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________________ पशु बलि का औचित्य? मेनका गांधी कुछ समय पूर्व तमिलनाडु की मुख्यमंत्री को तिरुचिरापल्ली । के मंदिर के पुजारी का काम गांव वालों की दान-दक्षिण से चल में एक मंदिर में 1500 भैसों की बलि देने की बात पता चली। | जाता था। अब मंदिरों के पास ही फल-फूल कौर मिठाई वालों उस समारोह की अध्यक्षता एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने की थी | की दुकानें भी लग गई हैं, जो सिर्फ विशेष अवसरों पर ही खुलती कई अन्य राज्यों की भांति तमिलनाडु में भी पशु बलि को रोकने | हैं। गांवों में मंदिरों को उतना चढ़ावा नहीं आता कि पुजारी अपना का कानून है। अभी तक किसी राज्य ने उसकी तरफ कोई ध्यान काम चला सकें। अब विशेष अवसरों पर पुजारी मंदिर में आने नहीं दिया है। जयललिता ने जिला कलक्टरों, पुलिस अधीक्षकों वाले चढ़ावे को उन्हीं दुकानों पर वापस बेच कर अपनी अतिरिक्त और महानिरीक्षकों की बैठक बुलाई। उस समारोह में भाग लेने जुगाड़ कर लेते हैं। यही नहीं, पुजारी यह भी कहते हैं कि ग्रामदेवी वाले पुलिस अधिकारी को निलम्बित कर दिया और पशु बलि पर | ने उन्हें दर्शन देकर पशु बलि की मांग की है अन्यथा वारिश नहीं रोक लगाने के आदेश जारी किए। यह देश में पशुओं के प्रति । होगी या कोई बड़ा अनिष्ट हो जाएगा। वे बताते हैं कि किस-किस क्रूरता निवारण के प्रयासों को काफी समय बाद मिली एक बड़ी गांव में ग्राम देवी के क्रोध से क्या-क्या विपदा आई। अंधविश्वास सफलता है। के कारण ग्रामीण इस प्रपञ्च में फंस जाते हैं। कई बार पुजारियों सभी आधुनिक समाजों ने बलि की प्रथा को छोड़ दिया | के गांव के साहूकारों से अच्छे सम्बन्ध होते हैं। गांव वाले अपनी है। भारत में तो बीसवीं सदी में यह कम होने की बजाए बढ़ी ही | जमीन या फसल का कुछ हिस्सा गिरवी रख पशुबलि का इंतजाम है। मुस्लिम समाज में मनाई जाने वाली बकरीद पर इतने बकरे | करते हैं। बलि का एक हिस्सा पुजारी को मिलता है, जिसे वह नहीं कटते होंगे, जितने कि हिन्दुओं के मंदिरों में बलि चढ़ाई कसाई को बेच देता है। अगर गांव पर कोई विपदा नहीं आई तो जाती है। बहुत से इलाकों में ग्राम देवता को खुश करने के लिए इसका मतलब हुआ कि पशु बलि से ग्रामदेवी प्रसन्न हो गई। वलि दी जाती है । महाकाली के समक्ष बलि देना तो और भी आम | अगर फिर भी विपदा आ गई तो इसका मतलब हुआ कि पशु बात है। आदिवासी समुदाय इनमें सबसे आगे हैं। यह और भी | बलि पर्याप्त नहीं थी, ग्रामदेवी को प्रसन्न नहीं किया जा सका। दो बुरी बात इसलिए है क्योंकि वे जिन पशुओं की बलि देते हैं उनमें | चार बार ऐसा होने पर यह पशुबलि गांव की 'परम्परा' बन जाती अनेक की गणना तो अब दुर्लभ प्रजातियों में की जाती है। उड़ीसा | है। कई बार अन्य कारणों से भी गांव वाले देवी-देवताओं को में सिमलीपाल के सुरक्षित अभयारण्य में बिना किसी धार्मिक | प्रसन्न करना जरूरी समझते हैं। जैसे घर में पुत्र का जन्म हो, या रिवाज के ही पशुओं को मार दिया जाता है। जहां धार्मिक रिवाज | बेटी के लिए अच्छा वर मिल जाए यासूखे कुएं में पानी आ जाए। के नाम पर ऐसा होता है, उसके पीछे भी मांस विक्रेताओं और | गांव के पुजारी और साहूकार इन बातों को प्रोत्साहन देते हैं ताकि पशुओं की खाल को बेचने वाले तत्वों की पर्दे के पीछे मिलीभगत | उनकी आमदनी बढ़ सके। साहूकार से पैसा लेकर ग्रामीण कर्ज होती है। के भंवरजाल में फंस जाते हैं। बहुधा कुछ और न होने पर वे कुछ वार्षिक समारोह तो ऐसे हैं, जिनमें किसी एक ही | अपनी जमीन को गिरवी रख देते हैं। चूंकि पशु-बलि की घटनाएँ नस्ल के पशुओं की शामत आ जाती है उदाहरण के लिए कर्नाटक ज्यादातर ऐसे समय में होती हैं जो सूखे का हो, या फिर फसल में मकर संक्रांति के दिन लोमडियों की पिटाई की जाती है और पकी नहीं हो तो बेचारे ग्रामीणों के पास अपनी भूमि या फसल के फिर उनको मार दिया जाता है। नाग पंचमी के दिन सांपों की हिस्से को गिरवी रखने के सिवाए और कोई चारा नहीं होता। शामत आ जाती है। लाखों सांप मारे जाते हैं। सपेरे उन्हें बिलों से | अध्ययनों से पता चलता है कि गांवों में किसानों पर लदे ऋण भार निकाल लेते हैं। महीनों बास्केट में बंद कर रखते हैं और नाग | में एक बड़ा हिस्सा तो पशु बलि देने के कारण लिए गए कर्ज का पंचमी के दिन शहरों में घर-घर घूम कर उन्हें दिखाते हैं और दूध । है। कर्जे के भार से किसान की जमीन उससे छिन जाती है उसके पीने को बाध्य करते हैं। हर वर्ष यही होता है और इसका लाभ समक्ष बड़े भूस्वामियों के यहां खेत मजदूर के रूप में काम करने सांपों की खाल के व्यापारी उठाते हैं, जो उनकी खाल उतार कर | के सिवाए कोई विकल्प नहीं बचता। इसलिए पशु बलि से देवताओं बटुए और जूते बनाते हैं। हकीकत तो यह है कि पशुओं की बलि | के प्रसन्न हो जाने की बात एक ढकोसले से ज्यादा कुछ नहीं हैं। देने के काम से व्यापारिक हित जुड़ गए हैं। पुराने जमाने में गांव लेखिका केन्द्र में राज्यमंत्री रही हैं। 24 अक्टूबर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524278
Book TitleJinabhashita 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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