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जीवन काल में मरने की साधना की फिर निर्भय होकर शरीर को होश पूर्वक स्वेच्छा से प्रसन्न भावों के साथ छोड़ दिया। उन्होंने प्रवृत्ति को छोड़कर निवृत्ति को अपनाया । स्वीकारा इस समय मन के पक्षपात दूर हो जाते हैं। एवं आत्महित का चिन्तन बढ़ता है। दीर्घकाल की साधना के अभ्यास से विचारों में परिपक्वता आती है, अनुभव प्रौढ़ होता जाता है। जैन दर्शन में कहा है कि जब तक जनम-मरण है, तो संसार है, जन्म है तो मरण निश्चित ही जानो । वैसा ही ईसाई ग्रंथों में लिखा है- "मौत पाप का फल है "। इसलिये वे रत्ननात्रय की एकता को धारण कर विविधताओं, भिन्नताओं, अभिलाषाओं, लालसाओं का त्यागकर मानवीय आदर्श एवं मूल्यों को प्राप्त कर नियमित जीवन पद्धति के अधिकारी बने। धर्म एक जीवन जीने का ऐसा तरीका जो जीवन के कार्यों और क्रियाओं को संयोजित और नियंत्रित करता है। मोह की जड़ों को उखाड़ कर फेंकने वाले निर्मोही आचार्य ज्ञानसागर जी थे। आकुलता और व्याकुलता से रीता जीवन जीने वाले साधक थे । ध्यान रहे भोगी का जीवन स्वार्थ पूर्ण संकीर्ण दृष्टिकोण के साथ बीतता है ।
छत्तीसगढ़ में जैन समुदाय अल्पसंख्यक घोषित
भोपाल / छत्तीसगढ़ राज्य में छत्तीसगढ़ के मूल निवासी जैन समुदाय को छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने अल्पसंख्यक घोषित कर दिया है। छत्तीसगढ़ राज्य के राजपत्र ( असाधारण) क्र. 328 में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के नाम से एवं आदेशानुसार आदिमजाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग, मंत्रालय, दाऊ कल्याण सिंह भवन, रायपुर के संयुक्त सचिव ए. के. द्विवेदी के नाम से 24 दिसम्बर 02 को एक अधिसूचना प्रकाशित हुई है।
अधिसूचना क्रमांक एफ/5882/2614/ आजावि/ 2002 के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1996 की धारा 2 के खण्ड (ग) के उप-खण्ड (दो) द्वारा प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए, राज्य सरकार, एतद् द्वारा, उक्त अधिनियम के प्रयोजन के लिए, छत्तीसगढ़ के मूल निवासी जैन समुदाय को, अल्पसंख्यक समुदाय के रुप में अधिसूचित करती है ।
वह जीवन कदापि उपादेय नहीं, जिसमें भोग के लिए स्थान हो । जो आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता हो वही जीवन सर्वोच्च एवं सर्वोपरि है। यह सत्य है कि त्याग द्वारा अर्जित संस्कारों का कभी विनाश नहीं होता । जो आत्मा का पोषण करना भूल जाता है वह शरीर के पोषण में लगा रहता है और उन्नति का मार्ग अवरुद्ध कर लेता है। यह संसार स्वार्थों का अखाड़ा है। इसकी अनित्यता और अनिश्चितता सभी को कष्ट देती है। वे इस संसार की असारता, शरीर की क्षणभंगुरता को जानते थे इसलिए साधना का सर्वश्रेष्ठ मार्ग अपनाकर आत्मा का जीर्णोद्धार कर लिया। समाधि आत्मा का उपकारक तत्व है यह साधना की अन्तिम श्रेणी है। इससे मनुष्य क्या पशु का भी हित हो जाता है। यह सच है जो आत्मदर्शन कर लेता है, उसे ही निराकुल सुख की उपलब्धि होती है। समाधि की साधना से कषाय में विकार धूमिल हो जाते हैं। व्रत का अर्थ धार्मिक संकल्प है जिसको आत्मानुशासन की दृष्टि से स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किये जाते हैं। जो संकल्पों को पूर्णरूप से पालता है वही सही अर्थों में व्रतों से दीक्षित है । इसलिये कहा भी है- "अंत भला तो सब भला । "
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स्मरणीय है कि राज्य की जैन समाज विगत दीर्घ कालावधि से राज्य में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित किए जाने की माँग करती रही है। विगत दो वर्ष पूर्व कुण्डलपुर (दमोह) में आयोजित पंचकल्याणक एवं गजरथ महोत्सव के अवसर पर सन्तशिरोमणी दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सान्निध्य में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी ने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घेषित करने हेतु संकल्प किया था। उस संकल्प का स्मरण करते हुए भगवान् महावीर के 2600 वीं जन्म जयन्ती वर्ष की समाप्ति की पूर्व संध्या पर महावीर जयंती के एक दिन पहले रायपुर में आयोजित धर्मसभा में उन्होंने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित किया था।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री जोगी से जैन समाज का यह भी अनुरोध है कि जिस प्रकार म.प्र. के मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह ने म.प्र. विधानसभा में आवश्यक संशोधन पारित कराकर म.प्र. राज्य अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1996 में संशोधन कराया है और आयोग की सदस्य संख्या को दो से बढ़ाकर चार करके जैन तथा बौद्ध समुदाय के प्रतिनिधियों को उसमें सम्मिलित करने का निर्णय लिया है, इसी प्रकार जोगी जी छत्तीसगढ़ में भी आवश्यक संशोधन कराकर छत्तीसगढ़ राज्य अल्पसंख्यक आयोग में जैन समुदाय के सदस्य को प्रतिनिधित्व प्रदान करें। छत्तीसगढ़ में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने के अवसर पर जैन समाज श्री जोगी को साधुवाद प्रदान करता है।
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-फरवरी 2003 जिनभाषित
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