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________________ भिलाई अपहरण काण्ड बनाम कमठ का हृदय परिवर्तन सुरेश जैन 'सरल' गया। पर आचार्य श्री नहीं उठे । कांड के विषय में सामान्य पाठकगण इतना जानते हैं कि । विश्रुतसागर जी एवं ब्रह्मचारीगणों के सहयोग से चौका लगाया 17 अगस्त 03, रविवार को प्रातः (रात्रि) करीब डेढ़ बजे, जब प.पू. आचार्य 108 श्री विराग सागर जी महाराज वसतिका परिसर में ही कुछ दूरी पर, नित्य की तरह, शौच को गये, तब शौच के बाद कुछ दुष्ट जनों ने उन्हें कुछ सुंघा कर बेहोश कर दिया, उनके हाथ साफ कराने आये सेवक श्री अनिल जैन को भी बेहोश कर दिया, फिर दोनों को एक मारूती-वेन में डालकर ले गये। भिलाई से करीब 80 कि.मी. दूर एक तालाब के किनारे, मेंड़ के उस पार, उन्हें फेंक कर भाग गये। उनका भागना ही उनके हृदय परिवर्तन का परिचय देता है, अन्यथा सुबह 3 बजे के धुंधलके में वे आचार्यश्री के सिर पर बड़े-बड़े बोल्डर पटक सकते थे, या पास में रखे खंजर से उन पर हृदय विदारक प्रहार कर सकते थे, परंतु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और भाग गये। इससे सिद्ध होता है कि जिनशासन की कृपा. से उनका हृदय / विचार बदल गया और देश के एक महान् आचार्य के साथ अनहोनी नहीं हो पाई। कुछ माह पूर्व पढ़ने मिला था कि गुजरात में बेड़िया नामक मंदिर--स्थल पर करीब 20 लुटेरों ने रात्रि 11 बजे धावा बोल कर, वहाँ अवस्थित दिगम्बर मुनि के सिर पर घातक वार किये थे और उन्हें खून से लतपथ छोड़ दिया, कुछ कीमती मूर्तियों एवं धर्मपेटी की राशि ले उड़े थे। दिगम्बर मुनियों- आचार्यों के साथ हो रहे ये हादसे समाज और समाजसेवियों के लिए चिंता के विषय बन गये हैं। राष्ट्रीय नेता अपने स्तर पर पुलिस कार्यवाही तो करते हैं, स्थानीय समितियाँ भी कार्यवाही के लिए निरंतर गतिशील रहती हैं, किन्तु अपराधी तत्व पकड़ में नहीं आ पाते। भिलाई और रायपुर सहित अनेक नजदीकी वस्तियों को सहित अनेक नजदीकी बस्तियों को सुबह जब सूचना मिली कि आचार्य श्री खरोरा ग्राम के निकट एक तालाब के किनारे हैं, तो भक्तों को पहुँचने में विलंब नहीं लगा। देखते ही देखते हजारों की संख्या में जैनाजैन लोग इकट्ठे हो गये। तब तक भिलाई समिति की सूचना पर पुलिस अधिकारी भी जा पहुंचे। इस बीच पू. आचार्य श्री ने मौन धारण कर नियम- संलेखना का विचार बना लिया। सामाजिक नेता, विद्वान और पुलिस अधिकारी बार बार प्रार्थना करते रहे कुछ बतला देने के लिए, पर वे मौन लेकर जाप देते रहे। किसी से न बोले, न संकेत किया, पद्मासन में सामायिक में लीन रहे आये । धीरे-धीरे दोपहर होने लगी, भिलाई से पहुँचे ऐलक पू. Jain Education International जब एक बज गया तो युवकों ने गाँव से एक काष्ठ चौकी प्राप्त की और आचार्य श्री को हाथोंहाथ उठाकर वहां से चल पड़े। कुछ भक्तों ने कहा कि ऐसे कहाँ तक चलेंगे और कब तक पहुँचेंगे, अत: कार में ले चलें। चौकी को एक कार में धरा गया तब विश्रुत सागर कार के समक्ष बैठ गये और बोले- वाहन से नहीं चलेंगे। उनका रुख देखते हुए युवकों ने उनका समर्थन दिया और पुनः चौकी पर उठाकर चलने लगे। कुछ किलोमीटर चलने के बाद चौकी के नीचे मोटे बांस लगा दिये गये, फलतः अनेक लोगों को एक साथ पकड़कर चलने की सुविधा हो गई। कुछ दूर ऐसे ही चले । तब तक एक हाथ ठेला लिये आदमी दिखा। लोगों ने उससे वह प्राप्त कर लिया और चौकी सहित आचार्यश्री को उस पर बैठा दिया। हाथ-ठेला रायपुर पहुँचा, वहाँ पू. मुनि प्रज्ञासागर संघ सहित थे। उनके और समाज के अनुरोध से आचार्य श्री को रात्रि विश्राम के लिए वहाँ रोकने का विनम्र प्रयास किया गया। भिलाई के भक्त एक मिनट भी रुकने को तैयार न हुए, वे सब व्याकुल थे। तब तक रायपुर में एक अच्छे हाथ ठेले की व्यवस्था की गई, उस पर काष्ठासन रखा गया और आचार्य श्री को बैठाया गया। उनका मौन और उदासत्व ज्यों का त्यों था । शाम 8 बजे रायपुर से चल कर सुबह चार बजे विशाल जुलूस जो श्रेष्ठ पुरुषार्थ गुरुभक्ति का द्योतक था, भिलाई पहुँचा । वहाँ तो रतजगा हो गया था। यहाँ भी हजारों भक्त आचार्य श्री की प्रतीक्षा में थे । वैद्य, डाक्टर उनके स्वास्थ्य निरीक्षण के लिए हाजिर थे। आचार्य श्री को त्रिवेणीतीर्थ, जहाँ वर्षायोग स्थापित किया गया था, की धर्मशाला के तीसरे खण्ड पर स्थित उनके कक्ष में ले जाया गया और उन्हें अपने तख्त पर बैठा दिया गया, वे सामायिक में ही लीन रहे। लोगों ने पुनः पूछा पर वे मौन सो मौन । रविवार का 'दिन' निर्जला उपवास करा गया था, अतः सोमवार को शीघ्र चौके लगाये गये, भक्त पड़गाहने खड़े हो गये, परन्तु 9.30 से चलकर 12 बज गये, आचार्य श्री आहारों के लिए नहीं उठे, तब भक्तगण उनकी मनः धारणा समझ गये कि मरणांतक अन्न-जल का त्याग न कर बैठें। फोनों की घंटियाँ भिलाई और रायपुर के जैन परिवारों में रात भर बजती रहीं थीं, वार्ताएँ होती रहीं थीं, अतः सुबह तक फोनों और अखवारों के माध्यम से सारे देश को घटना की जानकारी मिल चुकी थी। हर शहर ग्राम के भक्त आकुल व्याकुल थे। - सितम्बर 2003 जिनभाषित 21 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.524277
Book TitleJinabhashita 2003 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size8 MB
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