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________________ जैनधर्म की वैज्ञानिकता प्राचार्य निहालचंद जैन मूर्त की खोज-विज्ञान है। अमूर्त का अनुभव - धर्म है जो । है-शक्ति की ओर, और धर्म संकल्पित है शांति के लिए। आवश्यकता भी दृश्य या सूक्ष्म दृश्य है, उसे पुद्गल की पर्याय (Manifestation है- उस अभिनव शक्ति की जो शांति/समता/आनंद से जुड़ी हो। of Matter)कहा है जो संयोग और वियोग के गुण धर्म से जुड़ा आण्विक-शक्ति विज्ञान की उपलब्धि है जिसे ध्वंसात्मक और है। परन्तु जो अदृश्य है वह चेतना, अभौतिक है, शाश्वत है। चेतना सृजनात्मक दोनों बनाया जा सकता है। यदि यह शक्ति-विवेक से ज्ञान और दर्शन की शक्ति से युक्त, आत्मा का अविनाशी गुण-धर्म जुड़ जाए तो इससे शिवत्व एवं सौन्दर्य की दिशा पायी जा सकती है। है और यदि शक्ति निरंकुश हो जाए तो मानव के लिए विस्फोटक जो अणु और परमाणु की शक्ति का चितेरा है, वह विज्ञान | है। जो चेतना की शक्ति से आन्दोलित है वह धर्म है। विज्ञान, बाहर अस्तु प्रस्तुत शोधलेख, उन तथ्यों पर प्रकाश डालना चाहता की खोज पर खड़ा है। धर्म, आत्म-अन्वेषण की अभिव्यक्ति है। । है जो जैनधर्म की आध्यात्मिकता को विज्ञान की आँख से देखकर परन्तु खोज चाहे बाहर की हो या भीतर की, कार्य-कारण सिद्धान्त | वैज्ञानिक-विश्लेषण प्रस्तुत करता है। पर खड़ी है। विज्ञान कहता है कि भगवान् से क्या लेना देना, हम ___ जिन तथ्यों पर आलेख का ताना-बाना बुना गया है वे तो प्रकृति का नियम खोजते हैं। धर्म विशेष रूप से जैनधर्म भी यही कहता है कि हम उस नियन्ता को विदा करते हैं, जो कहीं बाहर (1) धर्म और गणित। खड़ा है। हमारा नियन्ता-आत्म पुरूषार्थ है। जो हम कर रहे हैं, वही (2) जैनधर्म में पुद्गल और आधुनिक परमाणुवाद। भोग रहे हैं। अच्छा या बुरा - न तो भाग्य का लिखा है और न ही (3) जैन दर्शन का अनेकान्त और उसकी वैज्ञानिकता। किसी अन्य नियन्ता का दिया है, बल्कि हमारे कार्य (कर्म) का (4) विज्ञान के आलोक में अमूर्त- पदार्थ (धर्म, अधर्म, फल है। कार्य और उसके फल में सीधा सम्बन्ध है, जो उसी क्षण आकाश और काल) की अवधारणाएँ। से मिलना प्रारम्भ हो जाता है। (5) मंत्र/ध्यान एवं भाव - रसायन में विज्ञान की पहुँच। धर्म और विज्ञान - दोनों जीवन के सापेक्ष हैं, विज्ञान शक्ति 1.जैनधर्म और गणित - कहा जाता है कि "मेथेमेटिक्स है तो धर्म - जीवन की उस शक्ति को दिशा देता है। धर्म है- 'विवेक | इज द क्वीन ऑफ ऑल साइन्सेज" अर्थात् विज्ञान का मूल गणित की आँख'। विज्ञान के साथ यदि विवेक की आँख जुड़ी हो तो | है, प्राचीन भारत में, जैन दार्शनिकों का गणित के क्षेत्र में वैज्ञानिक विज्ञान - 'श्रेयस' बन जाता है, जीवन का आलोक। धर्म और कार्य काफी महत्व रखता है। लोगरिथ्म का जनक सर जॉन नेपियर विज्ञान में मित्रता चाहिए, समन्विति चाहिए। अकेला विज्ञान, भोग | (ई. १५ वीं शती) को मानते हैं। परन्तु दिगम्बर जैनों के प्राचीन संस्कृति परोस रहा है। वह आराम दे सकता है, आनंद नहीं। आनंद ग्रन्थ 'धवला' में अर्थच्छेद (लघुरिथ्म) की कल्पना ही नहीं की का वर्षण धर्म की शुरूआत है, जीवन में जहाँ विज्ञान की इति है, उसका गुणाकार, भागाकार लॉग टू डिफरण्ट बेसेजम में उपयोग वहाँ से धर्म की शुरूआत है। एक विज्ञानी (Scientist) ऐसे आदि का सुस्पष्ट रीति में विशद् वर्णन है। ईसा की 9 वीं शती में 'धर्म-युग' की प्रतीक्षा में बैठा है, जो अंध - विश्वासों की चुनौती महावीराचार्य हुए, जिन्होंने 'गणित सार संग्रह' जैसा अप्रतिम ग्रन्थ स्वीकारता हुआ तथ्यों पर आधारित हो। लिखा। नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती के 'गोम्मटसार' में वर्णित गणित सारांश यह है कि आज विज्ञान का आध्यात्मीकरण चाहिए | को देखकर आश्चर्य होता है। और धर्म या अध्यात्म का विज्ञानीकरण हो जैन धर्म एक वैज्ञानिक आज के संख्याशास्त्र का मूल जैन सिद्धांत में है। श्री पी.सी. धर्म है । यह तथ्यों/तर्कों और आत्म-परीक्षण की कसौटी पर कसा | महालनबीस ने ज्यूरिच में पठित अपने शोध-प्रबंध में कहा है कि हुआ धर्म है। यहाँ क्रियाकाण्ड को प्रश्रय नहीं है। कर्म सिद्धांत जो | आधुनिक सांख्यिकी में मूलभूत सिद्धांतों की तार्किक भूमिका हमें जैनदर्शन की रीढ़ है सत्य एवं तथ्य परक विज्ञान की पृष्ठभूमि पर | | स्याद्वाद के तार्किक सिद्धान्त में उपलब्ध होती है। जैनधर्म द्वारा आधारित है यहाँ जीवन का शिव, सत्य, सुंदर समर्पित है। सम्यक् | नित्यत्ववाद, आधुनिक सांख्यिकी के सम्भावनावाद (Theory of श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र की समवेत क्रियाशीलता पर जीवन-दोनों | Probability), इकाई और समूह संबंध की धारणा, एसोसिएशन तरफ फैला है। बाहर भी, भीतर भी। इसलिए जीवन, विज्ञान और | कोरिलेशन, कोनकोमिटेन्ट वेरिएशन का सिद्धान्त अनिश्चित परिणाम धर्म दोनों से जुड़ा है । विज्ञान- जीवन का वृक्ष है तो धर्म- उस वृक्ष | की धारणा आदि विचारों की तार्किक पृष्ठभूमि के रूप में प्रस्तुत हुए का मूल है, जो उस वृक्ष में फूल उगाने की सम्भावना लिए है जीवन | हैं। जैनज्यामिती, बीजगणित एवं अंकगणित, आदि का विस्तृत की सम्पूर्णता- दोनों के समन्वय में है। क्योंकि विज्ञान- मुँह किए | विवरण- 'षट्खण्डागम' और 'जम्बूदीवपण्णति संगहो' की - मई 2003 जिनभाषित १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524273
Book TitleJinabhashita 2003 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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