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उन्होंने अंत में तप कल्याणक का महत्त्व समझाते हुए कहा कि वीतरागता आत्मा का स्वभाव है। यही राग से विरागता की ओर ले जाने का एकमात्र रास्ता है। इसे स्वीकारना या न स्वीकारना श्रावकों के ऊपर निर्भर करता है।
आलोक सिंघई
स्वार्थ की आहुति देने पर ही यज्ञ की सार्थकता भोपाल। यदि हमारे जीवन में आत्मानुशासन नहीं है तो हम किसी और को अहिंसा के लिए प्रेरित नहीं कर सकते। अपने स्वार्थी की आहुति करके अहिंसा के अनुष्ठान को सार्थक बनाया जा सकता है। मांस निर्यात देश को गुलामी की ओर ले जाने वाली राह है। आजादी के बाद से हम मांस निर्यात के बढ़ते कारोबार पर अंकुश नहीं लगा सके हैं। यह खतरनाक ही नहीं शर्मनाक कृत्य है। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने आज दशहरा मैदान में चल रहे पंचकल्याणक महोत्सव में वीतरागी आदिनाथ जी के केवल्य ज्ञान प्राप्ति के अवसर पर यह बातें अज्ञान की गाँठें खोलते हुए कहीं।
देश भर से राजधानी पहुँचे हजारों श्रद्धालुओं को मोक्षमार्ग की राह दिखाते हुए आचार्यश्री ने कहा कि अहिंसा, हिंसा का निगेटिव रूप है। हिंसा का अभाव ही अहिंसा है। किसी के ऊपर शासन चलाने का भाव अहिंसा को टीस पहुँचाने वाला होता है । जो आत्मानुशासित हो वह किसी को टीस नहीं पहुँचा सकता पिछले पचास सालों में हमने एक ऐसे लोकतंत्र की नींव रखी हैं जिसमें हर व्यक्ति अपना शासन चाहता है । वह यह नहीं सोचता कि हिंसा पर आधारित शासन कभी सुख और शांति नहीं ला सकता । मनुष्य के संरक्षण के लिए पशु का वध मान्य नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद मांस निर्यात आजाद हिंदुस्तान में बढ़ता जा रहा है। आखिर गोधन को मिटाकर हम कौन सा धन देश में लाना चाहते हैं? उन्होंने कहा कि छोटे बच्चे को तो यह बात समझ में नहीं आ सकती लेकिन पचास साल पुराने देश की सरकारों को तो यह बात समझ लेनी चाहिए। उन्होंने अहिंसा प्रेमी देशभक्तों का आह्वान करते हुए कहा कि वे आपस में ऐसा तालमेल बनाएँ कि सरकारें मांस निर्यात जैसे घृणित कारोबार से देश को पशु संपदा से वंचित करने का कुकृत्य बंद करने पर मजबूर हो जायें।
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उन्होंने वृक्षारोपण की महत्ता प्रतिपादित करते हुए कहा कि हार्वेस्टर पर आधारित कृषि देश को परतंत्र करने का ही माध्यम है। सरकारें अभयारण्य बनाकर जंगली पशुओं को तो संरक्षित कर रही हैं वहीं पालतू जानवरों के मांस निर्यात पर कोई अंकुश नहीं लगा रही। उन्होंने कहा कि घास-फूस भी रहना चाहिए और उसे खाने वाले पशु भी। क्योंकि पशुओं से ही दयाभाव उपजता है। घर सदस्यों से तो मोह उपजता है लेकिन मूक पशु ही सेवा हमारे मन में दया का भाव जगाती है।
उन्होंने कहा कि हाथी मांगलिक माना जाता है। वह कभी मांसाहारी नहीं होता। वह अनुकूल भोजन न मिलने पर उपवास कर लेता है लेकिन कभी मांस की ओर निगाह नहीं
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फेरता । जबकि कई लोग एक दिन के भोजन के लिए गाय का मांस, चर्बी, रक्त का निर्यात कर रहे हैं। बैर की अग्नि और आतंक से बचने के लिए शांति की चाहत में भागते खरगोश की कथा सुनाते हुए उन्होने कहा कि वह आत्मानुशासन से बँधे हाथी के पैर तले भी जब सुरक्षित रह सकता है, तो विपरीत स्वभाव रखने वाले लोग शांति की चाहत में एक साथ क्यों नहीं रह सकते। उन्होंने कहा कि इसी तरह मूक एवं पालूत जैसे निरीह प्राणियों की आबादी यदि इंसानों के बराबर भी हो जाए तो भी हमारी परिस्थिति पर इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा।
आलोक सिंघई संतही ला सकते हैं विश्व में शांति सेनाध्यक्ष नहीं डॉ. भाई महावीर
अपना घर फूँककर दुनिया को रास्ता दिखाने वाले संत ही विश्व में शांति ला सकते हैं। यह कार्य किसी सेनाध्यज्ञ के बस में नहीं। प्रदेश के राज्यपाल डॉ. भाई महावीर ने आज पंचकल्याणक महोत्सव में भाग लेने पहुँचे श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए यह बात कही। उनके साथ केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री रमेश बैस, नागालैंड के पूर्व राज्यपाल ओ. एन. श्रीवास्तव, भोविप्रा अध्यक्ष अशोक जैन भाभा, आनंद तारण, जैन धर्म श्रेष्ठी मदन लाल बैनाड़ा, पार्षद हेमलता कोठारी, विश्वास सारंग, महेश सिंघई, शरद जैन, कुंडलपुर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष संतोष सिंघई आदि अनेक लोग भी मौजूद थे।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में महामहिम ने कहा कि सूर्य के समान तेजस्वी संतों के सान्निध्य में आकर कुछ बोलना सूरज को दिया दिखाना है। उन्होंने कहा कि विश्व में शांति की प्यास है। शांति की चिंता से ही करते हैं जिन्होंने खून की नदियाँ बहाई हैं। ईसा से छह सौ वर्ष पहले यानि 2600 वर्ष पहले भगवान् महावीर स्वामी ने मूक प्राणियों एवं पेड़-पौधों की रक्षा के प्रति अपनी संवेदना प्रदर्शित की थी। बाद में भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने टिस्कोग्राफ बनाकर बताया कि वनस्पतियों में भी जीवन होता है। वे भी हमारे विचारों के प्रति उतनी ही संवेदनशील होती हैं, जितने अन्य प्राणी । उन्होंने कहा कि इसी कारण यही सच्चाई है कि विश्व शांति संत ही ला सकते हैं, क्योंकि वे प्राणी मात्र के प्रति बेहद संवदेनशील होते हैं।
केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस ने बताया कि मध्यप्रदेश में गौवध प्रतिबंध लगाने का कार्य भाजपा शासनकाल में यहाँ के मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने किया था। उन्होंने कहा कि शाकाहारी भोजन करने वालों की सोच सकारात्मक होती है। मैं कोशिश कर रहा हूँ कि मांसाहार बंद हो। इससे भारत अपनी खोई प्रतिष्ठा पुनः अर्जित कर विश्व का मार्गदर्शन कर सकेगा। उन्होंने कहा कि बाजार में मिलने वाले खाद्य पदार्थों पर शाकाहारी या मांसाहारी पदार्थों की पहचान के बाद अब दवाईयों में भी ऐसा ही निशान लगाने की पहल की जा रही है। इससे शाकाहारियों को अनजाने में हिंसा आधारित खाद्य पदार्थ के सेवन के खतरे से निजात मिल सकेगी। आलोक सिंचाई -फरवरी 2003 जिनभाषित
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