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________________ अलंकृत किया जाने लगा। इस प्रकार नग्न प्रतिमा का संबंध । पूजा अर्चना करते रहने के आधार पर श्वेताम्बरों ने मूर्ति की पूजा श्वेताम्बर सम्प्रदाय से कभी नहीं रहा। श्वेताम्बरों के लिए नग्न | का अधिकार प्राप्त कर लिया है। श्वेताम्बरों ने योजना बद्ध तरीके मूर्तियों अपूज्य होती हैं और दिगम्बर सम्प्रदाय में अनग्न मूर्ति | से गत काल में अपनी पद्धति से पूजा अर्चना किए जाने के ठोस अपूज्य होती है। साक्ष्य जुटाए हैं। केसरिया जी में समय-समय पर उदयपुर से अस्तु प्रतिमा के स्वत्व संबंधी विवाद उपस्थित होने पर प्रभावशाली श्वेताम्बर लोग आते और दिगम्बरों की उदारता और हमें केवल और एक मात्र नग्नता को ही प्रमाण मानने पर स्थिर | अदूरदर्शिता का लाभ उठाते हुए अपनी पद्धति से पूजा करते। रहना चाहिए, तभी हम अपने तीर्थों और मूर्तियों को सुरक्षित रख | धीरे-धीरे उन्होंने मूर्ति को आंगी और आभूषण भी पहनाने प्रारम्भ पायेंगे। हमें अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ यह घोषणा करनी कर दिये। इन पूजाओं के उल्लेख उन्होंने मंदिर के खम्भों और चाहिए कि नग्न मूर्ति श्वेताम्बर परंपरा में कभी पूज्य नहीं मानी | दीवारों पर उत्कीर्ण करा दिये। बाद में उन्होंने तत्कालीन शासन व गई। प्रमाण का यह आधार हमारे अस्तित्व का आधार सिद्ध | न्यायिक व्यवस्था में अपने प्रभाव का उपयोग कर उक्त साक्ष्यों के होगा। देवी-देवताओं का अंकन बहुत कम मूर्तियों पर पाया जाता आधार पर पूजा के अधिकार का निर्णय प्राप्त कर लिया। अभी भी है। जिन पर नहीं पाया जाता उनके लिए तो निर्विवाद रूप से | श्वेताम्बर लोग वस्त्र, आंगी, आभूषण नेत्र आदि का प्रयोग कर नग्नता ही हमारे स्वत्व का प्रमाण है। किंतु देवताओं का अंकन लिंगादि को आच्छादित कर ही प्रतिमा की पूजा करते हैं। मृर्ति की होते हुए भी नग्नता तो मूर्ति के दिगम्बर होने का उद्घोष करेगी | नग्नता को पूर्व काल में वस्त्रादि से आच्छादित करते रहने की ही। देवताओं के अंकन युक्त अनग्न मूर्ति दिगम्बर नहीं है और दीर्घकालीन परिपाटी के आधार पर ही वे पूजादि का अधिकार देवताओं के अंकन के बिना भी नग्न मूर्ति दिगम्बर है। प्राप्त कर पाए हैं। यद्यपि अब स्थिति-परिवर्तन अत्यंत कठिन है अब समस्या केवल यह है कि जिन नग्न मूर्तियों पर भी | तथापि अभी भी मूर्ति का मूल स्वरूप नग्न होने के आधार पर श्वेताम्बर अपना स्वत्व घोषित कर रहे हैं, वहाँ हमें क्या करना | श्वेताम्बर आगमानुसार मूर्ति के श्वेताम्बरों के द्वारा पूज्य नहीं होने चाहिए। समस्या के संबंध में गहन चिंतन करने पर हम इसी | का बिंदु प्रभावी ढंग से उठाया जाये तो कदाचित् किंचित् अनुकूल निर्णय पर पहुंचेंगे कि हमें श्वेताम्बर ग्रंथों के प्रमाण एवं श्वेताम्बर | परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। विद्वानों के विचारों के आधार पर इस बात को प्रमाणित और आपने स्वयं लिखा है कि गोमटेश्वर बाहुबलि की मूर्ति पर प्रचारित करना चाहिए कि कभी भी नग्न मूर्ति श्वेताम्बर नहीं होती | अपना अधिकार जताने के लिए श्वेताम्बर आचार्य ने यही तर्क और श्वेताम्बर उसको पूज्य नहीं मानते । यदि कहीं हम हारे हैं तो | दिया कि मूर्ति मूलत: नग्न नहीं थी, वस्त्रसहित थी। किंतु दिगम्बर उक्त मान्यता को ठीक से प्रस्तुत नहीं करने के कारण हारे हैं और आचार्य ने षडयंत्र रचकर उस मूर्ति पर उत्कीर्ण वस्त्र को छीलकर अब जब कभी हम जीतेंगे तो उपर्युक्त मान्यता को प्रमाणित प्रचारित | बेलें बना दी, किंतु मूलत: यह प्रतिमा दिगम्बरों की नहीं श्वेताम्बरों करके ही जीतेंगे। की है। यहाँ भी श्वेताम्बर आचार्य ने यह माना है कि निर्वस्त्र नग्न माननीय पं. नीरज जी द्वारा उल्लिखित तीर्थों की वस्तुस्थिति | प्रतिमा श्वेताम्बर प्रतिमा नहीं होती। के बारे में भी हम विचार कर लेते हैं। अंतरिक्ष पार्श्वनाथ क्षेत्र की | जैन इतिहासकारों ने लिखा है कि प्रारंभ में प्रतिमा विज्ञान मूलनायक प्रतिमा के बारे में प्रिवीकोंसिल से यह निर्णय हुआ था में शासन देवी-देवताओं का कोई अस्तित्व नहीं था। मध्य युग में कि मूर्ति पर कोपीन कंडोरा अंकित होने से वह श्वेताम्बर प्रतिमा जब तान्त्रिकता बढ़ी तो जैन धर्म भी उससे अप्रभावित नहीं रहा। है। प्रतिमा को नन सिद्ध नहीं करने के कारण प्रिवी कोंसिल का जैन ग्रंथों में सर्व प्रथम यक्ष-यक्षियों का वर्णन छठी शताब्दी के निर्णय श्वेताम्बरों के पक्ष में हुआ था। अभी कुछ महिनों पहले | आचार्य यति वृषभ के ग्रंथ 'तिलोयपण्णत्ति' में प्राप्त होता है। वहाँ श्वेताम्बरों द्वारा मूर्ति की सफाई के बहाने गुप्त रूप से मूर्ति के लिंग | केवल चौबीस तीर्थकरों के यक्षयक्षियों के नाम दिए हैं और उनका पर किया गया पुराना लेप उखाड़कर नया लेप किया जा रहा था | तीर्थंकर प्रभु के समवशरण में होना बताया है। यह भी बताया है और तभी वहाँ के दिगम्बर बंधुओं द्वारा प्रशासकीय अधिकरियों | कि इनके अतिरिक्त समवशरण की रचना व्यवस्था में द्वारपाल, को बुलाकर लेप का काम रुकवा दिया गया था। किंतु संगठित | नृत्यांगना आदि हजारों देवी-देवता लगे रहते हैं। ये सब देवीहोकर जागरूक हो समय पर उचित कदम उठाने में असमर्थ रहने | देवता इन्द्र की आज्ञा से अपना कर्तव्य पालन करते हैं। के कारण हम जीती हुई बाजी भी हार जाते हैं और हार जायेंगे। | तीर्थंकर भगवान् के पंच कल्याणकों में संख्यातीत देवीयदि हम मूर्ति की नग्नता सिद्ध करने में सफल हो जाते हैं तो देवता कल्याणक उत्सव मनाने आते हैं। समवशरण सभा में देव, सिरपुर क्षेत्र का मुकदमा अभी भी जीत लिए जाने की संभावना मनुष्य ही नहीं पशु भी आते हैं। यह देवताओं की विशेष शक्तियों है। मुझे श्री माणक चन्द जी बज, बासीम ने कुछ दिनों पहले | का ही परिणाम है कि समवशरण में प्रातिहार्यादि अतिशय एवं बताया था कि मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। केसरिया जी | इसकी विशाल रचना क्षण मात्र में निर्मित हो जाती है। किंतु देवों और मक्सीजी में मृतियाँ नग्न हैं किंतु लम्बे समय से भृतकाल में | की उपस्थिति से तीर्थंकर देव की कोई श्रीनिर्मित वृद्धि नहीं होती - मई 2003 जिनभाषित 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524273
Book TitleJinabhashita 2003 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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