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________________ सिद्ध तीर्थ कुण्डलपुर कैलाश मड़बैया बुन्देलखण्ड के "बड़े बाबा" नाम से देश भर में ख्यात । वीं सदी की एक प्रतिमा का प्रमाण मिलता है। सन् 1126 की श्री जैन तीर्थ कुण्डलपुर वर्तमान मध्यप्रदेश के दमोह जिले में अवस्थित | मनसुखजी द्वारा कराई गई प्रतिष्ठा के बाद केवल 1532 का एक है। मध्य रेलवे के बीना जंक्शन से कटनी की ओर जाने वाली प्रतिमा लेख उपलब्ध होता है, शेष प्रतिमाएँ उसके बाद की रेलगाड़ी से दमोह उतरकर मात्र 40 किलो मीटर पक्के मार्ग से | कालावधि की हैं। ग्राम पटेरा के निकट ही स्थित इस जैन तीर्थ पर पहुँचा जा सकता भट्टारकों के भट्टासीन होने के लेख भी प्रमाण स्वरूप है। जबलपुर से बस द्वारा भी पहुँचना आसान है। वस्तुतः धार्मिक उपलब्ध हैं। तथा सन् 1742 में श्री महाचन्द्र भट्टारक और सत्रहवीं और पुरातात्विक तीर्थ के साथ यह पर्यटन योग्य भी रमणीक | सदी में श्री सुरेन्द्र कीर्ति स्वामी भट्टारक ने कुण्डलपुर का जीर्णोद्धार स्थल है। जहाँ सभी आधुनिक सुविधाएँ प्रायः उपलब्ध हैं। कराया और अपनी साधना का स्थल बनाया था। इसी परम्परा में कुण्डल के आकार की गोलाकार पर्वत श्रृंखला होने के | सुचन्द्रकीर्ति और ब्र. नेमिसागर ने यहाँ पुनर्निर्माण कराया जिसके कारण कहलाया तीर्थ कुण्डलपुर, प्रकृति की पावन, प्रांजल और | लेख भी उपलब्ध हैं। सुखद हरीतिमा के बीच विद्यमान है। कुल 63 प्राचीन मंदिरों ने | जैन तीर्थों में कुण्डलपुर जैसे ऐसे विरल ही पुण्य स्थल हैं, इस तीर्थ को अद्भुत गरिमा प्रदान की है। बीच में जड़े पावन | जहाँ जैनेतर राजाओं ने अपनी मन्नतें पूरी होने पर जीर्णोद्धार "वर्धमान सागर" नाम के सरोवर ने तीर्थ की सुन्दरता को और | कराया हो। इतिहास साक्षी है कि "बुन्देल केसरी" छत्रसाल (जो अधिक आकर्षक बनाया है। ईसवी पूर्व छठवीं सदी में चौबीसवें प्रणामी धर्मानुयायी थे) जब विदेशी मुगल आतताइयों से सब तीर्थंकर महावीर स्वामी का समवशरण यहाँ आया था और अंतिम कुछ हार चुके थे तो जंगलों में भटकते भटकते यहाँ"बड़े बाबा" केवली भगवान् श्रीधर स्वामी की निर्वाण भूमि होने से यह सिद्ध से मन्नत मांगने आ पहुँचे। और कहते हैं जब उन्हें बन्देलखण्ड तीर्थ के रूप में मान्य है। जैसा कि "बड़े बाबा" के सामने स्थित का राज्य पुनः वापस मिल गया तो "बड़े बाबा" के प्रति अगाध चरण चिन्ह के सामने ही अंकित है- "कुण्डल गिरौ श्री श्रीधर श्रद्धा से वे विव्हल हो उठे थे। तब महाराजा छत्रसाल ने सत्रहवीं स्वामी" इसकी पुष्टि प्राकृत ग्रन्थ " श्री तिलोयपण्णति" से होती सदी में न केवल बड़े बाबा के मंदिर पर सोने चांदी का घण्टा और चवर-छत्र चढ़ाया वरन् मंदिर के तालाब का जीर्णोद्धार भी कराया पुरातत्व था। यह उल्लेख बुन्देलखण्ड के इतिहासकारों ने तो किया ही है। मूल पुरातत्त्व तो छठवीं शताब्दी का प्रतीत होता है परंतु | "बड़े बाबा" के मंदिर में स्थित शिलालेख भी यह प्रमाणित निकट स्थित "बर्रट" नाम के गांव को श्री कृष्ण के तत्कालीन विराट नगर काल से जोड़ा जाता है। यहाँ अनेक प्राचीन मूर्तियाँ "श्री महाराजा धिराज्ञः श्री छत्रसालस्य महाराज्ये प्राप्त हुई हैं और अभी भी शिल्पावशेष विद्यमान हैं। कुण्डलपुर में सकल सम्पत्संयुम्त प्रजाजनस्य चैत्यालयस्य निर्मापितम्" अवसर अवसर पर अनेक जीर्णोद्धार हुये हैं परंतु विगत 300 छत्रसाल कालीन कुछ बर्तन तो अभी भी सुरक्षित बताये 400 वर्षों में ही अधिकांश निर्माण किये गये हैं। वर्तमान वास्तुशिल्प जाते हैं। शिलालेख के अनुसार वि.सं. 1757 की माघ सुदी 15 मराठा कालीन ही अनुमानित है। सोमवार को तत्कालीन पंचकल्याणक सम्पन्न हुआ था, जिसमें यहाँ उपलब्ध दो मठ पुरातत्व के महत्वपूर्ण प्रमाण हैं | महाराज छत्रसाल स्वयं पधारे थे। उसी परम्परा में कुण्डलपुर में जिनमें एक ब्रह्म मठ अभी भी शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा आज भी माघ सुदी में इस जनपद का विशाल मेला भरता है। संरक्षित किया गया है और दूसरा रूक्मणी मठ लगभग समाप्त प्राय [ विशेषाकर्षण है। जहाँ धरणेन्द्र पद्मावती को एक वृक्ष के नीचे दर्शाये जाने | कुण्डलपुर जैन तीर्थ का अर्थ है वहाँ स्थित "बड़े बाबा" वाला एक महत्वपूर्ण शिलाखण्ड अभी भी विद्यमान है। इस वृक्ष का प्रमुख रूप से दर्शन करना। 1500 वर्षों से अधिक प्राचीन यह के ऊपर तीर्थंकर पार्श्वनाथ का अंकन है। पद्मासन प्रतिमा 3 फुट ऊँचे आसान पर 12 फुट उतुंग, देश में इतिहास अपने तरह की अद्वितीय रचना है। ऐसा सिद्ध, सौम्य और सुन्दर मूर्ति रचना की दृष्टि से पुरातत्वविदों द्वारा कुण्डलपुर का शिल्प-सृजन देश में अन्यत्र दुर्लभ है। प्रतिमा के सिंहासन में शिल्प छटी-आठवीं सदी का माना जाता है। यह उत्तर गुप्तकाल गौमुख यक्ष, देवी चक्रेश्वरी और काँधों तक बिखरे केशों से यह के बाद का निर्माण होना चाहिए। हालाकि मूर्ति लेख से केवल 12 प्रमाणित हो सका कि यह प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभनाथ अर्थात् आदिनाथ स्वामी की ही मूर्ति है। 16 अगस्त 2003 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524276
Book TitleJinabhashita 2003 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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