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________________ दो विसंगतियों से वेदवैषम्य-विरोधी प्रो.हीरालाल जी जैन का | संदर्भ यह मत कर्मसिद्धान्त व्यवस्था के विरुद्ध सिद्ध होता है कि 1. Intersexuality may be defined as the presence of both male and female external and or internal genital organ भाववेद के अनुसार ही अंगोपांगनामकर्म द्रव्यवेद की रचना in the same individual causing confusion in the करता है। अत: उदयागत मनुष्यगति के प्रशस्तत्वादि-वैशिष्ट्य diagnosis of true sex. (D.C.Dutta. Text Book of Gynaecology Including Contraception' Third addition, से द्रव्यपुरुषादिवेद का उदय सुनिश्चित होता है, उसके अनुसार chapter 26- Intersex, Publisher: New Central Book भावपुरुषादि वेद का उदय होता है और क्वचित् विषमभाववेद Agency, 8/1, Chintamoni Das lane Calcutta - 700009) नामकर्म के उदय से विषमभाववेद उदय में आता है। इस व्यवस्था के अनुसार कर्मसिद्धान्त से ही वेद वैषम्य का अस्तित्व ए/2,मानसरोवर, शाहपुरा सिद्ध होता है। भोपाल-462039, (म.प्र.) यह न करें चातुर्मास में एलक नम्रसागर जी दिग्भ्रमित युवा शक्ति को दिशाबोध दें, समाज में छाई। हाँ चातुर्मास में आप इतना अवश्य काम करें कि जैन जड़ता को दूर कर चेतना का प्रवाह करें, कई भागों में विभाजित | समाज के प्रत्येक घर में जैन पत्र-पत्रिकाओं के आजीवन एवं टूटती समाज को प्रेम और वात्सल्य के बन्धन में बांध कर सदस्य बनवा दें ताकि हर माह घर बैठे ज्ञान की अच्छीसमाज का जीर्णोद्धार करें, समाज में सन्त के चातुर्मास की | अच्छी बातें मालूम होगी। जैसे जिनभाषित, संस्कार सागर, यही सार्थकता है। समाज को धर्मध्यान कराना ही धर्म की महिलादर्श, बालादर्श, जैनगजट आदि। पम्पलेट की अपेक्षा सच्ची प्रभावना समझी जा सकती है। अनेक फंक्शनों में ढेर आप 20-25 हजार का साहित्य बुलवा दें ताकि चार माह सारा पैसा खर्च कराना केवल पत्र पत्रिकाओं के आलोचना का समाज साहित्य का अध्ययन करते रहें। आपने खुद देखा होगा विषय है। सन्त के चातुर्मास से समाज को क्या मिला? अध्यात्म, | कि मंदिरों में पम्पलेट रद्दी कागज की कोठरी में डले रहते हैं संस्कार, चर्या, बस हमको यही देना है समाज को। चातुर्मास उनका कुछ भी उपयोग नहीं होता। आशा है सन्त लोग समाज में समाज को हम अध्यात्म दें, संस्कार दें, चर्या दें। यहाँ वहाँ को पम्पलेटों के छपवाने में रुपये खर्च कराने का आग्रह न के कार्यक्रमों में पैसे बरबाद न कर स्थाई पाठशाला फंड तैयार | करें। करें, एवं पाठशाला खोलने पर जोर दें, समाज में स्वाध्याय की - सन्त ने समाज में यदि मृत्यु भोज, रात्रि विवाह, बफर टूटती परम्परा को जीवित करें सारी समाज को सामूहिक सिस्टम बन्द करवा कर पाठशाला, पुस्तकालय खुलवा दिया स्वाध्याय कराएं। तो मैं समझता हूँ इससे बढ़कर चातुर्मास की और कोई सफलता चातुर्मास में छपने वाले कम्प्यूटरीकृत, चिकने कागज, | नहीं हो सकती। चातुर्मास के दौरान युवा पीढ़ी को मर्यादा के चमकते कागज, कई रंगों में रंगीन कागज, मंहगे दामों वाले | क्षेत्र में भी मर्यादित करें। आप उन लड़कियों की एक ड्रेस चातुर्मासिक पम्पलेटों का छपवाना भी बंद करें। हर साल हम | बनवा दें ताकि हर क्लासों में सभी लोग ड्रेस पहन कर आएं, चातुर्मास के पम्पलेटों में इतना पैसा खर्च कर देते हैं उतने पैसे | आप उन लड़कियों को जीन्स के कपड़े पहन कर क्लासों में में एक कॉलेज बन सकता है, सैकड़ों पुस्तकालय खुल सकते | आने की इजाजत न दें। चातुर्मास के दौरान समाज को छहढाला हैं, कई गरीब परिवारों को आजीविका का साधन मिल सकता | एवं रत्नकरण्ड श्रावकाचार ग्रन्थ का अध्ययन अवश्य कराएं है। आखिर उन दो-दो हाथ लम्बे पम्पलेटों को पढ़ता कौन है? | वह भी अध्यात्म के साथ चातुर्मास के दौरान इतना भी ध्यान केवल माली और पोस्टमेन के अलावा? फोन, मोबाइल, इंटरनेट | रखें कि समाज को आगे का चातुर्मास कराने की प्यास बनी के जमाने में इन पम्पलेटों की कतई आवश्यकता नहीं है अतः। रहे। इस तरह की जीवन चर्या समाज में बनाएं। चातुर्मास छपवाना ही है तो हल्के कागज, कम कीमत वाले पम्पलेटों में | समाज सुधार का अच्छा मौका है इसको व्यर्थ न जाने दें, वर्षा काम चला लें। | योग के चार माह के प्रत्येक दिन पयूषण पर्व सा गुजारें। . 16 जुलाई 2004 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524287
Book TitleJinabhashita 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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