाज ने कभी पराया नहीं माना। अनुसार तीर्थंकर नेमिनाथ बारात लेकर जूनागढ़ की राजकुमारी उस दिन जब गिरनार पर्वत पर केवल चढ़ावा ग्रहण करने राजुल को ब्याहने इसी अंचल से जूनागढ़ (पहाड़ के नीचे की | की गरज से कब्जा जमाये गेरूये वस्त्रधारियों ने, केवल हमें बस्ती) आये थे। परन्तु बारात के स्वागतार्थ माँस के कटने वाले | मारने की धमकी के अतिरिक्त हमारे एक भी प्रश्न का उत्तर नहीं पशुओं की, बाड़े की उठी चीत्कार सुनकर नेमि कुँवर का मन | दिया तो तलहटी में आकर वहाँ के निवासियों से हमने चर्चा द्रवित हो उठा और वे पशुओं को मुक्त कराने के उपरान्त स्वयं की। तब ज्ञात हुआ कि कुछ वर्ष पहले (आजादी के तत्काल भी 'ऐसे' जीवन से मुक्ति पाने के लिए बिन ब्याहे, वस्त्राभूषण बाद) यहाँ के अन्य जैन अनुयायियों और हिन्दु धर्मावलम्बियों त्याग, निकट स्थित इसी गिरनार पर्वत पर तपस्यारत हो, मोक्षगामी में यह समझौता हुआ था कि गिरनार पर्वत पर प्रत्येक दर्शनार्थी हुये। राजुल के पिता का दुर्ग जूनागढ़ में आज भी है। को शांति से न केवल दर्शन करने दिये जायेंगे वरन् जयकारा ___ यह भी कि नेमिनाथ और श्री कृष्ण चचेरे भाई थे इसलिए | बोलने पर भी नहीं रोका जायेगा। हिन्दु धर्मावलंबी भी चाहें तो श्री कृष्ण की द्वारिका, यहीं पास स्थित (समुद्र में समाई) मानी | दर्शन कर सकते हैं। तत्कालीन कलेक्टर के उस समझौता बैठक जाती है। भौगोलिक पक्ष यह भी है कि समुद्र के पास स्थित | के दस्तावेज विद्यमान हैं। परन्तु अब स्थिति यह निर्मित हो अरावली पर्वत के इन शिखरों पर बने अन्य जैन मंदिर हज़ारों | चुकी है कि जैन धर्मावलम्बी यहाँ से भयभीत हो अन्यत्र भाग वर्ष पुराने हैं जबकि वैदिक देवी-देवताओं के पाषाण चिह्न | गये। मात्र एक दो परिवार शेष हैं परन्तु प्रतिदिन अनेकानेक जैन आजादी के बाद रखे गये हैं। वहाँ के शिलालेख, राजुल गुफा दर्शनार्थी देश के सुदूर स्थलों से नेमिनाथ की चरण वंदना हेतु और 'सरे सावन' आदि स्थल भौगोलिक प्रमाण प्रस्तुत करने के गिरनार पर्वत की दस हजार सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुँचते हैं लिये पर्याप्त हैं।
और गालियां/धमकियाँ खाकर, मन मसोसकर लौट जाते हैं। सामजिक प्रमाण यह है कि सदियों से सुदूर भारतीय अंचलों वर्षों पहले एक भोपाल के जैन पर प्राणघातक हमला भी किया में गाये जाने वाले लोकगीतों में गिरनार पर्वत पर नेमि-राजुल | गया था। की तपस्या और मोक्ष जाने की परम्परा जीवित है।
जैन समाज को अल्पसंख्यक होते हुये भी, केन्द्र शासन "नेमि पिया ने जो लिया गिरनार बसेरा...." और 'मोरे नेमि गुजरात एवं अन्य कई प्रान्तीय सरकारों ने अभी तक अल्पसंख्यक गये गिरनार-बरस जाओ दो बुंदियाँ...' जैसे लोकगीतों के घोषित नहीं किया (यद्यपि म.प्र. जैसे कई प्रान्तों में जैन अल्प अतिरिक्त राजस्थानी और गुजराती में चर्चित किंवदंतियाँ एवं संख्यक घोषित किये जा चुके हैं) जिससे कि वे अपने धर्म प्रचलित लोकगीत गिरनार के नेमिनाथ को अपने हृदयों में आदि तीर्थों की कानूनी तौर पर सुरक्षा कर सकें। विडम्बना यह है कि काल से बसाये हुए हैं।
जैन अनुयायी अल्प तो हैं ही, शांतिप्रिय, अहिंसक और लोकतंत्र दिलवाड़ा की जीवंत संगमरमरी शिल्पकला में हजार वर्ष से | के नारों, जुलूसों, झगड़ों-झाँसों से बचते रहना चाहते हैं । आपस गिरनार की 'नेमि-तपस्या' और 'राजुल विवाह' के प्रमाण आज | में भी जैन लोग कई फिरकों में बँटे हुये हैं- दिगम्बर, श्वेतांबर, भी दिलों को उद्वेलित किये बिना नहीं रहते। भारत भर में ग्रन्थों तेरहपंथी, बीसपंथी, समैया, परवार, गोलापूरब, गोलालारे और में, जैन आख्यानों में, मंदिरों की भित्ति कलाओं में गिरनार से | अब निश्चयनय-व्यवहारनय आदि तक के खेमे खड़े हो गये नेमिनाथ के मोक्ष जाने की वास्तविकता और पाँचवी टोंक हैं। अब बताइये जिस जैन समाज के काश्मीर से कन्याकुमारी (शिखर) स्थित चरण जैन धर्मावलम्बियों की हार्दिक आस्था और गुजरात से बंगाल तक हर गाँव-पर्वत पर कलात्मक जैन के आदिकालीन संबल हैं।
मंदिर और भव्य तीर्थ अवस्थित हों ऐसे में उनकी सुरक्षा कौन जैन धर्मावलम्बी तो इतने उदार और शांत है कि सदियों से | करेगा? आखिर 'जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली' उक्ति जैन मंदिरों में तीर्थों में अनेक जगह हनुमान, क्षेत्रपाल विराजमान | कब तक चलेगी? हैं पर कभी किसी जैन ने उनको पृथक करना तो दूर, प्रणाम
75, चित्रगुप्त नगर
कोटरा-भोपाल (म.प्र.) 18 जुलाई 2004 जिनभाषित -
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