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________________ जाए तो क्रोध से आग बबूला हो जाते हैं। क्यों होता है ऐसा ? | बादलों के संघर्ष करने पर मेघों की गर्जना से धरती कांप जाती है निज सन्तान होने पर क्रोध पर नियंत्रण कर लिया अन्य की सन्तान जल में जलन व्याप्त हो जाती है मृदु जल संघर्ष के कारण वज्र हो पर क्रोध से संतप्त हो गये? स्थिति विस्फोटक हो गयी तुम्हारे बच्चे जाते हैं वज्रपात से जन धन की हानि हो जाती है। संघर्ष और का छींटा क्यों आया? निज सन्तान ने अज्ञानता में किया था तो | घर्षण से जल की मृदुलता वज्र रुप धारण कर लेती है। इंद्र धनुष अन्य की सन्तान ने भी अज्ञान अवस्था में। हमारी मान्यता के | युत बादल बरसे, संघर्ष से गरजे, बिजली कड़की। जल वृष्टि हो कारण ऐसा होता है। अज्ञानी को अपराध का दंड नहीं दिया जाता। | तो शीतल वातावरण हो जाता है इन्हीं मेघों के वज्रपात से कई ऐसा विधान है। पागल और बच्चों को दण्ड देने का प्रावधान नहीं धराशायी हो जाते हैं धरा पर। जल जाते हैं, संघर्ष के कारण जल है क्योंकि उनके अपराध अज्ञानता के कारण घटित होने की | जलन की अनूभुति करा देता है । आत्मा का स्वाभाव क्षमा है । जल मान्यता है। निशस्त्र और अबला के लिए भी ऐसा ही विधान है। की शीतलता समाप्त हो जाती है संघर्ष होते ही, ऐसे ही क्षमा भूलते कुत्ते द्वारा काटने पर किसी मनुष्य ने कुत्ते को काटा हो ऐसी घटना | ही वज्रपात होने में देर नहीं लगती। क्रोध के बवंडर के चपेट में नहीं होती। कोई मनुष्य भोंकते हुए कुत्ते को काट ले ऐसा दृश्य | आने वाले की अवस्था भी तूफान में घिरे जहाज जैसी हो जाती देखने सुनने में नहीं आया। अज्ञान दशा के कार्य क्षमायोग्य होते है। आचार्य श्री ने उपस्थित जन समुदाय को सीख देते हुए कहा हैं। बलशाली पहलवान के सामने एक बालक द्वारा ताल ठोकने | कि हमारे पास वह क्षमता है वह शस्त्र है जिससे सबको जीत पर भी बलशाली बालक से द्वन्द्व नहीं करता, अशोभनीय है। सकते हैं । क्षमा में ही वह क्षमता है जो क्रोध के बवंडर को समाप्त बालक अज्ञानी है। अज्ञानी ताल ठोकता है और ज्ञानी लड़ने को | कर सकती है। अग्नि को बुझाने के लिए जल नहीं डाल सकते, तैयार हो जाए दुनिया हंसेगी। क्रोध नहीं आता। क्रोध अज्ञान की | किन्तु ईंधन को अग्नि से अलग कर सकते हैं, यह भी अग्नि शमन अवस्था है ज्ञानी का स्वभाव ऐसा नहीं है। अज्ञान अवस्था क्षम्य | की ही क्रिया है। प्रस्तुति-वेदचन्द्र जैन बादल जल के भंडार हैं जल वृष्टि मेघों से होती है।। गौरेला, पेण्ड्रारोड गाय के पेट से निकली 36 किलो पन्नियां पालीथिन की पन्नियाँ मूक पशुओं के लिए जानलेवा । टेरिकॉट कपड़े के टुकड़े, नायलोन रस्सी के टुकड़े आदि वस्तुएं साबित हो रही हैं, पालीथिन में रखी खाद्य सामग्री के साथ कूड़ा | बड़ी मात्रा में निकाली गईं। आपरेशन के पश्चात् यह समाचार कर्कद भी अक्सर पशु खा लेते हैं, जिससे अंततः जान चली जाती | लिखे जाने तक गाय पूर्णत: स्वस्थ है। आज के इस आपरेशन में है। दयोदय में एक गाय की जब शल्य चिकित्सा की गई तो उसके | डॉ. पंडित, डॉ. बी.पी. चनपूरिया, डॉ. सुनील विश्वनाथ दीक्षित, पेट से 36 किलो पन्नी प्लास्टिक की रस्सी, टेरीकाट के चिथड़े | डॉ. शोभा भण्डारी एवं डॉ. राजेश दुबे का विशेष सहयोग रहा। निकले, सड़कों पर पालिथिन में रखकर यदि कूड़ा कर्कट न फेंका डाक्टरों की टीम के साथ विटनरी कॉलेज के छात्रों की उपस्थिति जाये तो अनेक गायों की जान बचाई जा सकती है। उल्लेखनीय रही। दयोदय तीर्थ के वीरेन्द्र जैन, कमलेश कक्का, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा एवं जिनेंद्र जैन, चक्रेश मोदी आदि ने आज के इस गौ-माता के आशीर्वाद से संचालित दयोदय पशु संवर्धन एवं पर्यावरण केंद्र | आपरेशन पर डाक्टरों की टीम को संस्था की ओर से साधुवाद गौशाला में आज एक गाय का मेजर आपरेशन कर गाय के पेट | दिया एवं जबलपुर शहर के सभी गौ प्रेमियों से निवेदन किया है से लगभग 36 किलो पालीथिन निकाली गई। दयोदय तीर्थ के | कि यदि वह वास्तव में गौ-माता से प्रेम करते हैं और उसे माँ अरविंद जैन, संजय अरिहंत ने जानकारी देते हुये बताया कि | मानते हैं तो किसी भी प्रकार की खाद्य सामग्री को पालीथिन के यह गाय विगत डेढ़ माह पूर्व गौशाला को दान में प्राप्त हुई थी। | रैपर में रखकर रोडों पर न फेंकने की अपील की है क्योंकि मगर गाय निरंतर अस्वस्थ रहने के कारण गाय की अस्वस्थता | हमारे और आपके द्वारा पालोथिन के रैपर पर खाने पीने का को देखते हुये गौशाला में सेवारत डॉ. सुनील विश्वनाथ दीक्षित | सामान रखकर यदि हम रोडों पर फेंकते हैं तो उसे गाय खा लेती एवं राजेश दुबे ने गाय के परीक्षण के दौरान गाय के पेट में पन्नी | है और वह उसके पेट में जाकर फंस जाती है जिससे कि हमारी होना पाया। अतः आज प्रातः 10 बजे से लगभग 3.30 बजे तक | गौमाता असमय मौत को प्राप्त होती है। चले आपरेशन के पश्चात् गाय के पेट से 36 किलो पालीथिन, | संजय अरिहंत, जबलपुर 8 सितम्बर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524277
Book TitleJinabhashita 2003 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size8 MB
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