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________________ समाज के उत्थान में युवाओं की भूमिका कु. समता जैन युवा पीढ़ी परिवार, समाज एवं राष्ट्र की महत्त्वपूर्ण सम्पत्ति । की सरिता सूखने नहीं देना चाहिये। उन्हें हमेशा प्रेरित करते रहना है। वर्तमान के संघर्षों और चुनौतियों का सामना करने पर ही वह | चाहिये। जब कोई कार्य युवाओं द्वारा गलत किया जाता है, तो भविष्य बनाती है। अर्थात् पुरानी पीढ़ी का अनुभव एवं नई पीढ़ी | समस्त अनैतिकता एवं बिगड़ते दूषित वातावरण का आरोप भी का संघर्ष अवश्य ही कार्यशील होकर नया निर्माण एवं फलीभूत | प्रायः युवकों पर ही लगा दिया जाता है, लेकिन हम यह भूल जाते हो सकता है। युवा पीढ़ी एवं पुरानी पीढ़ी के मध्य एक लंबा | हैं, कि युवा शक्ति को अधर्म, विध्वंश एवं अनैतिकता की ओर अंतराल होता है। समाज का उत्थान युवा ही कर सकते हैं, | उन्मुख करने में उस समाज का भी योगदान है, जो स्वयं शोषण, क्योंकि बचपन विवेक हीन होता है, जो खेल कूद में बीत जाता | अनाचार और अत्याचार की नींव पर खड़ा है। आज की स्थिति है। तथा बुढ़ापा सामर्थ्यहीन होता है जो रोगों के घिरने के कारण | इतनी विषम है, कि हम अपने को छोड़ सभी को भ्रष्टाचारी एवं निकल जाता है। युवाओं में विवेक तथा सामर्थ्य दोनों ही रहते हैं। पतित सिद्ध करने का दावा करते हैं। हम लोगों में से किसी के बुजुर्ग पुरानी बातें एवं बीते जमाने के गीतों को दोहराते रहते हैं, | पास भी इतना समय नहीं है कि वह आत्मावलोकन करके इस और उसे अच्छा बताते हैं। कभी-कभी ऐसे क्षण भी आते हैं जब | समस्या का सही निदान खोज सके। असंतोष और विद्रोह का विष नई पीढ़ी, पुरानी मान्यताओं, परम्पराओं एवं धारणाओं को ठुकराने | वृक्ष निरंतर ही बढ़ता चला जा रहा है। समाज ऐसा होना चाहिये, की कोशिश करती है, जो उचित नहीं है। इसे नये और पुरानों के | जहाँ युवकों के अंतर्गत भातृत्व, प्रेम, स्नेह, सद्भाव, दया, करुणा, बीच संघर्ष कह सकते हैं। काल चक्र तो गतिमान है; जो बदलते सेवा, परोपकार एवं धर्म के सप्तरंगी मधुर मंजुल इंद्र धनुष लहरायें। परिवेश, परिस्थितियों के अनुसार 'स्व' को ढाल लेते हैं, वे पुराने | युवा वर्ग समाज की पहचान और देश की शान होता है। आज वह होकर भी नये कहे जावेंगें। अपने जीवन के चौराहे पर खड़ा होकर कर्तव्य विमुख हो रहा है। विश्व में किसी भी राष्ट्र, समाज ने उन्नति की है, तो उस युवा समाज भोगवाद के जुनून में अपनी बुद्धि वासना से जोड़ उन्नति की नींव युवाओं के कंधों पर ही मिलेगी। सरदार भगतसिंह, | चुका हो, वहाँ ऐसी परिस्थिति में युवा वर्ग की जीवन दिशा खोज महारानी लक्ष्मीबाई, तात्याटोपे, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस, 1 पाना असंभव तो नहीं, लेकिन कठिन अवश्य है। आज युवा सुभाषचंद्र बोस जैसे महान क्रांतिकारियों ने अपनी कुर्बानी देकर भौतिकता की चकाचौंध में गुम हो गये हैं, ये टेलीविजन संस्कृति फिरंगी सरकार को खदेड़कर भारत देश को आजादी का मंगल | के बढ़ते प्रभाव में भ्रमित सी नकारात्मक दिशा की ओर बढ़ रहे प्रभात दिखाने की भरपूर कोशिश की थी। युवा शक्ति का मूल्यांकन | हैं। युवाओं में दुर्व्यसन भी तेजी से गति पकड़ रहे हैं। जैसे जुआ और सदुपयोग जिस राष्ट्र के नेता ने कर लिया हो, वह राष्ट्र किसी खेलना, शराब पीना, तंबाकू, पान, गुटखा आम बात हो गई है। न किसी दिन विश्व का अजेय शत्रु और स्वर्ग का कोना, अवश्य इसकी गिनती फैशन में होने लगी है। इस प्रकार दुर्व्यसन में करीब बनेगा। 75% युवा पीढ़ी उलझी हुई है, दुर्व्यसन तभी छूट सकते हैं, जब नई पीढ़ी बुद्धिमान, उत्साही एवं सुसंस्कारी भी है। शिक्षा, | वह धर्म के मर्म को समझे। धर्म ही इस भ्रमात्मक स्थिति से व्यवसाय आदि क्षेत्रों में हमारी युवा पीढ़ी धीरे-धीरे ही सही किंतु निकाल सकता है। लेकिन आज भी नई पीढ़ी का धर्म के प्रति प्रतिष्ठित होती जा रही है। यह जैन समाज के लिए खुशी की बात उदासीन होना स्वाभाविक है। आज की पीढ़ी किसी बात को तर्क है आज हमारे समाज के युवा हजारों की संख्या में डाक्टर, इंजीनियर, | की कसौटी पर कसे बिना मानने को तैयार नहीं है। क्योंकि आज सी.ए., केन्द्र एवं राज्य सरकारों में उच्च पदों पर हैं। पत्रकार, कवि | का युग वैज्ञानिक युग है। पर जैन धर्म की आधार शिला भी तो आदि क्षेत्रों में भी नये चेहरे उभर रहे हैं। श्रम, सेवा एवं संस्कारों वैज्ञानिक है। आवश्यकता है, उन्हें सही तरीके से समझाने की। के बल पर ही व्यक्ति आगे बढ़ता है। जिसने संस्कारों को गौण | आज सारे देश में विद्यार्थियों में अनुशासन हीनता बढ़ती जा रही मान लिया, वह उन्नति कर ही नहीं सकता है। और ये संस्कार हमें है। उसका कारण धार्मिक शिक्षा का अभाव है। यदि हम नई पीढ़ी अपने माता-पिता से मिलते हैं। माता-पिता का व्यवहार बिना | को अपनी संस्कृति का ज्ञान नहीं करायेंगे तो वह भटक जायेगी। सिखाये ही बच्चों के अंत:करण में उदारता, सद्भावना, मैत्री, | धार्मिक शिक्षा से नई पीढ़ी को सुसंस्कृत, सभ्य, अहिंसा प्रिय सहयोग और समानता जैसे गुणों का सफल एवं स्थाई प्रत्यारोपण बनाया जा सकता है। और उनका नैतिक स्तर पतन की ओर जाने कर देता है। से रोका जा सकता है। युवा ही समाज के कर्णधार, भूत और भविष्य के सेतु तथा | धर्म के विकास के लिये युवा पीढ़ी में हमें कथनी और वर्तमान के सशक्त आधार होते हैं। उनके अंतरंग से हमें सौहार्द | करनी के अंतर को समाप्त करना होगा। अर्थात् हमें कर्म और 18 सितम्बर 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524266
Book TitleJinabhashita 2002 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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