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________________ ज्ञान के सागर आचार्य श्री ज्ञानसागर डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन यहाँ में जिस संत को नमन कर अपनी बात प्रारंभ करने | 'तनोमि नत्वा जिनपं सुभक्तया जयोदय स्वाभ्युदयाय जा रहा हूँ वह संत हैं आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज। शकत्या।' आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के गुरु, जिन्होंने सुयोग्य अर्थात् में जिन भगवान को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके शिष्य के वरण का इतिहास रचा और समाधि के पूर्व अपना पद अपने आपके कल्याण के लिए अपनी शक्ति के अनुसार इस त्याग कर अपने शिष्य को निर्यापक-आचार्य बनाकर नमोस्तु | जयोदय महाकाव्य को लिख रहा हूँ। किया और सम्पूर्ण संसार को पद की महत्ता बतायी और बताया वीरोदय महाकाव्य- भगवान महावीर के जीवन चरित कि समाधि की साधना करनी हो तो आधि, व्याधि और उपाधि का वर्णन 994 श्लोंकों में 22 सर्गों में निबद्ध कर वीरोदय से विमुख होना ही पड़ता है। सारे संसार ने देखा कि एक महाकाव्य लिखा गया है। वीरोदय शब्द वीर और उदय, इन दो कृशकाय संत किसतरह अपनी चर्या को निर्दोष बनाकर शब्दों से मिलकर बना है। .. मारणान्तिकी सल्लेखनां जोषिता के पाठ भावना ही नहीं अपितु ___ सुदर्शनोदय महाकाव्य - इसमें स्वदार संतोष व्रती के क्रियारुप में परिणत कर आत्मसुधारकों के लिए दृष्टांत बन रूप में प्रसिद्ध सेठ सुदर्शन की कथा का वर्णन है। इसमें 9 सर्ग जाता है। गुणसुन्दर वृत्तान्त में उन्हीं का लिखा यह पद्य कितना एवं 481 श्लोक हैं। सार्थक प्रतीत होता है ___समुद्रदत्त चरित ( भद्रोदय)- अचौर्य व्रत की प्रभावना नहीं दूसरे को सुधारने से सुधार हो पाता है। बढ़ाने वाली इस कृति में भद्रदत्त द्वारा ढोंगी सत्यघोष के भेद अपने आप सुधरने से फिर सुधर दूसरा जाता है। को खोलकर सत्यमेव जयते की भावना को बल दिया है। इस आत्मसुधार के लिए अन्तिम प्रयास रुप में सल्लेखना का काव्य में 344 श्लोक एवं 9 सर्ग हैं। पालन करते हुए श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने 180 दिन की यम ___दयोदय चम्पू - इसमें मृगसेन धीवर द्वारा अहिंसा व्रत के सल्लेखना धारण की थी। अंतिम चार दिवस वे चतुर्विध आहार पालन की कथा वर्णित है। इस काव्य में सात लम्ब हैं। के त्यागी रहे। ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या (दि.1 जून 1973) को प्रातः 10 बजकर 50 मिनट पर देहोत्सर्ग किया। वे 80 वर्ष के सम्यक्त्वसार शतकम् - इस ग्रंथ में 103 श्लोक हैं थे। जिनमें सम्यग्दर्शन की महिमा बतायी गयी है। आचार्य श्री आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज (पूर्वनाम ब्र. पं.भूरामल ज्ञानसागर जी के अनुसार जी) ने लगभग 500 वर्षों से जैन संस्कृत साहित्य लेखन की सम्यक्त्वमेवानुवदामि तावद्विपत्पयोधेस्तरणाय नावः। विच्छिन्न हो चुकी परम्परा का पुनः प्रवर्तन किया और अपनी सयं समन्तादुपयोगि एतदस्माद्दशां साहजिकश्रियेडतः। लेखनी से प्रभूत साहित्य रचा ,जो इस प्रकार है अर्थात् सम्यक्त्व विपत्तियों के सागर को तैरने, पार करने जयोदय महाकाव्य-28सर्गों में भरत चक्रवर्ती के सेनापति | के लिए नाव है। हम सबके सहज कल्याण के लिये हर दष्टि से हस्तिनापुर के राजा जयकमार एवं उनकी पत्नि सलोचना का | उपयोगी है अत: में उसका ही गुणगान करता हूँ। जीवन चरित्र वर्णित है। यह एक विशालकाय संस्कृत महाकाव्य । मुनि मनोरंजनाशीति-इस काव्य में 80 पद्य हैं। इसमें है जिसे संस्कृत महाकाव्य शिशुपालवध,किरातार्जुनीयम् एवं | दिगम्बर मुनियों एवं आर्यिकाओं की आगमानुकूल चर्या का नैषधीयचरितम् के समकक्ष मानते हुये दि. 3-10-1995 को, | वर्णन है। 'जयोदय महाकाव्य राष्ट्रिय विद्वत्संगोष्ठी' में उपस्थित संस्कृत भक्ति संग्रह - इसमें संस्कृत भाषा में हिन्दी अनुवाद साहित्य के मर्मज्ञ विद्वानों ने उक्त वृहत्त्रयी में जयोदय महाकाव्य सहित 12 भक्तियों को रचा गया है। ये भक्तियां हैं- सिद्धभक्ति, को और जोड़कर 'वृहत्चतुष्टयी' के अभिधान से संज्ञित किया। श्रतभक्ति. चारित्र भक्ति. आचार्य भक्ति. योगिभक्ति. परमगरू यह 20 वीं शती का सर्वश्रेष्ठ संस्कृत महाकाव्य है तथा जैनधर्म- भक्ति, चतुर्विंशति तीर्थंकर, शांति भक्ति, समाधि भक्ति, चैत्य दर्शन को सँजोने वाला 14 वीं शती के बाद का प्रथम महाकाव्य भक्ति, प्रतिक्रमण भक्ति और कायोत्सर्ग भक्ति। है। इसके मंगलाचरण में रचनाकार श्री पं. भूरामल जी ने लिखा हित सम्पादकम्- इस काव्य में 159 श्लोक हैं जिसमें है कि जून जिनभाषित 2004 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524286
Book TitleJinabhashita 2004 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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