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आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य
'जिनभाषित' का जुलाई 03 का अंक मिला। पहले भी | पत्रिका निरन्तर प्रकाशित हो रही है और इस बीच में दो एक अंक इसके अंक निरंतर मिलते रहे हैं। अध्यात्म, दर्शन, चिन्तन को | देखने को मिले हैं। इस पत्रिका से समाज में कार्यरत विद्वानों लेकर चलने वाली यह पत्रिका अपने आपमें अनूठी है। डॉ. | समाजसेवियों और परम पूज्य संतों के बारे में जानकारी मिलने के संकटाप्रसाद मिश्र ने 'संतप्रवर आचार्य विद्यासागर का कृतित्व | साथ तत्वचर्चा, जिज्ञासा का समाधान, बालवार्ता आदि सभी के एवं व्यक्तित्व लिखा है। मेरी अपनी सोच के अनुसार विद्यासागर | लिए उपयोगी सामग्री प्राप्त होती है । इसके प्रकाशन व सम्पादन के जी को छूना याने 'हिमालय की ऊँचाइयों को छूने' जैसा है। डॉ. | लिए आपको धन्यवाद । साथ ही आपकी सम्पादकीय विशेष रूप श्रेयांसकुमार जैन ने 'सामायिक की प्रासंगिता' में बहुत अच्छी से पठनीय और समाज के लिए मार्ग दर्शनीय होती है। जानकारी दी है। इसको तो सभी लोगों को पढ़ना चाहिए, ताकि वे
आपका
कपूर चंद जैन पोतदार सामायिक की उपयोगिता को समझ सकें। पत्रिका की बोधकथा
टीकमगढ़ (म.प्र.) अच्छी लगी।
अगस्त माह की पत्रिका अन्य प्रतियों की अपेक्षा जल्दी शुभकामनाओं सहित।
मिल गई थी। अस्वस्थ रहने के कारण धीरे-धीरे ही पढ़ पाई। भवदीय
सम्पादकीय लेख सहित सभी लेख अच्छे लगे। व्र. संदीप राजेन्द्र पटोरिया
| जी 'सरल' का चतुर्विध आराधना का पर्व चातुर्मास में आराधनाओं सिविल लाईन्स, नागपुर
का विश्लेपण तथा डॉ. शीतलचन्द्र जी द्वारा लिखित जैन गृहस्थाचार आपकी पत्रिका 'जिनभाषित' (मासिक) मुझे बहुत अच्छी
परम्पराओं का क्रमिक विकास में गृहस्थों के लिए ज्ञानवर्धक लगती है, मैं इसका नियमित पाठक हूँ। सम्पादकीय में आपको
आचारांग सार संक्षिप्त उपयोगी लगा। विशेषतया ब्र. शांति कुमार तर्कपूर्ण टिप्पणीयाँ, सुन्दर और विवेचन पूर्ण लेख, शिक्षाप्रद कथाएँ
जैन के विचार 'सिद्धांत समन्वय सार' शीर्षक मन को छू गया। मैं सभी काफी सराहनीय हैं। आपके प्रयास से यह एक स्तरीय
उनके विचारों से सहमत हूँ। मेरे मन में भी श्रीकृष्ण के प्रति पत्रिका है जो कि हर बार कुछ रोचक लेकर आती है।
(उनके विचारों से) अनेक शंकायें उठती थीं, कि क्या यादव आपका नियमित पाठक | मांसाहारी थे? हिंसक थे? राजुल के पिता के भी क्या हिंसक राहुल मोदी
विचार हो सकते थे? आदि, सो सारी शंकायें निर्मूल हो गईं। द्वारा- श्री एस.सी. मोदी (एडवोकेट)
पुराना बाजार, मुंगावली ब्र. शांति कुमारजी को साधुवाद एवं वंदना। पत्रिका में जिला-गुना (म.प्र.)
कविताओं का अभाव खलता है। पत्रिका में गुरुवर विद्यासागर जी वीर-प्रभु की कृपा से आप सपरिवार आनंद स्वस्थ्य होंगे। के शिष्य संघ के चातुर्मास स्थल की जानकारी प्राप्त कर जिज्ञासा मेरे पास'जिनभाषित' मासिक पत्रिका फरवरी 2002 का अंक है. | शांत हुई । संपादक जी को धन्यवाद। जिससे ज्ञात होता है कि यह पत्रिका का पहला वर्ष था, क्योंकि
ज्ञानमाला जैन इसमें वर्ष एक व अंक एक लिखा है। यद्यपि इसके बाद यह |
ए-332, ऐशबाग, भोपाल
-अक्टूबर 2003 जिनभाषित
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