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________________ श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र जतारा जिला टीकमगढ़ कपूर चन्द्र जैन 'बंसल' CBSE श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र के मूलनायक स्थिति - यह । दोनों जिनालय द्वितीय प्रागंण में स्थित हैं। जतारा (टीकमगढ़ म.प्र.) क्षेत्र मध्य प्रदेश के तृतीय जिनालय टीकमगढ़ जिला भगवान श्री पार्श्वनाथ जी- यह जिनालय तृतीय प्रांगण अन्तर्गत टीकमगढ़ में स्थित है। इस जिनालय के मध्य में भगवान् पार्श्वनाथ जी की (म.प्र.) एवं मऊरानीपुर मनोज्ञ एवं आकर्षक वेदी है। जिसमें स्वेत वर्णीय भगवान पार्श्वनाथ (उ.प्र.) सड़क मार्ग के जी की प्राचीन मनोज्ञ प्रतिमा अनेक जिन प्रतिमाओं के साथ मध्य, टीकमगढ़ से विराजमान है। इन्हीं भगवान की यह प्रतिमा मूल नायक के रूप में उत्तर दिशा में 40 कि.मी. होने के कारण इस क्षेत्र का प्राचीन नाम श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन दूर एवं मऊरानीपुर से मंदिर था। 27 कि.मी. दूर दक्षिण भगवान् पार्श्वनाथ जी की वेदी के चारों ओर सात वेदियाँ दिशा में स्थित है। यहाँ और हैं। जिनमें प्राचीन देशी पाषाण की अद्भुत कलाकृति भामण्डल मध्य रेल्वे लाइन के एवं अष्ट प्रातिहार्य सहित एवं कुछ भव्य जिन प्रतिमाएँ स्वेत प्रमुख स्टेशन झांसी, वर्णीय पद्यमासन इन वेदियों में विराजमान हैं। मऊरानीपुर से सीधे एवं श्री भोयरा जी- तृतीय प्रांगण में ही (भगवान पार्श्वनाथ स्टशन ललितपुर से मंदिर के वायीं ओर) अतिशय पूर्ण एक भोयरा जी विद्यमान है। बाया टीकमगढ़ होकर | भगवान श्री पार्श्वनाथ जी जिसमें तीनों ओर प्राचीन देशी पाषाण की अनेक प्रतिमाएँ विद्यमान जाया जा सकता है। यह हैं। जिनकी अद्भुत कलाकृति देवगढ़, खजुराहो की कलाकृति के क्षेत्र जतारा के मोटर स्टेण्ड से मात्र 200 मीटर दूर स्थित है। क्षेत्र सदृश्य है। इन प्रतिमाओं की मनोहारी कलाकृति को देखकर के प्रमुख एवं आकर्षक प्रवेश द्वार पर श्री दि. जैन पार्श्वनाथ मंदिर दर्शक इन प्रतिमाओं को अधिक समय तक निहारते रहते हैं। लिखा मिलेगा। भोयरा जी अतिशयकारी है। क्षेत्र की बन्दना - यह क्षेत्र एक विस्तृत परकोटे में स्थित है, जिसमें 4 जिनालय, एक भोयरा जी, 2 गन्ध कुटी, 2स्वाध्याय चतुर्थ जिनालय सदन एवं तीन प्रांगण हैं। प्रथम प्रांगण में एक सुविधा युक्त धर्मशाला पंचवालयति मंदिर - यह जिनालय द्वितीय प्रांगण चौबीसी तथा एक निर्मल जल से परिपूर्ण कूप एवं जेड पम्प है। जिनालय के तृतीय तल पर स्थित है। जिनके दर्शन करने सीढ़ियों प्रथम जिनालय भगवान श्री नेमिनाथ पर से जाना पड़ता है। इस जिनालय में पंच वालयति, भगवान् । वासुपूज्य (कत्थई वर्ण), भगवान् मल्लिनाथ (कत्थई वर्ण), इस जिनालय में तीन वेदिका हैं। जिनमें क्रमश: भगवान भगवान् नेमिनाथ (श्याम वर्ण), भगवान् पार्श्वनाथ (श्याम वर्ण) नेमिनाथ (श्याम वर्ण), भगवान चन्द्रप्रभ (स्वेत वर्ण) एवं भगवान् एवं भगवान महावीर (श्याम वर्ण) की मनोज्ञ पद्यमासन जिन श्री महावीर स्वामी (कत्थई वर्ण) की मनोज्ञ प्रतिमाएँ पद्यमासन प्रतिमायें विद्यमान हैं। में विराजमान हैं। प्रथम वेदिका में विराजमान भगवान नेमिनाथ ____ द्वितीय गन्ध कुटी- इसी जिनालय के दक्षिणी कोने में जी बड़े बाबा के नाम से सम्बोधत किये जाते हैं। द्वितीय गंधकुटी स्थित है। इसमें भगवान महावीर स्वामी की स्वेत द्वितीय जिनालय वर्णीय पद्यमासन मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है। भगवान आदिनाथ एवं चौबीसी जिनालय-इस जिनालय स्वाध्याय सदन - एक स्वाध्याय सदन द्वितीय प्रांगण में के मध्य में भगवान् आदिनाथ (पीतवर्ण) एक ओर भगवान बाहुवली स्थित है। जिनमें अनेक शास्त्र जी व्यवस्थित ढंग से स्वाध्याय हेतु एवं दूसरी ओर चक्रवर्ती भरत की भव्य खडगासन प्रतिमाएँ विराजमान विद्यमान हैं। द्वितीय परम पूज्य आचार्य श्री विराग सागर जी हैं। इनके तीन ओर चौबीस भगवन्तों की क्रमशः जिन प्रतिमाएँ स्वाध्याय सदन इसी स्वाध्याय सदन के द्वितीय तल पर श्री पंच स्वेत, श्याम एवं कत्थई वर्ण में विराजमान हैं। प्रथम गंधकुटी- इसी बालयति मंदिर के ठीक सामने स्थित है। जिनालय में दायीं ओर एक गन्ध कुटी भी है। जिनमें भगवान | क्षेत्रीय अतिशय - किंवदन्तियों के द्वारा इस क्षेत्र के पार्श्वनाथ जी की श्याम वर्णीय पद्यमासन मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान | सम्बंध में अनेक अतिशय कहे गये हैं, जिनमें प्रमुख अतिशय है इनके पार्श्व में खंडित जिन प्रतिमाओं का एक संग्रहालय है। उक्त | निम्न प्रकार हैं 1. क्षेत्रीय भोयरे जी में देवों द्वारा किये गये नृत्य, गायन, -सितम्बर 2003 जिनभाषित 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524277
Book TitleJinabhashita 2003 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size8 MB
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