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________________ अनेक रसायनों फ्लेवरों और नये-नये मसालों का खूब प्रयोग हो । अधिकाधिक प्रयोग को हानिकारक बताया है। अभी हाल में ही रहा है। और हम खुश होते हैं कि हम अंतर्राष्ट्रीय भोजन शैली मेकडोनाल्ड कंपनी को भी शाकाहारी भावना को ठेस पहुँचाने के अपना रहे हैं। ध्यान रहे रसोई की शुद्धता आज आवश्यक हो गयी एवज में अच्छा खासा हर्जाना देना पड़ा था। वहाँ पर खान-पान है। खान-पान के मामले में स्वयं दृढ़ रहें और परिवार को भी विशेषज्ञ बड़ी तत्परता से कार्य कर अपना निष्कर्ष देते हैं। यही संस्कारित करें। जागरूकता हम सबको भी विकसित करनी है। 'जिनभाषित' सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने खाद्य पदार्थों को हरे लाल रंग से चिह्नित करने वाली संपूर्ण जानकारी दी है, पर खान-पान पर आयी विकृतियों पर हमारे आचार्य. साधु, कंपनियाँ अपना दायित्व कितना निभा रही हैं यह हम सब देख रहे | विद्वान, आहार विशेषज्ञ, डॉक्टर्स समय-समय पर ध्यान आकर्षित हैं? आवश्यकता है उपभोक्ता जागरूक बनें और आवाज बुलंद कर उचित मार्गदर्शन देते रहते हैं। अत: हमें स्वयं जागरूक बनना करें। खाद्य पदार्थों में क्या है, कंपनियाँ अवश्य लिखें ताकि हमारी | है, और विवेक रखना है कि क्या खायें क्या नहीं। विशेषकर बच्चों शाकाहारी भावना आहत होने से बचे। अमेरिका में जंक फूड, में आहार सबंधी उचित संस्कार डालें, ताकि भावी पीढ़ी एक कोला, सोडा, सॉसेज, वर्गर, पिज्जा आदि के विरुद्ध तेजी से | स्वस्थ समाज के निर्माण में सहायक हो। अभियान चल रहा है। आहार विशेषज्ञों ने अपने शोध से इनके । शिक्षक आवास 6, कुन्दकुन्द महाविद्यालय परिसर खतौली-251201 (उ.प्र.) बालवार्ता हथेली पर बाल क्यों नहीं? डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन, 'भारती' एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा-"बीरबल, | उन्हें इस बात का इल्म ही नहीं होता कि वे सम्पन्नता की राह हथेली पर बाल क्यों नहीं हैं?" | पकड़ें। वे तो मात्र छल-बल से ही सम्पन्नता चाहते हैं। सामाजिक बीरबल ने उत्तर दिया- "बादशाह, सिक्कों की रगड़ के असमानता का कारण भी इसी से है और लोगों के दुःख का कारण हथेली पर बाल नहीं है।" कारण भी यही है। यह कहते-कहते अकबर जैसे किसी गहन अकबर ने बीरबल का यह उत्तर सुनकर फिर पूछा- | विचार में डूब गया हो।" "बीरबल, यदि सिक्कों की रगड़ के कारण हथेली पर बाल नहीं बीरबल ने कहा- "हाँ, बादशाह, आप ठीक कहते हैं। है तो फिर उनकी हथेली पर बाल क्यों नहीं होते, जिनके नसीब योग्यता और सामर्थ्य तदनुकूल पुरुषार्थ से ही आती है। चींटी भी में सिक्कों का स्पर्श लिखा ही नहीं है या जो नितान्त गरीब हैं, अपना भरण-पोषण स्वयं कर लेती है फिर मनुष्य तो पंचेन्द्रिय किसी प्रकार भीख माँग-माँगकर अपनी क्षुधा पूर्ति करते हैं, सम्पन्न प्राणी है। यदि वह ठान ले तो पहाड़ को भी पददलित कर जिनकी आँखों में आशा की चमक भी बिजली की रेखा के सकता है और न चाहे, अकर्मण्य बैठा रहे तो अपना पेट भी नहीं समान क्षीण हो चुकी है, किन्तु आयु शेष होने के कारण जो भर सकता। सब अपनी शक्ति को पहचानकर अच्छी करनी से अपने शरीर को ढोने के लिए विवश हैं?" होगा।" बीरबल ने उत्तर दिया - "बादशाह ! ऐसे लोगों की हथेलियों पर बाल इसलिए नहीं हैं कि जब धनिक लोग सिक्के अकबर यह सुनकर बहुत खुश हुआ। वह गर्व से सभासदों गिन रहे होते हैं, तब वे उनकी धनसम्पन्नता से चिढ़कर अपनी की ओर देखने लगा मानो कह रहा हो कि जिस सभा में बीरबल निर्धनता के वशीभूत हो ईर्ष्यावश हाथ मलते रहते हैं।" जैसा गुणी नररत्न है उसके पास सब कुछ है। . "हाँ बीरबल, तुम ठीक कहते हो। यहाँ विचारणीय है | बच्चो ! हमें मूल कारणों की खोजकर उचित समाधान कि जो दूसरे की धनसम्पन्नता देखकर ईर्ष्या से जलते हैं वे यह | पाना चाहिए। दूसरों की धनसम्पन्नता उनके अपने कार्यों से है क्यों नहीं विचारते कि धन की प्राप्ति नेक कार्यों और उचित हमें भी खूब मेहनत कर पुण्य कमाना चाहिए ताकि पुण्य का पुरुषार्थ करने से होती है। जिनका विवेक मर चुका हैं उन्हें | फल धन-वैभव हमें मिल सके। कौन समझाये। वे तो दिन-रात खोटे विचारों में ही डूबे रहते हैं पता: एल. 65, न्यू इन्दिरा नगर, ए, बुरहानपुर (म.प्र.) 14 दिसम्बर 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524268
Book TitleJinabhashita 2002 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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