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________________ आ पहुँचे महापंडित धर्मशील एवं राजा सोमसेन, दोनों ने उनसे निवदेन किया कि वे दोनों पक्षों की राय सुनकर कोई निर्णय दें ताकि विवाद समाप्त हो सके। महायोगी उनके कथन से मध्यस्थता करने के लिए सहमत हो गए। उन्होंने सर्वप्रथम राजा सोमसेन से पूछा - "राजन् ! आपने महापंडित धर्मशील के समझाने से 'समयसार' का अर्थ समझा कि नहीं ?" राजा ने कहा- " योगीराज, नहीं। मैंने तो कुछ भी नहीं समझा, यहाँ तक कि मैं समय को भी नहीं समझ सका ।" राजा ने मानो अपना पूर्व कथन ही दुहरा दिया। योगीराज ने फिर महापंडित धर्मशील की ओर मुखातिब होकर कहा-'" पंडित जी । क्या आपने राजा को 'समयसार' का अर्थ अच्छी तरह समझा दिया है ?" महापंडित धर्मशील ने परम सन्तुष्ट भाव से कहा- "हाँ, योगीराज ! मैंने 'समयसार' की प्रत्येक गाथा के एक-एक शब्द, पद के अर्थ एवं भाव समझाये हैं, किन्तु राजा है कि आधे राज्य के लोभ में मानने को तैयार ही नहीं है कि उन्हें समयसार पूरी तरह समझ में आ गया है। " दोनों के उत्तर सुनकर महायोगी ने कुछ चिन्तन किया और बोले कि हे महापंडित, मुझे तो ऐसा लगता है कि आपने अभी भी 'समयसार' का अर्थ नहीं समझा, अन्यथा आप आधे राज्य के लोभ में नहीं पड़ते । धिकार है ऐसे ज्ञान को, जो अर्थ के लिए लालायित रहता है। हे राजन् । आपने भी अर्थ नहीं समझा, अन्यथा आधे राज्य के लोभ में आकर आप भी झूठ नहीं बोलते। किसी के अजमेर, 29 मार्च, 02 होली के दिन शहरी वातावरण से दूर ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र में विशाल दिगम्बर जैन मिलन समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में नवनिर्वाचित विधायक श्री नानकराम जगतराय ने जैन समाज के प्रति आभार प्रदर्शित करते हुए कहा कि मेरे लिये जो भी सेवा आप बतलायेंगे वह मैं सहर्ष करने को तत्पर रहूँगा। समिति की ओर से श्री माणकचन्द्र जैन वकील व श्री ज्ञानचंद जैन द्वारा माल्यार्पण व शाल ओढ़ाकर केशरिया तिलक कर इनके साथ पधारे अन्य गणमान्य अतिथियों का भी स्वागत किया गया। समिति के अध्यक्ष श्री भागचन्द्र गदिया ने बतलाया कि क्षेत्र पर स्थित गोशाला के लिये भारतीय जीव जन्तु कल्याण केन्द्र, चेन्नई द्वारा भगवान् महावीर के 2600वें जन्म कल्याणक 30 अप्रैल 2002 जिनभाषित श्रम का मूल्य नहीं चुकाना घोर शोषण है, पाप है, अत्याचार है जो आप जैसे राजपद पर अधिष्ठित व्यक्ति को शोभा नहीं देता।" Jain Education International महायोगी के युक्त विश्लेषण से दोनों की आँखें खुल चुकी थीं। अतः एक ओर राजा 'समयसार समझाने के बदले महापंडित धर्मशील को आधा क्या पूरा राज्य तक देने के लिए उत्सुक था वहीं महापंडित धर्मशील भी 'समयसार के सही अर्थ को जान चुका था, अतः आत्महित के आगे संसार की सारी सम्पदा उसे तुच्छ प्रतीत होने लगी थी। उसे तो एक ही विचार मन में आ रहा था- "अप्पाणं शरणं मम।" ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र में जैन स्नेहमिलन समारोह सम्पन्न कुछ क्षणों के बाद सबने देखा कि राजा और राज्य की ओर पीठ किये हुए महापंडित धर्मशील योगीराज दिगम्बर मुनि के पीछे-पीछे चले जा रहे था, मानो उसे समय और 'समयसार' दोनों की सार्थकता समझ में आ चुकी हो। एल - 65, न्यू इंदिरा नगर, बुरहानपुर (म. प्र. ) जानने योग्य बातें 1. संसार में दो शाश्वत तीर्थ हैं एक-अयोध्या और दूसरा सम्मेद शिखर । अयोध्या में प्रायः सभी तीर्थंकरों का जन्म होता है और सम्मेदशिखर से निर्वाण । हुंडावसर्पिणी काल के प्रभाव से यह क्रम भंग हुआ । 2. बुन्देलखण्ड के यशस्वी संत थे पूज्य क्षुल्लक गणेशप्रसाद वर्णी, जिन्होंने समय की आवश्यकता पहचानी और कहा- 'आज गजरथ की नहीं, ज्ञानरथ की आवश्यकता है।" 44 वर्ष के अन्तर्गत 90,000 रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ तथा बड़े हर्ष की बात है कि गोशाला आदि हेतु समिति को दिये दान के लिये धारा 80 जी के तहत छूट का प्रावधान भी स्वीकृत हो गया है अतः विमुक्तहस्त से दान देकर पुण्यार्जन कीजियेगा । सह-प्रचार-प्रसार संयोजक हीराचन्द्र जैन ने बतलाया कि दिनांक 21 मार्च से 28 मार्च तक क्षेत्र पर भी शान्तिलाल कासलीवाल, ब्यावर की ओर से श्री सिद्धचक्र मंडल विधान पूजन का भव्य कार्यक्रम सानंद सम्पन्न हुआ। समापन के दिन समिति की ओर से श्री कासलीवालजी का भावभीना सम्मान किया गया तथा इनकी ओर से पूजार्थियों एवं उपस्थित धर्मप्रेमी बन्धुओं के लिये भोजन व्यवस्था रखी गयी। हीराचन्द्र जैन, सह प्रचार-प्रसार संयोजक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524261
Book TitleJinabhashita 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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