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जिज्ञासा-समाधान
पाठकों से निवेदन है कि वे अपनी जिज्ञासाएँ समाधान हेतु पं. रतनलाल बैनाड़ा
के पास नीचे लिखे पते पर भेजने की कृपा करें।
पं. रतनलाल बैनाडा प्रश्नकर्ता-आशीष जैन, बांसबाड़ा
की चर्चा पाई जाती है। जिज्ञासा-नवधाभक्ति में प्रदक्षिणा देने का विधान नहीं | समाधान- आपका कथन बिल्कुल सत्य है। आचार्य कहा है, तो क्या प्रदक्षिणा देना आगमसंगत है?
पूज्यपाद ने इष्टोपदेश की उपर्युक्त गाथा में तथा आचार्य कुन्दसमाधान- यद्यपि यह ठीक है कि नवधाभक्ति में तीन | कुन्द ने वारसाणुवेक्खा की उपर्युक्त गाथा में, जीव के द्वारा सभी प्रदक्षिणा देने को गर्भित नहीं किया है, परन्तु फिर भी प्रथमानुयोग । पुद्गलों को भोगकर छोड़ने का वर्णन पाया जाता है, लेकिन हमें के अनेक प्रसंगों में मुनिराज को आहार देते समय प्रदक्षिणा देने | उस वर्णन की अपेक्षा निम्नप्रकार समझनी चाहिए। पुद्गल द्रव्य का विधान पाया जाता है। कुछ प्रमाण इस प्रकार हैं:
दो प्रकार का होता है, 1. सादिद्रव्य, 2. अनादिद्रव्य। उसमें से 1. आदिपुराण सर्ग 20/72
अतीत काल में जीव के द्वारा जो पुद्गल द्रव्य ग्रहण कर लिया साध्यं पाद्यं निवेद्यानयोः परीत्य च जगद्गुरुम्। गया हो उसे सादि द्रव्य कहते हैं और अनादिकाल से जीव ने
तौ परं जग्मतुस्तोषं निवाविव गृहागते ।।72 ।। जिसको कभी भी ग्रहण नहीं किया ऐसे पुद्गल द्रव्य को अनादिद्रव्य
अर्थ- उन्होंने भगवान् के चरण कमलों में अर्घसहित जल | | कहते हैं। समस्त पुद्गल द्रव्य में कितना पुद्गल द्रव्य सादि है समर्पित किया, अर्थात् जल से पैर धोकर अर्घ चढ़ाया, जगद्गुरु | और कितना अनादि, इस संबंध में कर्मकाण्ड गाथा-188 में इस भगवान् वृषभदेव की प्रदक्षिणा दी और यह सब कर वे दोनों ही | प्रकार कहा हैइतने सन्तुष्ट हुए मानो उनके घर निधि ही आयी हो ।।72 ।।
जेट्टै समयपबद्धे अतीदकाले हदेण सव्वेण। 2. उत्तरपुराण पुराण सर्ग 74/319 में इस प्रकार कहा है
जीवेण हदे सव्वं सादी होदिति णिद्दिटुं188 ।। कूलनाम महीपालो दृष्ट्वा तं भक्तिभावितः।
अर्थ- उत्कृष्ट समयप्रबद्ध के प्रमाण को अतीतकालीन प्रियङ्गकुसुमागाभस्त्रिः परीत्य प्रदक्षिणाम्॥319॥ | समयों से गुणा करने पर जो प्रमाण हो, सर्वजीव राशि के प्रमाण से
अर्थ- प्रियंगु के फूल के समान कांतिवाले कूल नाम के गुणा करें, जो प्रमाण प्राप्त होवे वह सर्व सादिद्रव्य का प्रमाण है। राजा ने भक्तिभाव से युक्त हो उनके दर्शन किये और तीन प्रदक्षिणाएँ विशेषार्थ- (पूज्य आर्यिका आदिमति जी कृत)- एक
समय में उत्कृष्ट प्रबद्धप्रमाण पुद्गल द्रव्य को ग्रहण करे तो 3. वीरवर्धमान चरित्र अधिकार 13/7-8 में इस प्रकार संख्यातावली से सिद्धराशि या गुणा करने पर जो प्रमाण हो उतने कहा है
अतीतकाल के समयों में कितने पुद्गल द्रव्य को ग्रहण करेगा? तत्र कूलाभिधो राजा वीक्ष्य पात्रोत्तमं जिनम्। इस प्रकार त्रैराशिक करना। निधानमिव दुष्प्राप्यं प्राप्यानन्दं परं हृदि॥7॥
प्रमाण राशि एकसमय, फलराशि उत्कृष्ट समयप्रबद्ध, त्रिः परीत्य प्रणम्याशु धृत्वाङ्गपंचकं भुवि।
इच्छाराशि अतीतकाल के समयों का प्रमाण जो सिद्ध राशि से तिष्ठ-तिष्ठ मुदेत्युक्त्वा प्रतिजग्राह धर्मधीः॥8॥ असंख्यातगुणा है। फलराशि से इच्छाराशि को गुणा करके प्रमाणराशि
अर्थ- वहाँ पर कूल नामक धर्मबुद्धि राजा ने सर्वपात्रों में | का भाग देने पर जो प्रमाण हो उतना एक जीव का सादिपुद्गल श्रेष्ठ वीर जिनको देखकर दुष्प्राप्य निधान को पाने के समान हदय | द्रव्य है। इसको सर्वजीवराशि के प्रमाण से गुणा करने पर जो में परम आनन्द मानकर उन्हें तीन प्रदक्षिणा देकर और शीघ्र पंच | प्रमाण हो उतना सर्वजीवों का सादिपुद्गल द्रव्य जानना। इस अंगों को भूमि पर रखते हुए नमस्कार करके "हे भगवन्, तिष्ठ- प्रमाण को सर्वपुद्गल राशि से प्रमाण में से घटाने पर जो शेष रहे तिष्ठ'' ऐसा कहकर अति हर्षित होते हुए उन्हें पडिगाहा।।7-8 ।। | वह अनादिपुद्गल द्रव्य का प्रमाण है। प्रश्नकर्ता- अनिल कुमार जैन, आगरा
इससे यह सिद्ध होता है कि सर्वजीवों के द्वारा भी अतीतकाल जिज्ञासा- क्या हमारे द्वारा भूतकाल में समस्त पुद्गल में सर्वपुद्गल द्रव्य नहीं भोगा गया। द्रव्य भोग लिया गया है या नहीं? इष्टोपदेश की गाथा नं. 30 जिज्ञासा- द्वादशानुप्रेक्षादि में जो कहा गया है कि एक (भुक्तोज्झिता......) तथा वारसाणुवेक्खा गाथा-25 में | जीव ने सर्वपुद्गल द्रव्य को अनन्तबार भोगकर छोड़ दिया वह (सव्वेविपोग्गलाखलु.....) में तो समस्त पुद्गल द्रव्य को भोगने | कैसे संभव है?
-दिसम्बर 2002 जिनभाषित 23
दी।
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