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________________ शरीर, मन और मस्तिष्क को क्रियाशील बनाएँ सुरेश जैन, आई.ए.एस. (से.नि.) हम अपने मन को जीतने की भावना रखें। हारने की अद्भुत प्रक्रिया से कठिन से कठिन खेल को जीतना अधिक प्रवृत्ति को अपने मन से निकाल दें। अपने मन को आशावादी | सरल होता है। हम अपने लक्ष्य के अनुरुप अपनी बुद्धि का बनाएँ। आशावादी प्रवृत्ति महत्वपूर्ण संजीवनी है। आशा और | प्रयोग करें। विश्वास के सहारे हम भयानक तूफान में चट्टान की भाँति अडिग बौद्धिक क्षमता को बढाने के लिए प्रतिदिन अपनी सोच बने रहते है। असफलता, पराजय और दु:खद क्षणों में सहर्ष | एवं कार्यों के बीच के अंतर को जानने और कम करने का मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते है। आशावादिता हमें बहिर्मुखी बनाती | प्रयास करें। अपनी सोच के अनरुप अपने कार्य को करें। हम है। स्वस्थ. प्रसन्न और सफल होने में सहयोगी बनती है। दूसरी | स्वयं का मल्याकंन करें और अपने मस्तिष्क को पैना और ओर निराशा हमें अंतर्मुखी बनाती है। विषाद और अकेलेपन प्रभावी बनाएं। अपने भविष्य की योजनाओं के बारे में सोचें। को जन्म देती है। आशावादी व्यक्तित्व प्रत्येक घटना के सरलता से उन्हें व्यवहार में लाने का भी प्रयास करें। जिस समय सकारात्मक पक्षों पर विचार कर निर्णय लेता है और आगे | यह आभास हो जाए कि अपनी सोच के अनुसार लक्ष्य प्राप्त बढ़ता है। निराशावादी व्यक्तित्व प्रत्येक घटना के नकारात्मक करने में सफलता प्राप्त हो रही है, तब यह समझिए कि अपने पहलुओं का विचार कर निर्णय नहीं ले पाता है और पीछे रह | मस्तिष्क का परा उपयोग हो रहा है। इससे हम अपनी वास्तविक जाता है। योग्यता को समझ सकते हैं और सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने में यदि जीवन में आगे बढ़ना है तो लक्ष्य हमेशा ऊँचा बनाएँ। सक्षम हो सकते हैं। उद्देश्य कभी छोटा नहीं होना चाहिए। योजना भी छोटी नहीं | हम सदैव कोई न कोई रचनात्मक कार्य करते रहें। हम होना चाहिए। छोटे लक्ष्य और छोटी योजना से उत्साह नहीं | सदैव कछ नया सीखने का प्रयास करें। हम अपने मस्तिष्क की जागता है। वे कभी पूर्ण नहीं होते। बड़ी योजनाएं और बड़े । क्रियाशीलता बनाए रखें। हमारा मस्तिष्क व्यायाम से शक्ति प्राप्त लक्ष्य पूरे होते हैं क्योंकि उनके पीछे उत्साह और प्रेरणा का बल करता है, विश्राम से नहीं। जब आप के पास कोई बौद्धिक कार्य होता है। विश्व के प्रख्यात चिंतकों ने यही कहा- ऊपर की ओर | करने को न हो तो ऐसे समय खाली बैठने के बजाय कुछ पढ़ें चलो, लक्ष्य को बड़ा बनाते चलो। या बच्चों को पढ़ाएं। नई भाषा या कोई नया काम करना सीखें। शरीर, मन और मस्तिष्क को क्रियाशील बनायें। अपने | आस-पास की चीजों और घटनाओं को ज्यादा से ज्यादा जानने मस्तिष्क को नियमित रुप से माँजते रहें। बौद्धिक विकास के का प्रयत्न करें। यह भविष्य के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। लिए प्रारंभ में सरल और धीरे-धीरे जटिल प्रक्रिया अपनानी शरीर के प्रत्येक अंग के लिए क्रियाशीलता आवश्यक है। चाहिए। कोई भी काम सीखें या करें। उसकी शुरुआत हमेशा व्यायाम के बिना शरीर सुस्त पड़ जाता है। यदि कुछ मानसिक सरल चीजों से की जानी चाहिए और धीरे-धीरे कठिन चीजों व्यायाम न किया जाए, तो धीरे-धीरे हमारी स्मृति कमजोर हो की ओर बढ़ना चाहिए। इससे मस्तिष्क एक निश्चित गति से | जाती है। दिमाग की धार को पैनी करने के लिए मानसिक काम करता है और उस पर एक साथ अतिरिक्त दबाव नहीं व्यायाम आवश्यक है। परे दिन में आपने क्या किया. किससे पड़ता है। इससे हम कहीं बेहतर ढंग से चीजों को समझ पाते हैं मिले, डायरी में लिखें। मौखिक हिसाब-जोड,गुणा और भाग या कर पाते हैं। करने से स्मृति पटल पर दबाव पड़ता है और हमारी गणितीय एक फुटबाल खिलाड़ी की गेंद सीधे जाकर गोल के पास | क्षमता बढ़ती है। पढ़ने में रूचि है, तो लेखक का नाम, किताब गिरती है। भले ही दूरी लम्बी हो। वायुयान का पायलट आकाश | का नाम और पेज नम्बर याद करने की कोशिश करें। अंताक्षरी में उड़कर हमें रोमांचित कर देता है। यह मस्तिष्क, आँख, हाथ खेलें। दिमाग को करवाएं थोड़ी मेहनत और उसे कुछ नया और शरीर का समन्वित सदुपयोग करने से ही संभव हो पाता | करने को मजबूर करें। नए रास्ते से दफ्तर जाएं, मस्तिष्क को है। हमारा लक्ष्य सही होना चाहिए और लक्ष्य की प्राप्ति में हमारा | 20-30 मिनट शांत रखें और पुरानी बातों को याद करें। कुछ मस्तिष्क, शरीर और हाथ समन्वित और पूर्ण सहयोग दें। इस | कलात्मक करें। घर की सामान्य चीजों को लेकर उनके तरह 18 जून जिनभाषित 2004 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524286
Book TitleJinabhashita 2004 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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