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________________ झूमते निकट बुलाते बड़े-बड़े दरख्त, पक्षियों की चहचहाटें। भारतीय । की हैं और संपूर्ण भारतवर्ष से हैं। ग्रेजुएट तो सभी हैं ही अधिकांश संस्कृति के गौरव भूत ऐसे ग्राम में कदम रखते ही तन-मन में | पोस्ट ग्रेजुएट हैं। कई स्वर्ण पदक विजेता हैं। उच्च स्तरीय शिक्षा रोमांच दौड़ जाता है। को प्राप्त किए सभी बहनें पूर्ण अनुशासन से एकता बद्ध होकर यहाँ की प्रकृति ही नहीं यहाँ के लोग भी बड़े सीधे-सादे | संस्कृत का अध्ययन कर रही हैं। अध्यापनकार्य भोपाल निवासी हैं । छल प्रपंच, पद-प्रतिष्ठा का इन्हें कोई लोभ नहीं। चोरी, डकैती | प्रोफेसर पं. रतनचंद जी जैन करा रहे हैं। का कोई भय नहीं। महावीर भगवान का अस्तेय व्रत मानो इसी | जब ये 73 बहनें एक ड्रेस में पंक्तिबद्ध होकर निकलती सदलगा ग्राम ने ईमानदारी से पाल रखा हो। गुरु को पालने वाली | हैं, तो लगता है जैन धर्म की प्रभावना का इससे बड़ा दृश्य और गुरुभूमि भी वास्तव में गौरवमयी है। क्या होगा। प्रभात की बेला में साढ़े छह बजे सूरज की सुनहरी ता-तिन ता-तिन नाच नाचती फसलें खेत खलिहानों में। किरणें जब धरती को चूमती हैं तब उन्हीं की झिलमिलाहट में छम-छम छम-छुम चले बैल तो घंटी गूंजे कानों में।। | शामिल हो जाती है प्रतिभा मंडल की झिलमिलाती पंक्ति। सद्यः कुंह-कुंह करके गाए मीठा, तरू के ऊपर कोयलिया। | स्नाता हाथों में चमचमाते चाँदी के पूजन थाल, गंभीर चाल और ऐसे सदलगा ग्राम कोलखकरहर्षित होता सबका जिया॥ | पक्षियों की चहचहाट में जिनवर स्तुति व गुरुभक्ति के सुर मिलाती लहर लहर कर बहती नदियाँ, हवाएं चलती मंद अहा। | हुई जब ये बहनें जिनालय को बढ़ती हैं तो चलता राही भी थमकर धरा सजी दुल्हन सी लगती, आनन् आँचल हरित रहा। धर्म के प्रति अटूट गौरव व गर्व से भर जाता है। ग्राम की गलियाँ लता-गुल्म सब थिरक थिरक कर, हर्ष व्यक्त निज करते हैं। इनकी मृदु-मंजुल वाणी से गुंजायमान हो उठती हैं। दृश्य देख ये मधुर सलोना, अश्रु अविरल झरते हैं॥ | एक विशिष्ट व्यक्तित्व जिसने मुझे प्रभावित किया वह है इस सब विशेषताओं में आर्यिका संघ के चातुर्मास से और | आर्यिका संघ की नेत्री आर्यिका रत्न आदर्शमति माता जी इनकी भी विशेषता आ गई है। संपूर्ण ग्राम में नवनिर्मित मंदिर सहित तीन | प्रच्छन्न योग्यता को भांपकर परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी मंदिर और हैं- कल बसदि, दोडु बसदि, शिखर बसदि एक गुफा | ने इनके कन्धों पर संघस्थ 16 आर्यिकाओं, 14 ब्र. बहनों, 12 मंदिर भी है। भाग्योदय तीर्थ की बहनों और 73 प्रतिभा मंडल की बहनों के दोड्डु बसदि में दोपहर 2-3 बजे तक पूजन विधि की कक्षा अनुशासन का गुरतर भार सौंपा है। आप जिस शहर में, जिस गाँव उसके उपरांत 3-4 बजे तक तत्वार्थ सूत्र, 4-5 बजे रत्नकरंड में, जिस समाज में रहती हैं वहाँ की समाज को एकता के सूत्र में श्रावकाचार की कक्षाएं चलती हैं जिनमें बाल-युवा, वृद्ध सभी बाधंकर चलती हैं। इनकी काया जरूर कृश है किन्तु इस दुबली पूर्ण उत्साह से भाग ले रहे हैं। शाम को शांतिनाथ जिनालय में पतली कृश काया में इनकी दृष्ट पुष्ट आत्मा विद्यमान है। इनकी सामूहिक आचार्य भक्ति और आ. श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा | एक विशेषता यह है कि ये विहार में अपनी छोटी आर्यिकाओं को रचित हिन्दी भक्तियों की कक्षा लगती है, जिन्हें बच्चे बच्चे कंठस्थ आगे रखकर चलती हैं। ये एक माता के समान सभी का ध्यान कर रहे हैं। सप्ताह में एक दिन रविवारीय प्रवचन होता है । सदलगा | रखती हैं। ये बहुत सरल हैं। ग्राम में आर्यिका संघ का प्रवेश बड़े ही धूमधाम से दिनांक आज सदलगा की धरती अपने पुत्र से कह रही है कि 10.7.2003 को हुआ था। चातुर्मास स्थापना दिनांक 13.7.03 | पुत्र! जब से तुम यहाँ से गए हो एक बार मुडकर भी देखा अपनी रविवार को हुई थी। प्रतिभा मंडल शिविर का शुभारंभ 22-7-03 | मातृभूमि को जिस गोद में खेलकूदकर बड़े हुए उस गोद को ऐसा नवमी को पूर्ण उत्साह के साथ हुआ। 12 अगस्त 2003 को | सूना किया कि फिर उस गोद की ओर निगाह तक न उठायी इतना वात्सल्यपर्व श्री अकम्पनाचार्य और श्री विष्णु कुमार महामुनिराज | पराया कर दिया तूने मुझे कि मैं चरण परस के भी काबिल न की पूजन के साथ संपन्न हुआ। श्रावकों ने मंदिर में ही आपस में रही? वत्स, मैं सुनती हूँ तू अब वीतरागी हो गया है । तेरे अंदर से एक दूसरे को रक्षा-सूत्र बाँधकर एक दूसरे से गले मिलकर आपसी अपने-पराये के तमाम भेद समाप्त हो गए हैं। सुन बेटा, मुझे सौहार्द का परिचय दिया। छोड़कर तू सारे देश में विचरेगा तो वीतरागी होकर भी पक्षपाती 4 अगस्त 2003 को श्री पार्श्वनाथ स्वामी का निर्वाणोत्सव कहलाएगा। क्योंकि अब तू श्रमण है और वत्स, श्रमण के लिए मनाया गया। 29-3-03 को चारित्र चक्रवर्ती आ. श्री शांतिसागर समता से बढ़कर कोई साधना नहीं। महाराज जी की पुण्य तिथि पूर्ण धर्म प्रभावना के साथ जोर शोर से मैं तो सुनती हूँ तू इस युग का उत्कृष्ट श्रमण है। उत्कृष्ट मनाने की तैयारियां चल रही हैं। इसके साथ ही 2 अक्टूबर से 11 | श्रमण होकर यह पक्षपात क्यों कर रहा है मेरे पुत्र! मेरा कहना अक्टूबर तक भाषयोदय प्राकृतिक चिकित्सा का शिविर संपन्न | मान एक बार सदलगा आ जा। दक्षिण की राह पकड़ ले। तेरी होने जा रहा है। वर्षायोग में धर्म ध्यान रतसंघ में सत्रह आर्यिकाओं | विरागता भी सुरक्षित रहेगी और मेरी भावना भी रक्षित रहेगी। सहित चौदह बाल ब्र. बहनें हैं। और उनके साथ ही प्रतिभा मंडल की आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत धारिणी 73 बहनें हैं। सभी संपन्न परिवार सदलगा का एक भक्त 20 सितम्बर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524277
Book TitleJinabhashita 2003 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size8 MB
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