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आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य
जनवरी, 2003 जिनभाषित अंक का 'सम्पादकीय'।। आपने सँवारा है वह वास्तव में अनुकरणीय है। आप सदैव इसी टिप्पणियाँ आपने अच्छी की। वास्तव में हम एक दूसरे के ऊपर | तरह के छायाचित्र प्रस्तुत किया करें। इस पत्रिका के लेख सकलन कीचड़ उछालने का कार्य बहुत करने लगे हैं। आपने सम्पादकीय
के योग्य हैं और समय-समय पर हमारे काम में भी आते हैं। जो में यह टिप्पणी कर हम जैसे लोगों को, जिन्होंने पोस्टर रंगे नहीं
पंडित लोग केवल शास्त्रों की भाषा में बात करते हैं, उन्हें आसानी देखे, उन्हें भी जिज्ञासा हो गई है कि वह ब्रह्मचारी कौन है? वह
से इस पत्रिका के माध्यम से समझा भी देते हैं।
विज्ञापन का प्रभाव पत्रिका पर नहीं है, इससे ज्यादा खुशी आचार्य कौन है? कैसे हैं पोस्टर? क्या हैं आक्षेप? आपने पैरा नं.
की बात क्या होगी। बैनाड़ा जी का शंका-समाधान भी काफी 2 में परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्यश्री के संघ का उदाहरण
चुनौतियों से भरा है इसके लिए उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करें। देकर यह कहने का प्रयास किया कि वे सभी संघ जिनमें मुनि
अजय जैन, चौक बाजार, भोपाल आर्यिका रहती हैं उनका आचरण संदिग्ध है? क्या राय देना चाहते मन्दिरजी में दिसम्बर का अंक 'जिनभाषित' प्राप्त हुआ। हैं आप मुनि संघों को? आप हम चतुर्विध संघ की बात करते हैं मन प्रसन्न हुआ। देखा कि इसमें पाँच आलेख विभिन्न ग्रन्थों तो क्या बिना आर्यिकाओं के चतुर्विध संघ की कल्पना भी हो आदि से साभार प्रकाशित किये गये हैं। ऐसा लगा कि इस अंक सकती है? समाज में सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बनाना है। यदि किसी को 'साभार-विशेषांक' कहा जाना चाहिए। यदि एक-दो आलेख, सोने के आभूषण से कान कट जाए तो कान को काट कर फेंकना
वो भी जरूरी हों एवं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हों, तो बात समझ में भी कैसे उचित है? संघ तो मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविकाओं का
आती है, परन्तु अधिकांश लेख साभार प्रकाशित होने से ऐसा लग रहेगा। पेरा नं. 11 में आपका विश्वास बहुत संकुचित विचारधारा
रहा था कि जैसे विचार शून्यता हो गई हो या फिर कोई विषय नहीं
प्राप्त हो रहा हो। अत: आप इस विषय पर अवश्य विचार करेंगे, का प्रतीत होता है। कृपया लेखों में ध्यान हर विद्वान को रखना
ऐसी आशा है। धन्यवाद उचित होगा कि उसकी भाषा से किसी भी संघ के प्रति समाज के
एक स्वाध्यायी आदर में कमी न आ जाए। क्षमायाचना के साथ, सधन्यवाद।
टिप्पणी- जिनागम-सम्मत, सार्थक, सुप्रस्तुत, सुभाषामय, धनकुमार जैन, | सलिखित. एवं संक्षिप्त नये विचार सानुरोध आमंत्रित हैं। 1 झ-28, दादावाडी कोटा-9(राजस्थान)
सम्पादक दिसंबर 2002 का अंक पढ़ा। अंतिम पृष्ठ को जिस तरह
('जिनभाषित' के सम्बन्ध में तथ्यविषयक घोषणा)
प्रकाशन स्थान
1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) प्रकाशन अवधि
मासिक मुद्रक-प्रकाशक
रतनलाल बैनाड़ा राष्ट्रीयता
भारतीय पता
1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) सम्पादक
प्रो. रतनचन्द्र जैन
ए/2, मानसरोवर, शाहपुरा, भोपाल- 462016 (म.प्र.) स्वामित्व
सर्वोदय जैन विद्यापीठ, 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा- 282002 (उ.प्र.) ___ मैं, रतनलाल बैनाड़ा एतद् द्वारा घोषित करता हूँ कि मेरी अधिकतम जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त विवरण सत्य है।
रतनलाल बैनाड़ा, प्रकाशक |
पता
-मार्च 2003 जिनभाषित
।
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