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किया तत्पश्चात् सैकड़ों लोगों ने भगवान् का अभिषेक किया। मंदिर के भीतर बाहर बस ये ही नारे सुनाई दे रहे थे कि प्रभु की मूरत कैसी हो चंद्रप्रभ भगवान् के जैसी हो "गुरु का शिष्य कैसा हो सुधा सागर जैसा हो" एवं "जब तक सूरज चांद रहेगा-सुधा सागर का नाम रहेगा।" हर व्यक्ति जो भी इन जिनबिंबों के दर्शन करता बस यही कहता अलौकिक, अद्वितीय, जीवन धन्य हो गया। दर्शन कर वहीं के वहीं खड़ा रह जाता, आगे बढ़ना ही भूल जाता। लोग लाइन में लगकर कितने ही धक्के खाकर और पसीने से सराबोर हो भगवान् के सामने आते तो दर्शन कर सारे धक्के, परेशानियाँ भूल जाते और उनकी प्रसन्नता का पार न रहता। पहले दिन ही लगभग चार सौ लोगों ने इन अलौकिक, अद्वितीय चतुर्थकालीन जिनबिंबों का अभिषेक किया एवं हजारों लोगों ने दर्शन किए। जो भी दर्शन करता क्षेत्र से ही अपने-अपने रिश्तेदारों, मित्रों एवं परिवारजनों को फोन करके चांदखेड़ी बुला लेता। इस तरह पहले दिन से ही पूरे भारत के कोने कोने से जैन समाज के लोगों का चाँदखेड़ी पहुंचना शुरू हो गया क्षेत्र कमेटी रात में जो भी नई व्यवस्था बनाती दूसरे दिन वह व्यवस्था बहुत छोटी सिद्ध हो जाती। श्रद्धालु रेलों से, बसों से एवं निजी वाहनों से इतनी अधिक संख्या में आ रहे थे कि शासन एवं प्रशासन भी चकित हो अपनी सारी सेवायें प्रदान करने में जुट गया। सैकड़ों पुरूष एवं महिला पुलिसकर्मियों को व्यवस्था के लिए तैनात किया गया। झालावाड़ जिले के कलेक्टर एवं एस. पी. स्वयं दिन-दिन भर क्षेत्र पर रहे एवं व्यवस्था का जायजा लेते रहे। दिन रात इतने यात्री क्षेत्र पर आ रहे थे कि कई स्टेशनों पर अटरू एवं वारा स्टेशन के टिकिट ही खत्म हो गये। पूरी की पूरी रेलगाड़ियाँ अटरू एवं वारा स्टेशनों पर खाली हो जाती थीं। राजस्थान परिवहन निगम ने भी कई विशेष बसों की व्यवस्था की। क्षेत्र कमेटी ने आवास व्यवस्था के लिए खानपुर गांव के सारे होटल एवं सभी धर्मशालायें यात्रियों को ठहरने के लिए बुक कर ली थीं। क्षेत्र पर भोजन की व्यवस्था के लिए एक विशाल भोजनशाला की व्यवस्था की गई थी जिसमें प्रतिदिन हजारों व्यक्ति एक साथ भोजन करते थे। पानी, बिजली आदि की व्यवस्थाओं में कोई कमी न आये इस हेतु कई आकस्मिक प्रबंध किये गये थे । नदी के दूसरे किनारे पर सैकड़ों की संख्या में रातों रात टेंट लगाये गये जो पूरे पंद्रह दिन तक सभी भरे रहे। चौबीस घंटे चंद्रप्रभ भगवान् का दरबार यात्रियों को दर्शन के लिए खुला रहता था । प्रतिदिन सात बजे मूलनायक आदिनाथ भगवान् का अभिषेक एवं वृहत शांतिधारा महाराज श्री के सान्निध्य में होती एवं बाद में साढ़े आठ बजे से दस बजे तक मुनिश्री के विशेष मंगल प्रवचन होते। प्रतिदिन के प्रवचन इतने मार्मिक एवं गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित करने वाले रहते कि एक भी श्रोता भावविभोर हुए बिना न रहता । प्रवचनों के बाद चार विशेष इंद्रों की बोलियाँ होती जो कि उस दिन चंद्रप्रभ भगवान् का प्रथम अभिषेक मुनिश्री । चाँदखेड़ी में यह चमत्कार कर मेरे ऊपर बड़ा उपकार किया है
के सान्निध्य में करते थे। बाद में सभी सामान्य इंद्र भगवान् का अभिषेक करते रहते थे भूगर्भ से प्राप्त इन जिनबियों की प्रथम शांतिधारा श्री अशोक पाटनी (आर. के. मार्बल्स), श्री गणेशराणा एवं श्री निहाल पहाड़िया ने की। चूंकि मंदिर में प्रवेश द्वार एक ही है अतः अभिषेक करने वालों के लिए मंदिर में अलग से प्रवेश के लिए एक अस्थायी पुल त्वरित व्यवस्था के रूप में मंदिर की छत एवं धर्मशाला की छत के बीच बनाया गया। पुल बड़ा कमजोर था परंतु लाखों लोग इस पुल पर से आये गये फिर भी पुल यथावत रहा आया एवं किसी प्रकार की कोई दुर्घटना नहीं घटी। इसी प्रकार नदी के ऊपर भी एक चार लेन का अत्यंत अस्थायी पुल रातों रात निर्मित किया गया और इस पुल पर से भी लाखों लोग दिन रात आये गये परंतु किसी भी प्रकार की अनहोनी नहीं हुई और पुल पंद्रह दिन तक काम देता रहा। भूगर्भ से प्राप्त भगवानों के दर्शनों के लिए महिलाओं एवं पुरूषों की इतनी लंबी लंबी लाइनें लगती थी कि पांच-छः घटों में किसी दर्शनार्थी का दर्शन के लिए नंबर आ पाता था। दर्शनार्थी इतनी देर तक लाईन में लगकर भी जब चंद्रप्रभ भगवान् के सम्मुख पहुँचता था तो अपनी सारी तकलीफें भूल जाता और अपने आपको धन्य कहने लगता । उसके चेहरे के भावों से लगता मानो कह रहा हो कि इन दर्शनों के लिए तो और भी कई गुनी तकलीफ उठानी पड़ती तो भी उठा लेता। एक दिन भीड़ इतनी अधिक बड़ गई की कलेक्टर महोदय ने जब व्यवस्था बनाने में असमर्थता पायी तो मुनि श्री से अत्यंत विनीत भाव से निवेदन किया कि मुनिश्री आप प्रतिमाओं को बाहर रख दें तो बड़ा उपकार होगा क्योंकि भीड़ बढ़ती ही जा रही हे तब मुनिश्री ने वस्तुस्थिति समझकर जिनबिंबों को मंदिर के प्रवेश द्वार के बाहर ही विराजमान करवाया एवं फिर दर्शनार्थियों को दर्शन में किसी भी प्रकार की आकुलता या असुविधा नहीं हुई। वैसे भी व्यवस्था के लिए मुंगावली, कुंभराज एवं अशोक नगर व स्थानीय सेवा दलों ने अपनी अमूल्य सेवायें दी। लाइन में लगे व्यक्तियों को पानी पिलाने का महत्वपूर्ण कार्य भी इन्हीं लोगों द्वारा किया गया। पंद्रह दिन इस महामहोत्सव के दौरान राज्य शासन एवं केन्द्र शासन के कई वरिष्ठ एवं कनिष्ठ नेता, विधायक और मंत्री भी चंद्रप्रभ भगवान् के दर्शनों के लिए पधारे एवं मुनिश्री से आशीर्वाद लिया। समारोह में मुख्य रूप से आये राजनैतिक व्यक्तियों में केन्द्रीय लघु उद्योग मंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया छ: अप्रैल को दर्शन करने पधारी इसी दिन श्रीमती सिंधिया ने सांसद कोटे से रूपली नदी पर चार लेन वाली पुलिया के निर्माण हेतु पंद्रह लाख रूपये की राशि की स्वीकृति की घोषणा कर पुलिया का शिलान्यास किया। बाद में श्रद्धालुओं से खचाखच भरे बहुत बड़े प्रवचन पंडाल में मुनिश्री के प्रवचन के पूर्व श्रीमति सिंधिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि मुनिश्री ने
20 मई 2003 जिनभाषित
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