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________________ जिज्ञासा-समाधान पं. रतनलाल बैनाड़ा जिज्ञासा : दान के 7 धर्मक्षेत्र कौन से हैं? के शिखर से सुधर्म केवली ने मोक्ष प्राप्त किया। उसी दिन समाधान : 'धर्मोपदेशपीयूष वर्ष-श्रावकाचार' में धर्म के | जम्बूस्वामी मुनिराज को, जब दिन का आधा पहर बाकी था, 7 क्षेत्र इस प्रकार कहे हैं : केवलज्ञान प्राप्त हुआ। जिणभवण-बिंब-पोत्थय-संघसरूवाइं सत्तखेत्तेसु। गंध कुटी में विराजमान होकर उन जम्बूस्वामी भगवान ने जं बइयं धणबीयं तमहं अणुमोयए सकयं ॥ ३०॥ मगध आदि बड़े-बड़े देशों में तथा मथुरा आदि नगरों में विहार किया। इसमें केवली भगवान ने 18 वर्ष पर्यंत धर्मोपदेश देते हुए जिनबिम्बं जिनागारं जिनयात्रा प्रतिष्ठि तम्। लोगों को आनंद प्रदान किया। इसके अनंतर उन केवली भगवान दानं पूजा च सिद्धांत-लेखनं सप्तक्षेत्रकम्॥ ३१॥ का विपुलाचल पर्वत से मोक्ष हो गया। अष्ट कर्मों को नष्ट कर अर्थ : वे सात क्षेत्र इसप्रकार कहे गये हैं : जिनभवन, मुक्त हुए एवं अविनाशी अनंत सुख के स्वामी हुए। जिनबिम्ब, जिनशास्त्र और मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविकारूप चतुर्विधसंघ इन सात क्षेत्रों में जो धनरूपी बीज बोया जाता है, | 2. कवि वीरकृत 'जम्बूसामि चरित' में इस प्रकार लिखा वह अपना है, ऐसी मैं अनुमोदना करता हूँ। विउलइरि सिहरि कम्मट्ट चक्षु । और भी कहा है : जिनबिम्ब, जिनालय, जिनयात्रा, जिनप्रतिष्ठा, दान,पूजा और सिद्धांत (शास्त्र) लेखन ये सात धर्म सिद्वालय सासय सौख्यपत्तु || सन्धि 10, कडवक 24 ।। क्षेत्र हैं। अर्थ : विपुलगिरि के शिखिर पर अष्टकर्मों को नष्टकर प्रश्नकर्ता : सत्येन्द्र कुमार जैन, रेवाड़ी सिद्धालय पधारे और शाश्वत मोक्ष सुख के पात्र हुए। जिज्ञासा : भगवान् जम्बूस्वामी का निर्वाण स्थल मथुरा उपरोक्त दोनों प्रमाणों से भगवान् जम्बूस्वामी का माना जाता है। क्या इनके विपलाचल से निर्वाण के भी कछ । निर्वाणस्थल राजगृही की विपुलाचल पहाड़ी सिद्ध होती है। प्रमाण मिलते हैं? यह भी जानना उचित होगा कि भट्टारक ज्ञानसागर जी ने समाधान : जम्बस्वामी चरित्र सर्ग 12 में इस प्रकार लिखा सर्वतीर्थ वंदना में तथा पं. दिलसुख ने अकृत्रिम चैत्यालय जैन आला में भगवान् जम्बूस्वामी की निर्वाण स्थली मथुरा को माना है। तपोमासे सिते पक्षे सप्तम्यां च शुभे दिने । निर्वाणं प्राप सौधर्मो विपुलाचलमस्तकात्॥११०॥ प्रश्नकर्ता : कामता प्रसाद जैन, मुजफ्फरनगर तत्रैवाह नि यामार्ध व्यवधानवतिः प्रभोः। जिज्ञासा : मोक्षमार्ग प्रकाशक 8वें अधिकार में कहा है उत्पन्नं केवलज्ञानं जम्बूस्वामिमुनैस्तदा ॥ ११२॥ कि, 'समवसरण सभा वि मुनिनि की संख्या कही, वहाँ सर्व विजहर्ष ततोभूमौ श्रितौ गंधकुटी जिनः। ही शुद्ध भावलिंगी मुनि नथे। परन्तु मुनिलिंग धारण तैं सबन को मुनि कहे', तो क्या समवसरण में जो मुनियों की संख्या कही है मगधादि-महादेश-मथुरादि-पुरीस्तथा ॥ ११९॥ उनमें द्रव्यलिंगी भी होते हैं। कुर्वन् धर्मोपदेशं स के वलज्ञान लोचनः । वर्षाष्टदशपर्यन्तं स्थितस्तत्र जिनाधिपः॥ १२०॥ समाधान : तिलोयपण्णत्तिअधिकार 4 में गाथा 1103 से 1176 तक चौबीसों तीर्थंकरों के समवसरण में ऋषियों की ततो जगाम निर्वाणं के वली विपुलाचलात्। संख्या का वर्णन है। यह संख्या मुनियों की नहीं है, ऋषियों की कर्माष्टकविनिर्मुक्तः शाश्वतानंदसौख्यभाक्॥१२१॥ कही गई है। ऋषि शब्द की परिभाषा करते हुए प्रवचनसार में अर्थ : माघ शुक्ल सप्तमी के शुभ दिन विपुलाचल पर्वत कहा है कि ऋद्धि प्राप्त साधु को ऋषि कहते हैं। मूलाचार में भी 22 जून जिनभाषित 2004 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524286
Book TitleJinabhashita 2004 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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