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इससे विरुद्ध उसका निम्न कथन द्रष्टव्य है,
किया गया हो। यह श्रद्धा का विषय है। हमारे साधु व श्रावक पृ. 14- "कुण्डग्राम वैशाली का एक उपनगर था इसलिए पूर्वजों ने भी विमर्श करके निर्धारण किया था। उनके द्वारा स्थापित उन्हें 'वैशालिक' कहा गया। निम्न अंश भी दृष्टव्य है," मान्यताओं की स्वीकृति ही उचित है। स्थापित मान्यताओं को
पृ. 68- (जन्माभिषेक के प्रसंग में) "जय-जयकार के | बदला नहीं जाता। साथ शत-सहस्र इन्द्र माहेन्द्र तथा लौकान्तिक देव प्रभु का अभिषेक | दिगम्बर जैन समाज के कतिपय लोग अपने देव-शास्त्रकरते हैं।"
गुरु की धर्मधुरी में से शास्त्र को अप्रामाणिक ठहराकर व अनदेखी यह कथन आगम विरोधी है। लौकान्तिक देव केवल | कर धर्म को जगहँसाई का विषय बना रहे हैं। वैशाली के गाने को दीक्षा कल्याणक में ही भगवान् के वैराग्य की प्रशंसा करने आते समाज कभी स्वीकार न करेगा। आस्थाओं पर कुठाराघात बहुत हैं यह प्रसिद्ध विषय है। "प्राकृत विद्या' परिवार को आगम के महँगा पड़ेगा। इस प्रकार की मान्यताएँ समाज के हाशिए पर ही अवर्णवाद का भय होना चाहिए।'
आ जावेंगी। उन्हें वह कदापि स्वीकार न करेगा। "प्राकृत विद्या" प्रस्तुत विशेषांक में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का एक | के प्रस्तुत अंक में भूगोल के आधार पर गंगा के उत्तर में "विदेह" लेख प्रकाशित हुआ है, उसके कुछ अंशों को यहाँ उद्धृत करना | के अस्तित्व पर बड़ा बल दिया जा रहा है, परन्तु यह भी द्रष्टव्य है चाहूँगा।
कि विदेह के तीन रूप सम्भावित हैं- 1. विदेह जनपद, 2. विदेह पृ. 85- "परन्तु फिर भी वैशाली है, यह सिद्ध नहीं हो | राज्य, 3. महाविदेह । सभी की विदेह संज्ञा ही तो होगी। सका। यह केवल कल्पना की बात रही, अनुमान की बात रही।" | प्राकृत विद्या ने स्वयं"वज्जि-विदेह" को नक्शे में जनपद
पृ. 89- "आपकी खुदाई में जो थोड़े से खिलौने मिले हैं, | ही लिखा है। उससे बृहद् विदेह राज्य व उससे भी विशाल थोड़ी-सी मूर्तियाँ मिली हैं वह काफी नहीं है। किन्तु हमें यह नहीं | महाविदेह (मगध को मिलाकर) का अस्तित्व भी स्वीकार किया समझना चाहिए कि ये जो भग्नावशेष हैं, वही वैशाली है।" | जा सकता है। अत: नालन्दा का निकटवर्ती कुण्डलपुर भी विदेह
उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि इनके द्वारा स्थापित वैशाली | के अन्तर्गत ही तो होगा। इससे भी आगम की अनुकूलता होगी। काल्पनिक है। ये स्वयं इतिहास-भूगोल की वास्तविकताओं से | किसी भी अन्य इतिहास-भूगोल आदि की मान्यताएँ, जो दिगम्बर परिचित नहीं हैं। दूसरों से उधार लेकर कहीं तथ्य उजागर होते | जैन शास्त्रों के विपरीत हैं, कदापि स्वीकार नहीं की जा सकतीं। हैं? दिगम्बर जैन शास्त्रों को प्रमाण न मानकर अन्य प्रमाणों को | "आगम चक्खू साहू" का तात्पर्य यह है कि सभी को आगम से
आँख बंद कर स्वीकार कर लेने से क्या अस्तित्व को बचाये रखना | ही निर्णय करना चाहिए, चाहे वे साधु हों अथवा श्रावक। अनुदान सम्भव होगा?
के लोभ में संस्कृति एवं धर्म की हानि नहीं करना चाहिए। यदि __ निष्कर्ष यह है कि “प्राकृत विद्या" ने वैशाली को भगवान् | हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा। जब हम महावीर की जन्मभूमि सिद्ध करने का जो प्रयत्न किया है, वह | धार्मिक ही नहीं रहेंगे तो धर्म कैसे रहेगा। उसके ही पूर्वापर विरोध, आगम विरोध तथा यद्वा-तद्वा निरूपण
धर्मो रक्षति रक्षितः।। होने के कारण असत्य, अप्रामाणिक सिद्ध हो रहा है। न तो यह
न धर्मों धार्मिकैर्विना॥ काल्पनिक वैशाली, वैशाली है न ही यहाँ भगवान् महावीर का प्रस्तुत प्राकृत विद्या विशेषांक के पृष्ठ 58 पर पं. बलभद्र जन्म हुआ था। वैशाली को सिन्धु देश में ही खोजने की जरूरत जैन का लेख वैशाली-कुण्डग्राम प्रकाशित है, जिसको पत्रिका
परिवार ने वैशाली-कुण्डग्राम के जन्मभूमि समर्थक प्रमाण के रूप हमें दि. जैन शास्त्रों के अनुसार ही अपनी मान्यता बनानी | में ही छापा है। यह तो सम्पूर्णतया हास्यास्पद प्रयत्न ही ज्ञात होता चाहिए। कुण्डलपुर (नालन्दा के निकट) ही भगवान् महावीर की | है, क्योंकि बलभद्र जी ने ही "भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ" जन्मभूमि है। हजारों साल से जन समुदाय इस तीर्थ की वन्दना | (बंगाल-बिहार-उड़ीसा के तीर्थ) नामक ग्रन्थ में (सन् 1975 में करता चला आ रहा है। उसे अनावश्यक इतिहास-भूगोल के | हीराबाग बम्बई से प्रकाशित) कुण्डलपुर तीर्थ के विषय में लिखा पचड़ों में नहीं डालना चाहिए। पूर्व प्रकाशित "शोधादर्श' में | हैंप्रकाशित श्री अजित प्रसाद जैन, लखनऊ के आलेख के उद्धरण | "कुण्डलपुर बिहार प्रान्त के पटना जिले में स्थित है। से "प्राकृत विद्या" यह स्वीकार करती है कि कम-से-कम नौ | यहाँ का पोस्ट आफिस नालन्दा है और निकट का रेलवे स्टेशन सौ वर्षों से तो कुण्डलपुर की वन्दना होती ही आ रही है। वहाँ | भी नालन्दा है। यहाँ भगवान् महावीर के गर्भ, जन्म और तप मन्दिर अभी विद्यमान है। प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता | कल्याणक हुए थे, इस प्रकार की मान्यता कई शताब्दियों ये चली है? जनता जनार्दन को अपना ठिकाना ज्ञात है, उसे यह अपेक्षा | आ रही है। यहाँ पर एक शिखरबन्द मन्दिर है, जिसमें भगवान् नहीं कि कोई उसे बताये। उसे यह मतलब नहीं है कि कब किस | महावीर की श्वेतवर्ण की साढ़े चार फुट अवगाहना वाली भव्य काल में से उसे विदेह या किस नाम के देश, राज्य में उल्लिखित | पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यहाँ वार्षिक मेला चैत्र सुदी 12 से 24 अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित
है।
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