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चाँदखेड़ी के अतिशय क्षेत्र से महाअतिशय
क्षेत्र बनने तक एक वृत्तान्त
सतीश जैन इंजीनियर
चांदखेड़ी महाअतिशय क्षेत्र दिगंबर जैन समाज का अति | जिस गुफा में बड़े बाबा विराजमान हैं उसके द्वार इतने प्राचीन एवं प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र है, जो कि राजस्थान प्रांत के झालावाड़ छोटे-छोटे हैं कि लोगों को झुककर एवं जमीन में हाथ टेककर ही जिले में स्थित है। यह क्षेत्र मध्यप्रदेश की सीमा के अधिक करीब | दरवाजों से आना-जाना पड़ता है। मंदिर के प्रथम तल पर बाहुबली है एवं गुना से ... कि.मी. है। अटरू और वारा रेल्वे स्टेशनों से भगवान् मध्य वेदी पर विराजमान हैं एवं अन्य वेदियाँ भी आज़ क्षेत्र की दूरी 40 कि.मी. है। चांदखेड़ी क्षेत्र से जुड़ा हुआ कस्बा | बाजू में हैं। मंदिर की छत पर चार कोनों में बनी चार छतरियाँ खानपुर है। जैन समाज खानपुर में ही निवास करता है। इस क्षेत्र मंदिर की भव्यता एवं सुंदरता को अत्यधिक प्रशस्त करती हैं। पर एक विशाल भव्य एवं मनोहारी मंदिर निर्मित है जिसके गुफा मंदिर की प्राचीनता एवं भव्यता मंदिर की विशिष्ट निर्माण तल में लाल पाषाण के महाअतिशयकारी आदिनाथ भगवान् कला से स्पष्ट झलकती है। सघन नक्काशीदार पाषाण के ऊंचेपद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं। आदिनाथ भगवान् ही इस क्षेत्र के ऊंचे खंभे, छ:-सात फुट मोटी दीवारें, चार-चार फीट ऊँचाई के मूलनायक भगवान् हैं। प्रतिमा की ऊँचाई सवा छ: फीट है एवं | दरवाजे, कलाकृति युक्त मेहराब आदि सभी कुछ दर्शनीय एवं प्रशस्ति में संवत् 512 अंकित है। इन्हीं आदिनाथ भगवान् को | प्रशंसनीय है। मंदिर के चारों ओर काफी चौड़ा आंगन है एवं श्रद्धालु चांदखेड़ी के बड़े बाबा के नाम से पुकारते हैं। बड़े बाबा | आंगन से लगकर तीन ओर बड़ी दो मंजिला धर्मशाला का निर्माण की छबि इतनी मनोज्ञ एवं सजीव है कि दर्शनार्थी दर्शन करते ही है। 50 कमरों की एक नवीन धर्मशाला का निर्माण कार्य गतवर्ष भाव-विभोर हो जीवन को धन्य मानने लगते हैं। एक बार भगवान् पूरा हो चुका है जिसमें सभी कमरे बड़े एवं सुविधाजनक हैं। के सम्मुख दर्शन के लिए बैठ जाने के बाद उठने का विकल्प मन | मंदिर के उत्तर में मंदिर परिसर से लगकर बहती हुई रूपली नदी में नहीं आता और प्रतिमा की छबि हृदय में समाती चली जाती है। ऐसी लगती है मानो बड़े बाबा के चरण छूने ही उसने अपना स्थान प्रतिमा को एकटक देखने पर प्रतिमा मुस्कराती एवं साँस लेती हुई चुना हो। उत्तर दिशा में ही एक बड़ा प्रवेश द्वार बना हुआ था, नजर आती है। ऐसा लगने लगता है मानो बड़े बाबा भक्त की जिसे लगभग 250 वर्ष पूर्व सुरक्षा की दृष्टि से बंद कर दिया गया भक्तिपूर्ण भावनाओं को समझ मुस्कराकर आशीष दे रहे हैं। जो था। मंदिर के चारों ओर घने बड़े-बड़े कई फलदार वृक्ष लगे हुए भी साधु या श्रावक प्रथम बार बड़े बाबा के दर्शन करते हैं, सभी हैं जिनसे भी यह क्षेत्र और अधिक शोभा पाता है। मंदिर एवं एक ही बात कहते हैं कि उन्होंने ऐसी बेजोड़ एवं बेहोड़ प्रतिमा | धर्मशाला की छतों पर सुबहशाम कई-कई मयूर प्रतिदिन नृत्य भारत वर्ष में कहीं नहीं देखी, धन्य है वह श्रेष्ठी जिसने ऐसे साक्षात | करते हुए देखे जाते हैं। मुख्य मंदिर के पीछे ही नवीन समोशरण भगवान् बनवाने के भाव किये, निश्चित ही वह कोई भव्य जीव | मंदिर बना हुआ है। इस चांदखेड़ी महाअतिशय क्षेत्र पर जिसका होगा। वह शिल्पी भी धन्य है जिसने अपनी शिल्प साधना से एक | कि कण-कण पूज्य एवं अतिशय युक्त है, साधु संत आते रहते हैं अनुपम एवं अकल्पनीय किंतु सत्य रूप प्रकट कर स्वयं को धन्य | एवं चौमासा कर बड़े बाबा के चरणों में अपनी साधना को बढ़ाते किया।
गुफातल में ही अतिप्राचीन भगवान् महावीर की मूलनायक आदिनाथ भगवान् एवं मंदिर के इतिहास के अष्टप्रातिहार्य युक्त लाल पाषाण की मनमोहक प्रतिमा विराजमान बारे में जानकारी मिलती है कि बड़े बाबा की प्रतिमा चांदखेड़ी है। बड़े बाबा के दोनों ओर सफेद पाषाण की कई छोटी-बड़ी क्षेत्र से छह मील दूर शेरगढ़ की बारहपाटी पर्वत माला के एक मूर्तियाँ विराजमान हैं। अनेकों बार बड़े बाबा की प्रतिमा से अविरल हिस्से में जमीन में दबी हुई थी। कोटा स्टेट के तात्कालिक दीवान जल की धारा अचानक फूट पड़ने का अतिशय हजारों लोगों ने सेठ किशनदास जी, जो कि सांगोद के निवासी थे उन्हें एक रात देखा है। और भी कई अतिशय इस क्षेत्र पर लोगों ने साक्षात देखे | बड़े बाबा की प्रतिमा का स्पप्न आया। वे स्वप्न के अनुसार प्रतिमा हैं। हजारों यात्री पूरे भारत से वर्षभर क्षेत्र पर आते हैं एवं बड़े | को बैलगाड़ी पर सांगोद ले जा रहे थे कि रूपली नदी के किनारे बाबा के दर्शन, पूजा, अभिषेक से, सातिशय पुण्य का बंध कर ] एक टेक पर बैलगाड़ी रुक गई एवं बैल पछाड़ खा गये। दूसरे कई अपनी अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति पाते हैं।
जोड़ी बैलों के द्वारा गाड़ी को खींचने का प्रयास किया गया, परन्तु
सफलता नहीं मिली। अंत में सेठ किशनदास जी ने उसी स्थान पर 20 अप्रैल 2003 जिनभाषित -
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