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________________ तथा जाक गोबर में मृत्र में असंख्यात जीव उपजे हैं। सत्तोपशम से तथा देशघाति स्पर्धकों के उदय से उत्पन्न होने के यदि चर्चा सागर के अलावा अन्य भी किसी ग्रंथ में गोबर | कारण क्षायोपशमिक कहलाने वाला वीर्य बढ़ता है, तब उस वीर्य rसे पूजा का विधान मिलता है, उसे बिलकुल अनुचित मानना को पाकर चूँकि जीव प्रदेशों का संकोच-विकोच बढ़ता है, इसलिए चाहिए। गोबर आदि का उपयोग लौकिक शुद्धि के लिए तो किया | योग क्षायोपशमिक कहा गया है। जा सकता है. लेकिन गोबर को भगवान् जिनेन्द्र की आरती की अर्थात् वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से होने के कारण सामग्री बताना महाभूल है। कथंचित क्षायोपशमिक भाव है। वास्तव में चर्चासागर ग्रन्थ को आगम प्रमाण नहीं मानना 3. योग में पारणामिकभावपना- (अ) श्री धवला पु. 5. चाहिए। उपरोक्त प्रसंग के अलावा इस ग्रंथ में और भी बहुत से पृष्ठ-225 पर इस प्रकार कहा है- "योग न तो औपमिक भाव प्रसंग आगम विरुद्ध लिखे गये हैं। जिन भाइयों को चर्चासागर ग्रंथ है, क्योंकि मोहनीय के उपशम नहीं होने पर भी योग पाया जाता की असलियत जाननी हो वे कृपया पं. परमेष्ठीदास जी एवं पं. है।'' (आ) न वह क्षायिक भाव है, क्योंकि आत्मस्वरूप से रहित गजाधरलाल जी शास्त्री द्वारा लिखित चर्चासागर समीक्षा पढ़ने का योग की, कर्मों के क्षय से उत्पत्ति मानने में विरोध आता है। (इ) कष्ट करें। योग घातिकर्मोदय जनित भी नहीं है, क्योंकि घातिकर्मोदय के नष्ट जिज्ञासा- योग कौन सा भाव है? होने पर भी सयोगकेवली में योग का सद्भाव पाया जाता है तथा समाधान आचार्यों ने योग को विभिन्न अपेक्षाओं से योग अघातिकर्मोदयजनित भी नहीं है, क्योंकि अघातिकर्मोदय के कथंचित् औदयिक भाव, कथंचित पारिणामिक भाव और कथंचित् रहने पर भी अयोगकेवली में योग नहीं पाया जाता। योग शरीर क्षायोपशमिक भाव माना है। इन तीनों भावों की अपेक्षा निम्नप्रकार नामकर्मोदयनित भी नहीं है, क्योंकि पुद्गलविपाकी प्रकृतियां समझ लेनी चाहिए। के जीवपरिस्पंदन का कारण होने में विरोध है। (ई) योग घातिको 1. योग का औदयिकपना- श्रीधवला पु. 5. पृष्ठ-226 के क्षयोपशम से भी उत्पन्न नहीं है क्योंकि इससे भी सयोग केवली में इस प्रकार कहा है- "योग औदयिक भाव है, क्योंकि शरीर में योग के अभाव का प्रसंग आ जाएगा। केवली भगवान के कोई नाम कर्म के उदय का विनाश होने के पश्चात् ही योग का विनाश भी क्षायोपशामक भाव नहीं होता। अत: यदि योग को क्षायोपशमिक पाया जाता है।'' श्री धवला पु. 9. पृष्ठ 316 में इस प्रकार कहा है भाव माना जाए तो वह केवली में नहीं होना चाहिए, जबकि 13वें "योग मार्गणा भी औदयिक है, क्योंकि वह नामकर्म की उदीरणा गुणस्थान में सयोगकेवली के योग पाया जाता है। व उदय से उत्पन्न होती है।" श्री धवल पु. 10, पृष्ठ-436 में इस उपर्युक्त प्रमाणों के द्वारा श्रीधवलाकार ने स्पष्ट किया है प्रकार कहा है- "योग की उत्पत्ति तत्प्रायोग्य अघातिया कर्मोदय कि कथंचित योग के औपशमिक, क्षायिक, औदयिक तथा से होती है, इसीलिये यहाँ औदयिक भाव स्थान है।" क्षायोपशमिक भावपना न होने से पारणामिक भावपना घटित होता 2. योग में क्षायोपशमिकभावपना- श्रीधवला पु. 5, है। उपर्युक्त अपेक्षाओं को समझने से पारस्परिक कोई भी विरोध पृष्ठ-75 में इस प्रकार कहा है- "जब शरीर नामकर्म के उदय से | उत्पन्न नहीं होता। शरीर के योग्य बहुत से पुद्गलों का संचय होता है और वीर्यान्तराय 1/205 , प्रोफैसर्स कालोनी कर्म के सर्वघाति स्पर्धकों के उदयाभाव से वे उन्हीं स्पर्धकों के आगरा- 282002 (उ.प्र.) पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव 6 दिसम्बर, 2002 से 10 दिसम्बर, 2002 तक) 1008 देवाधिदेव श्री भगवान् विमलनाथ के गर्भ, जन्म, । कम्पिल जी कैसे पहुँचे - तप एवं ज्ञान कल्याणकों से पवित्र कम्पिल (जि. फरुर्खावाद) कम्पिल जी कानपुर, कासगंज आगरा मीटर गेज के में मंगल आशीर्वाद : संत शिरोमणि प.पू. 108 आ. श्री कायमगंज स्टेशन के पास स्थित है। यहाँ से कम्पिल जी के विद्यासागर जी महाराज मंगल सान्निध्य: प.पू. 108 मुनि श्री लिये हर समय साधन उपलब्ध है। समता सागर जी महाराज, प.पू. मुनि श्री प्रमाण सागर जी कम्पिल जी आगरा से 150 कि.मी., दिल्ली से 325 महराजा, प.पू. ऐलक श्री निश्चय सागर जी महाराज, कि.मी. और कानपुर 180 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। प्रतिष्ठाचार्य : पं. सनतकुमार विनोद कुमार शास्त्री, पं. सुनील शास्त्री, 962, सेक्टर-7 रजवांस (सागर) आवास विकास कॉलोनी, आगरा फोन- 2277092 -दिसम्बर 2002 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524268
Book TitleJinabhashita 2002 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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