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________________ फूटने वाले सीधे सरल अंकुर स्वच्छता के गीत गाते आगे बढ़ते हैं । सत्य के असीम आकाश का अनुभव पाने वाले उन पौधों को जीवन रक्षा हेतु संयम का बंधन डालना ही पड़ता है। सूरज के प्रखर तप में तपे परिपक्व फलों का जब दान होता है तब त्याग की मूर्ति बना वह वृक्ष आकिञ्चन्य अकेला खड़ा हुआ उस योगी सा प्रतीत होता है जो स्थित प्रज्ञ परमब्रह्म में तल्लीन हो गया है। बीज से वृक्ष तक की इस जीवन यात्रा में हमें जो बोध मिला है मैं समझता हूँ कि वह अपने आत्मधर्म का समूचा सार संदेश है। क्षमा से ब्रम्होपलब्धि तक का यह ऊर्ध्वारोही उपक्रम हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा का पूर्ण प्रगटीकरण है। ऐसे इस पर्वराज पर्युषण फिरोजाबाद में अभूतपूर्व धर्म प्रभावना अन्यान्य विद्वानों ने भी श्रावण प्रतिपदा वीर देशना के महत्व पर प्रकाश डाला। छदामी लाल जैन, श्री महावीर जिनालय में मुनि संघ विराजमान है, प्रतिदिन प्रातः 7.45 से 9 बजे तक मुनिश्री के प्रवचन होते हैं, जिसमें जैन-जैनेतरों की अपार भीड़ रहती है। रविवार को विशेष प्रवचन विभिन्न स्थानों पर बदल-बदल कर दोपहर 3 बजे से 5 बजे तक होते हैं, जिसमें क्रमशः तीनों महाराज बड़ा ही प्रभावोत्पादक प्रवचन देते हैं। मुनि श्री समतासागर तथा मुनि श्री प्रमाणसागर व ऐलक श्री बड़े ही श्रुत मर्मज्ञ विद्वान हैं । आगम के संदर्भ में आधुनिक विज्ञान तथा व्यावहारिक पक्ष को जोड़कर इस प्रकार ढाल देते हैं कि अबालवृद्ध तथा विद्वान, सभी श्रोताओं के हृदय में बिठा देते हैं । प्रतिदिन 3 से 4 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि तथा 4 से 5 बजे तक रत्नकरण्ड श्रावकाचार का अध्यापन भी चल रहा है (रविवार को छोड़कर) फिरोजाबाद का समाज बड़ा ही भाग्यशाली है। यहाँ आचार्य श्री महावीर कीर्ति मुनि श्री विद्यानंद, आचार्य श्री विद्यासागर जी, आचार्य श्री विमलसागर ससंघ, आचार्य श्री सन्मतिसागर ( अंकलीकर) ससंघ, मुनि श्री अमितसागर जी ससंघ मुनि श्री निर्णयसागर जी आदि महान संतों का चातुर्मास हुआ है। आचार्य श्री विद्यासागर जी का 1975 में इसी महावीर जिनालय में चातुर्मास हुआ था। आज उन्हीं के परम शिष्यों ने धूम मचा रखी है। डॉ. विमला जैन फिरोजाबाद फिरोजाबाद में परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि श्री समतासागर जी तथा मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज एवं ऐलक श्री निश्चयसागर जी का पावन वर्षायोग स्थानीय महावीर बाहुबली जिनालय प्रांगण में अभूतपूर्व धर्म प्रभावना के साथ हो रहा है। महाराज श्री का ससंघ मंगल प्रवेश 13 जुलाई को प्रातः काल हुआ। 14 जुलाई को आचार्य श्री विद्यासागर जी का 34वाँ दीक्षा दिवस बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया, जिसमें भारत के विभिन्न क्षेत्रों से अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने आकर भाग लिया, शोभायात्रा तथा विनयांजलि एवं संस्मरण सुनाने की श्रृंखला प्रातः तथा मध्याह्न दोनों बार काफी देर तक चली। मुनिद्वय तथा ऐलक जी ने अपने गुरु के प्रति आभार भक्ति प्रदर्शित करते हुये रोचक संस्मरण सुनाये। प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जी, श्री अनूपचंद एडवोकेट, डॉ. विमला जैन तथा बैनाड़ा बन्धु (आगरा), सेठ समाई लाल कन्नौज तथा टीकमगढ़, मैनपुरी आदि के अनेक विद्वान तथा गणमान्य श्रेष्ठी पधारे थे । 24 जुलाई को मध्याह्न काल में साधु संघ का वर्षायोग स्थापना कार्यक्रम बड़े ही हर्षोल्लास तथा धूमधाम से हुआ। बाहर से काफी गणमान्य श्रेष्ठी तथा विद्वान अनुमोदना हेतु पधारे। 25 जुलाई को वीरशासन जयंती का कार्यक्रम भी बड़ी धूमधाम से हुआ। मुनिश्री ने सारगर्भित प्रवचन दिये। 12 सितम्बर 2002 जिनभाषित को सिर्फ पारम्परिक पर्व ही नहीं मानना चाहिए। इसे एक आध्यात्मिक प्रयोगशाला भी कहा जा सकता है जिसमें हम स्वयं पर रिसर्च करते हैं, स्वयं का अन्वेषण, स्वयं की खोज करते हैं। यही एक ऐसा अवसर है जिसमें हम दशधर्म के रसायन से आत्मतत्त्व का शोधन करते हैं इसलिये इन पर्वों से हम औपचारिक नहीं किन्तु वास्तविकता से जुड़े। पर्व से जुड़े हुये आयोजनों के प्रयोजन को भी यदि हम आत्मसात करें तो अंदर कुछ नुतन, कुछ नया अतिशय आनन्द घटित हो सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524266
Book TitleJinabhashita 2002 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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