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________________ भजन, कीर्तन एवं पूजन की क्रियाएँ अनेक श्रावकों ने सुनी हैं। । श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र पंक्तियों का संस्कृत 2. द्वितीय प्रांगण के प्रथम जिनालय में विराजमान भगवान जतारा (टीकमगढ़) के बड़ेबाबा देवनागरी लिपि में एक नेमिनाथ (बड़े बाबा)के दायें हाथ के पास से मूर्ति भंजकों ने मूर्ति शिलालेख है। प्रत्येक भंजन करने का प्रयास किया था। किंतु उन्हें सफलता नहीं मिली। पंक्ति में तेईस वर्ण हैं। छैनी के निशान आज भी प्रतिमा जी से देखे जा सकते हैं। शिलालेख के ऊपरी भाग 3. क्षेत्र में दशनार्थ पधारे परम पूज्य आचार्य श्री सन्मति में दो हिरण अंकित हैं' सागर जी, आचार्य श्री विराग सागर जी, आचार्य श्री कुमुद नन्दी इससे यह पता चलता है महाराज एवं अनेक परम पूज्य महाराजों एवं माताओं ने इस क्षेत्र कि संवत् 1153 (सन को अतिशयकारी कहा है। 1096) में इस मंदिर का क्षेत्र की ऐतिहासिकता एवं प्राचीनता - नगर जतारा निर्माण करवाया था। छटवीं शताब्दी में स्थापित तंत्र, मंत्र, यंत्र की सिद्धि स्थली रही है। शिलालेख निम्न जंत्र घटा, जंत्र घाटी, जयतारा, सलीमावाद आदि नामों से पूर्व में प्रकार हैयह नगर अलंकृत रहा है। सम्वत् 1153 नगर जतारा से लगी हुई घाटी का पूर्व नाम जंग घाटी था। सदी 13 सौ में गोला नगर जतारा के सुप्रसिद्ध साहित्कार एवं नगर पालिका जतारा के पूवनिषे साधु सिद्ध तस्य पूर्व अध्यक्ष आदरणीय श्री लक्ष्मी नारायण जी शर्मा एडवोकेट ने पुत्री पालदालल्ला सयः श्री जतारा जैन मंदिर की ऐतिहासिकता एवं क्षेत्रीय प्राचीनता का भगवान श्री नेमिनाथ जी वद्ध सुपालता स्व. स्वत्तल वर्णन अपने एक लेख (जंत्रघाटी) (जंत्रघटा) एवं जतारा की पत्थर विभिन्न मति भवति। यह पत्थर भोयरे जी में अभी भी लगा ऐतिहासिकता में लिखा है। हुआ है। 1. 'इसी घाटी में जैन संत शिरोमणि मदन कुमार जी ने | 2. इसी स्थान पर एक प्राचीन मूर्ति के नीचे चरण चौकी तपस्या की थी तथा श्री गुरुदत्त,अनंग कुमार जी क्रमशः द्रोणागिरि | पर एक फीट एक इंच लम्बा एवं 7 इंच चौड़ा एक शिलालेख है। व सोनागिर इसी जंत्र घाटी से लगे और वहाँ उन्होंने धर्म चक्र का इसमें नो इंच लम्बाई एवं (छः) इंच चौड़ाई में 13 पंक्तियाँ है। यह प्रवर्तन किया था।' | शिलालेख सम्वत् 1478 (सन् 1421) का है। जो निम्नानुसार हैउक्त वाक्याशों से स्पष्ट होता है कि नगर जतारा के समीप | 'सिद्ध श्री सम्वत् 1478 कार्तिक वदी 14 सौ में श्री मूल स्थित जंत्र घाटी में परम पूज्य मुनि श्री मदन कुमार जी मुनि श्री राधे कारे गणेश सरस्वती बाल ब्रह्मचारी भट्टारी रत्नकीर्ति टेवा गुरुदत्त महाराज एवं मुनि श्री अनंग कुमार जी ने तपस्या की जो | सरीद्र भट्टारक श्री प्रभू स्वापहित पावन श्री। क्रमश: श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र अहार जी (टीकमगढ़), श्री उक्त विन्दुओं से स्पष्ट है कि जतारा जिन मंदिर जी का श्री द्रोणगिरि जी (छतरपुर) एवं श्री सोनागिरि जी (दतिया) में और | भौयरा जी एवं उनमें विराजमान प्रतिमाएँ आज से लगभग एक अधिक साधना कर, वहाँ से मोक्ष गये हैं। . हजार वर्ष से भी पूर्व की हैं। 2. जतारा म.प्र. के सातिशय भोयरे के संबंध में उन्होंने | 3. प्रांगण नं. 3 के मंदिर क्रमांक 3 के मूल नायक भगवान् आगे लिखा है कि राजा जय शक्ति की मृत्यु सन् 857 ई. में हो | पार्श्वनाथ के पादमूल में प्रतिष्ठित सम्वत् 1044 भी मंदिर जी की गयी थी। वह राजा भी जिन सिद्धांतों का पालन करता था। उसी प्राचीनता को स्पष्ट दर्शाता है। इसी प्रकार मंदिर क्र. एक में विराजमान के समय में जतारा के जैन मंदिर के भोयरे की मूर्तियों की प्रतिष्ठा बड़े बाबा भगवान् श्री नेमिनाथ जी के पादमूल में प्रतिष्ठित सम्वत् हुई। भोयरे के शिला लेखों में सम्वत् 993 का वर्णन है। उक्त | 1210 अंकित है, जो मंदिर जी की प्राचीनता का द्योतक है। वाक्यों से स्पष्ट होता है कि जतारा का भोयरा पूर्व का है और उसमें इस प्रकार श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र जतारा उसमें सन् 857 के पूर्व जिन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हुई थी। विराजमान अतिशय युक्त जिन प्रतिमाएँ अति प्राचीन एवं 3. पृथ्वी वर्मा का पुत्र मदन वर्मा सन् 1130 से 1165 तक | अतिशतकारी हैं। क्षेत्र की समुचित व्यवस्था के लिये एक 35 साल शासक रहा। जतारा के जैन मंदिर द्वितीय का निर्माण भी । प्रबंधकारिणी समिति है। क्षेत्रान्तर्गत श्री जैन नवयुवक संघ (दिव्य मदन वर्मा के शासन काल में किया गया। इससे स्पष्ट है कि मंदिर घोष), जैन महिला समिति, श्री दिगम्बर जैन महा समिति इकाई, जी का द्वितीय भाग का निर्माण सन् 1130 से 1165 के मध्य हुआ जतारा आदि संस्थाएँ भी हैं। जो समाज सेवा एवं क्षेत्रीय विकास में संलग्न रहती हैं। 2. इसी प्रकार श्री ठाकुर लक्ष्मण सिंह गौर ओरछा क्षेत्र से अनेक निर्माण कार्य चल रहे हैं। साधर्मी भाई (टीकमगढ़) ने अपनी कृति 'ओरछा राज्य का इतिहास' में जतारा बहिनों से क्षेत्र की वन्दना कर धर्म लाभ प्राप्त करने हेतु विनम्र जैन मंदिर के सम्बंध में लिखा है निवेदन है। 'जतारा में एक प्राचीन भोयरा है। इस तल घर में दो शिलालेख हैं । पहिला शिलालेख निसाब के पत्थर का है, जो एक श्री गोकल सदन, जतारा फीट डेढ इंज लम्बा, एक फीट चार इंज चौड़ा है। इसमें तीनों जिला-टीकमगढ़ (म.प्र.)472 118 16 सितम्बर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524277
Book TitleJinabhashita 2003 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size8 MB
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