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छोडकर आरोग्य का विचार करने पर भी सिद्ध होता है कि रात्रि | बुद्धिमान् लोग उस समय को नक्त बताते हैं जिस समय एक में भोजन करना अनुचित है।
मुहूर्त (दो घड़ी) दिन अवशेष रह जाता है। मैं नक्षत्र दर्शन के इस तरह क्या धर्मशास्त्र और क्या आरोग्य शास्त्र सब ही | समय को नक्त नहीं मानता हूँ। और भी कहा है कितरह से रात्रि भोजन करना अत्यंत बुरा है। यही कारण है जो
अंभोदपटलच्छन्ने नाश्रन्ति रविमण्डले। इसका जगह-जगह निषेध जैन धर्म शास्त्रों में किया गया है अस्तंगते तु भुंजाना अहो भानोः सुसेवकाः॥ जिनका कुछ दिग्दर्शन ऊपर कराया गया है। अब हिंदू ग्रंथों में
मृते स्वजनमात्रेऽपि सूतकं जायते किल। भी कुछ उदाहरण रात्रि भोजन के निषेध में नीचे लिखकर लेख
अस्तंगते दिवानाथे भोजनं क्रियते कथम्॥ समाप्त किया जाता है क्योंकि लेख कुछ अधिक बढ़ गया है।
अर्थ- यह कैसा आश्चर्य है कि सूर्य भक्त जब सूर्य मेघों से अस्तंगते दिवानाथे आपो रुधिरमुच्यते। ढक जाता है तब तो वे भोजन का त्याग कर देते हैं। परन्तु वही अन्नं मांससमं प्रोक्तं मार्कंडेयमहर्षिणा॥
सूर्य जब अस्त दशा को प्राप्त होता है तब वे भोजन करते हैं।
-मार्कंडेयपुराण स्वजन मात्र के मर जाने पर भी जब लोग सूतक पालते हैं यानी अर्थ- सूर्य के अस्त होने के पीछे जल रुधिर के समान | उस दशा में अनाहारी रहते हैं तब दिवानाथ सूर्य के अस्त होने और अन्न मांस के समान कहा है यह वचन मार्कंडेय ऋषि का के बाद तो भोजन किया ही कैसे जा सकता है? तथा कहा है
किमहाभारत में कहा है कि
नैवाहति न च स्नानं न श्राद्धं देवतार्चनम्। मद्यमांसाशनं रात्रौ भोजनं कंदभक्षणम्।
दानं वा विहितं रात्रौ भोजनं त विशेषतः ।। ये कुर्वन्ति वृथा तेषां तीर्थयात्रा जपस्तपः॥१॥
अर्थ- आहुति, स्नान, श्राद्ध. देवपजन. दान और खास चत्वारिनरकद्वारं प्रथमं रात्रि भोजनम् ।
करके भोजन रात्रि में नहीं करना चाहिए। परस्त्रीगमनं चैव संधानानंतकायकम्॥२॥
कूर्मपुराण में भी लिखा है किये रात्रौ सर्वदाहारं वर्जयन्ति सुमेधसः।
न द्रुहयेत् सर्वभूतानि निर्द्वन्द्वो निर्भयो भवेत्। तेषां पक्षोपवासस्य फलं मासेन जायते ॥३॥
न नक्तं चैव भक्षीयाद् रात्रौ ध्यानपरो भवेत्॥ नोदक मपि पातव्यं रात्रावत्न युधिष्ठिर ।
२७वां अध्याय ६४५ वां पृष्ठ तपस्विनां विशेषेण गृहिणां ज्ञानसंपदाम्॥४॥
अर्थ- मनुष्य सब प्राणियों पर द्रोह रहित रहे। निद्व और अर्थ- चार कार्य नरक के द्वार रूप हैं। प्रथम रात्रि में | निर्भय रहे तथा रात को भोजन न करे और ध्यान में तत्पर रहे भोजन करना, दुसरा परस्त्री गमन, तीसरा संधाना (अचार) | और भी ६५३वें पृष्ठ पर लिखा है किखाना और चौथा अनन्तकाय कन्द मूल का भक्षण करना।॥२॥ "आदित्ये दर्शयित्वान्नं भुंजीत प्राडमुखे नरः'। जो बुद्धिमान एक महीने तक निरन्तर रात्रि भोजन का त्याग
भावार्थ- सूर्य हो उस समय तक दिन में गुरु या बड़े को करते हैं उनको एक पक्ष के उपवास का फल होता है। ॥ ३॥ | दिखाकर पूर्व दिशा में मुख करके भोजन करना चाहिए। इसलिए हे युधिष्ठिर ज्ञानी गृहस्थ को और विशेष कर तपस्वी
इस विषय में आयुर्वेद का मुद्रा लेख भी यही है किको रात्रि में पानी भी नहीं पीना चाहिए ॥४॥ जो पुरुष मद्य पीते
हृन्नाभिपद्मसंकोश्चंडरोचिरपायतः। हैं, मांस खाते हैं, रात्रि में भोजन करते हैं और कन्दमूल खाते हैं
अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीवादनादपि॥ उनकी तीर्थयात्रा, जप, तप सब वृथा है ॥१॥ और कहा है किदिवसस्याष्टमे भागे मंदीभूते दिवाकरे।
भावार्थ- सूर्य छिप जाने के बाद हृदय कमल और
नाभिकमल दोनों संकुचित हो जाते हैं और सूक्ष्म जीवों का भी एतन्नक्तं विजानीयान्न नक्तं निशिभोजनम्॥
भोजन के साथ भक्षण हो जाता है इसलिए रात में भोजन नहीं मुहूर्तोनं दिनं नक्तं प्रवदंति मनीषिणः ।
करना चाहिए। नक्षत्रदर्शनान्नक्तं नाहं मन्ये गणाधिप॥
रात्रि भोजन का त्याग करना कुछ भी कठिन नहीं है। जो भावार्थ- दिन के आठवें भाग को जब कि दिवाकर मंद
महानुभाव यह जानते हैं कि- "जीवन के लिए भोजन है भोजन हो जाता है (रात होने के दो घड़ी पहले के समय को) नक्त
के लिए जीवन नहीं" वे रात्रि भोजन को नहीं करते हैं। कहते हैं। नक्त व्रत का अर्थ रात्रि भोजन नहीं है। हे गणाधिप
"जैन निबन्ध रत्नावली' से साभार
14 जून जिनभाषित 2004
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