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________________ जिनागम सिंधु : आचार्य श्री विद्यासागर जी डॉ. नीलम जैन प्राची में सूर्योदय होने पर प्रकृति ही नहीं, समस्त जगत | अनुबद्ध एक ऐसा महाकाव्य है जिसके प्रत्येक सर्ग की प्रत्येक हर्ष विभोर हो जाता है, केतकी पुष्प जब खिलता है तब कुंज ही पंक्ति में अहिंसा, मैत्री, उत्कर्ष एवं मानवीय मूल्यों का छलकता नहीं समस्त मधुवन सुवास से महक उठता है और जब किसी | निर्झर है तथा प्रत्येक शब्द में औदार्य एवं माधुर्य की उभरती रेखा असाधारण विभूति का इस धराधाम पर अवतरण होता है तब | है, आज तक इस महाकाव्य को अनेक विश्वविद्यालयों ने अपने केवल एक परिवार ही नहीं सम्पूर्ण विश्वउद्यान ही प्रफुल्लित हो | ग्रन्थागार की शोभा बनाया है तथा शोधार्थियों ने दर्जनों लघु शोध उठता है। लोकसंकट के समय तो ऐसे लोकपुरुष का अवतरण | ग्रंथ, शोधग्रंथ लिखकर पी.एच.डी, डि.लिट् सदृश अकादमिक सत्यत: भीषण धूप में तपते रेगिस्तान में विशाल वृक्ष की सघन उपाधियाँ भी प्राप्त की हैं। दर्जनों काव्य सग्रहों के रचनाकार गुरुवर छाँह तुल्य होती है। स्वयं में विविध उपलब्धियों को संजोये मानवता एवं आध्यात्मिकता आज जब विश्व हिंसा की सर्वग्रासिनी ज्वाला से धधक | का प्रेरक अध्याय हैं। गुरुवर के जीवन के सभी रूप स्वयं विभिन्न और झुलस रहा है। तन्त्र संचालिका राजनीति नाना-भरण भूषिता अनूभूतियों से अनुबद्ध एक महाकाव्य हैं। जिसका प्रत्येक सर्ग नर्तकी की भांति अनृत के मंच पर थिरक रही है, इस आपाधापी चरित्र और साधना की गौरव गाथा है, समर्पण का भाव आपके और स्वार्थ की अंधी दौड़ में ऊपर से सजा इंसान भीतर ही भीतर | जीवन की असाधारण विशेषता रहा है। स्वयं के प्रति समर्पण, खोखला हो रहा है, टूट रहा है, ऐसे में संत शिरोमणि पूज्य | सिद्धान्तों के प्रति समर्पण, अपने गुरु के प्रति समर्पण जीवन आचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज युग संस्थापक, क्रांत | विकास में नाना रूपों में प्रकट हुआ है। आपने अपने गुरु द्वारा द्रष्टा, श्रमण संस्कृति के पुरस्कृता, आत्म संगीत के उद्गाता एवं | गृहीत आशीष सहस्त्र गुणित कर अपने शिष्यों को बांटा है। सत्य के महान अनुसंधानकर्ता बन जीवन मूल्यों को अपने जीवन | आध्यात्म प्रहरी, मुक्ति दूत आचार्य श्री ने युवा शक्ति का में आचरण के स्तर पर उतारकर हमें विजय, उत्कर्ष एवं आत्मोत्थान | संयम क्षेत्र में आह्वान कर ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की अनन्त के मार्गदर्शन बन अवतरित हुए, सुखद संयोग ही है। उनका सम्पदा से जन-जन को लाभान्वित किया। वर्तमान में सर्वत्र अवतरण दिवस रहा भी शरद पूर्णिमा सम्पूर्ण स्निग्ध शुभ्र ज्योतिष्मान | आचार्य श्री के शिष्यों द्वारा धर्म की प्रभावना की पताका फहराई चन्द्रिका सम्पूर्ण गगन मण्डल को तो प्रभामण्डित करती ही है| जा रही है। विराट व्यक्तित्व और उदात्त कृतित्व के धनी, सूक्ष्म किन्तु शरद पूर्णिमा की रात में तो न जाने कितनी आरोग्य वर्द्धिनी | चिन्तक, सत्यद्रष्टा ने श्रुत सम्पन्नता से भी अपने शिष्यों को समृद्ध औषधियों का निर्माण होता है। शीतलता एवं संजीवनी प्रदाता | किया और कर रहे हैं । समग्र धर्मों के प्रति सद्भाव, स्याद्वाद से विश्व वंद्य गुरुवर ने अपने सार्वभौमिक अहिंसात्मक घोष से धार्मिक अनुस्यूत माध्यस्थ भाव गुरुवर ने आगमवाणी को जीवन सूत्र एवं आध्यात्मिक जगतीतल पर शंखनाद किया। बनाकर ज्ञान विज्ञान शास्त्र का गम्भीर अध्ययन किया। दर्शन कीर्तिमय और कीर्तिनीय गुरुवर ने दक्षिण को जन्म से शास्त्र के महासागर में अवगाहन किया। कोई विरल विषय होगा और उत्तर को कर्म से एक सीधी रेखा से जोड़ दिया। क्षेत्रगत | जो उनकी प्रतिभा से अछूता हो। विभिन्न विषयों के ज्ञाता, अन्वेष्टा विषमता, भाषागत विविधता को समन्वय एवं सामंजस्य के सूत्र में | एवं अनुसंधाता पूज्यवर अपार ग्रंथ राशि के पाठक ही नहीं स्वयं पिरोकर दिगम्बर वेश धारण करने वाले पूज्य श्री के सास्वत यश रचनाकार भी हैं। जैन शासन का महान साहित्य आचार्य श्री की की व्यापक प्रसिद्धि में श्रमणत्व के साथ-साथ उनकी विद्वत्ता की मौलिक सूझबूझ एवं अनवरत अध्यवसाय का अमृतफल है। कवि भी समान भूमिका है। रचना सातत्व से समृद्ध उनकी तपःपूत | माघ ने कहा हैलेखनी से माँ जिनवाणी के रचना कोष को विधा-वैविध्य की दृष्टि 'तुंगत्वमितरा नाद्रौ नेदं, सिन्धावगाहता। से समृद्ध करने की दिशा में जो उपादेय कार्य हुआ है वह हम ___ अलंघनीयता हेतुरूभयं तन्मनस्विनी॥' सबके लिए महत्तर सौभाग्य और उच्चतर गौरव का विषय तो है सागर गहरा होता है, ऊँचा नहीं, शैल उन्नत होता है, ही, हिन्दी साहित्य भी उनकी प्रतिभा पर नत शीश है, उनकी गहरा नहीं। अतः इन्हें मापा जा सकता है पर उभय विशेषताओं से सार्वतोमुखी प्रतिभा का प्रतिफलन वस्तुतः विस्मयकारी है, उनकी समन्वित होने के कारण महापुरुषों का जीवन अमाप्य होता है। रचनाओं में भाषा शिल्प, अर्थ बोध, भावाभिव्यक्ति समान रूप से | अपने महामंगल कारक वचन सुमनों से आगम माला की उच्छलित है। उनकी सत्यस्पर्शी स्पष्टोक्तियाँ गम्भीर तत्त्व का सरंचना करने वाले गुरु ज्ञान कणों का अर्जन कर रहे हैं। आचार्य प्रतिपादन, सार्वभौम अहिंसा का संदेश उनके विराट व्यक्तित्व का | श्री ने वर्तमान में जो नेतृत्व श्रमण संघ को दिया वह अद्भुत है, सूचक है। आप सदृश मनीषी संत के अवतरण से सुरभारती भी | सुखद है। उनकी निष्पक्ष धर्म प्रचार नीति, उच्चस्तरीय साहित्य महिमा मण्डित हुई है और प्राकृत, संस्कृत के प्राण पुलक उठे हैं। निर्माण, उदार चिंतन एवं विशुद्ध अध्यात्म भाव ने जनमानस के आपकी कुशल लेखनी से अनेक नये तथ्य अनावृत्त हुए। आपकी | विद्वत्वर्ग को भी अपना चरण-चंचरीक बना दिया है। अपनी काव्य मन्दाकिनी में डबकियाँ लगाने वाला व्यक्ति अलौकिक अमृतमयी वागधारा से मानवता के उपवन को सिंचित कर समद्ध आनंद की अनुभूति करता है। 'मकमाटी' विभिन्न अनभतियों से बनाने वाले गुरुवर के चरणों में कोटि-कोटि नमोऽस्त॥ के.एच., २१६ कविनगर, गाजियाबाद -२०१ ००२ • फरवरी 2004 जिनभाषित 17 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.524282
Book TitleJinabhashita 2004 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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