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यह दाने के रूप में बिकती है इसका रंग हरा होता है यह वह है | आयु बयालीस हजार वर्ष प्रमाण होती है। शेष तिर्थयों की उत्कृष्ट जो काबुल से प्लास्टिक या टाट की पैकिंग में आती है इसका | आयु एक पूर्वकोटि प्रमाण है। 285॥ भाव वर्तमान में 240 रुपया प्रति सौ ग्राम है।
श्री राजवार्तिक में अध्याय-3 के अंतिम सूत्र 'तिर्यग्योनिउपरोक्त दोनों प्रकार की हींगों में से ईरान वाली हींग तो | जानां च' ।। 39 ॥ की टीका करते हुए श्री अकलंक देव ने इस अभक्ष ही है वह हमको नहीं खानी चाहिए। परन्तु जो चूरा हींग | प्रकार कहा हैआती है उसमें कोई दोष दिखाई नहीं पड़ता। यह चूरा हींग भक्ष पञ्चेन्द्रियाणां पूर्वकोटिनवपूर्वाङगानि द्विचत्वारिंशद् है। पू. मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज से जब वे बिहार करते | द्वासप्ततिवर्ष= सहस्त्रणि त्रिपल्योपमा च ।।। पञ्चेन्द्रियाः तैर्यग्योनाः हुए हाथरस पधारे थे तब मैंने स्वयं हाथरस जाकर, वहाँ की कई | पञ्चविधा: जलचराः, परिसर्पाः, उरगाः, पक्षिणः, चतुःपादश्चेति । फैक्ट्रियों के मालिकों से स्वयं मिलकर उपरोक्त जानकारी प्राप्त तत्र जलचराणमुत्कृष्टा स्थिति: मत्स्यादीनां पूर्वकोटी। परिसर्पाणां करके उनको बताई। पूज्य मुनिश्री का कहना था कि यह पदार्थ गोधानकुलादीनां नव पूर्वाडगानि । उरगाणां द्विचत्वारिंशद्वर्षसहस्त्राणि । कई माह तक गीला सा रहता है, इसमें भी तो त्रस जीवों की | पक्षिणां द्वासततिवर्षसहस्त्राणि । चतुः पदां त्रीणि पल्योपमानि। सर्वेषां उत्पत्ति हो जाती होगी। इस संबंध में जानकारी करने हेतु आगरा तेषां जघन्या स्थितिरन्तर्मूहर्ता। के एक प्रसिद्ध डॉ. अनिल कुमार जैन की मैंने सहायता ली। डॉ. । अर्थ- पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्कृष्ट आयु एक पूर्वकोटि, साहब ने गीली हींग का पैथोलोजी लैब में जाकर माइक्रोस्कोप | नौ पूर्वांग, 42000 वर्ष, 72000 वर्ष और तीन पल्य है ।।5।। द्वारा अच्छी प्रकार टैस्ट किया और बताया कि यह हींग तो वैक्टीरिया | | पंचेन्द्रिय तिर्यंच पाँच प्रकार के हैं- जलचर, परिसर्प, सर्प, को नष्ट करने वाली वस्तु है। इसमें माइक्रोस्कोप से देखने पर एक | पक्षी और चतुष्पद (चार पैर वाले पशु) इनमें जलचरों की उत्कृष्ट भी वैक्टीरिया दिखाई नहीं पड़ता है। कल्चर करके देखने पर भी | आयु मच्छ आदि की एक करोड़ पूर्व है। परिसर्प, गोह, नकुल एक भी वैक्टीरिया दिखाई नहीं पड़ता है। अतः यह चूरा हींग आदि की नौ पूर्वांग है, सो की 42000 वर्ष, पक्षियों की 72000 (अपनी बुद्धि से देखने पर तो) भक्ष प्रतीत होती है। यदि सूक्ष्म वर्ष और चतुष्पदों की तीन पल्य है। सबकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त दृष्टि से कोई दोष हो तो वह हमारे इन्द्रिय ज्ञान से अतीत है। है।
निष्कर्ष यह है कि हड्डा हींग जो कत्थे जैसे रंग वाली है, उपरोक्त प्रमाण से यह स्पष्ट होता है कि उत्तम भोगभूमि में वह अभक्ष है और चूरा हींग जो हरे रंग वाली है, उसे भक्ष मानना पाये जाने वाले हाथी आदि पशुओं की आयु तीन पल्य और चाहिए।
पक्षियों की आयु 72000 वर्ष माननी चाहिए। किन्हीं विद्वानों के नोट - इस संबंध में कोई और विशेष बात हो तो पाठकगण मुख से ऐसा सुना जाता है कि उत्तम भोगभूमि के सभी तिर्यंचों की मुझे लिखने का कष्ट करें।
आयु तीन पल्य होती है परन्तु वह कथन आगम सम्मत प्रतीत नहीं जिज्ञासा - भोगभूमि में जलचर जीव तो पाये नहीं जाते | होता। उपरोक्त राजवार्तिक के कथनानुसार पक्षियों की आयु 72000 केवल थलचर व नभचर जीव पाए जाते हैं। तो इन थलचर व | वर्ष से अधिक नहीं होती। श्लोकवार्तिक के महान टीकाकार पं. नभचर जीवों की उत्कृष्ट आयु कितनी माननी चाहिए? माणिकचंद जी कोंदेय ने श्लोकवार्तिक पंचम खण्ड, पृष्ठ 395 समाधान- श्रीमूलाचार गाथा 1113 में इस प्रकार कहा पर लिखा है "पक्षियों की उत्कृष्ट आयु 72000 वर्ष है, भोगभूमि
में पाये जा रहे पक्षियों में यह आयु संभवती है।" अतः उत्तम पक्खीणं उक्कस्सं वाससहस्सा बिसत्तरी होति। भोगभूमि के चतुष्पद पशुओं की आयु तीन पल्य और पक्षियों की ' एगा यपुवकोडी असण्णीणंतह यकम्मभूमीणं॥1113॥
आयु 72000 वर्ष मानना उचित है। अर्थ- पक्षियों की उत्कृष्ट आयु बहत्तर हजार वर्ष है तथा जिज्ञासा - केवली भगवान् के नौ भेद किस प्रकार हैं, असंज्ञी जीव और कर्मभूमि जीवों की उत्कृष्ट आयु एक कोटिपूर्व | समझाइये? वर्ष है। 1113 ॥
समाधान - आगम में केवली भगवान् के नौ भेद इस श्री तिलोयपण्णत्ति अधिकार-5, गाथा 285 में इस प्रकार | प्रकार कहे हैंकहा है
1. पाँच कल्याणक वाले तीर्थंकर बाहत्तरि बादालं वास-सहस्साणि पक्खि-उरगाणं।
2. तीन कल्याणक वाले तीर्थंकर अवसेसा-तिरियाणं, उक्कस्सं पुव्व-कोडीओ॥285|
3. दो कल्याण वाले तीर्थंकर अर्थ- पक्षियों की आयु बहत्तर हजार वर्ष और सर्पो की ।
4. अन्तः कृत केवली
-अगस्त 2003 जिनभाषित 23
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