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________________ अहिंसा की वैज्ञानिकता एवं उन्नति के उपाय अजित जैन 'जलज' एम.एस-सी. महावीर, अहिंसा और जैनधर्म तीनों एक-दूसरे से इतने अभिन्न | अधिकता के कारण ही उनमें शांत प्रवृत्तियाँ पायी जाती हैं, जबकि रूप से जुड़े हुए हैं कि किसी एक के बिना अन्य की कल्पना करना | मांसाहारी जन्तुओं जैसे शेर आदि में सिरोटोनिन के अभाव से उनमें भी मुश्किल लगता है। अतः महावीर स्वामी के 2000वें जन्मोत्सव | अधिक उत्तेजना, अशांति एवं चंचलता पायी जाती है। पर जैनधर्म की उन्नति हेतु अहिंसा की वैज्ञानिकता सिद्ध करना इसी परिप्रेक्ष्य में, सन् 1993 में जर्नल ऑफ क्रिमीनल जस्टिस सर्वाधिक सामयिक प्रतीत होता है। स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी | एज्युकेशन में फ्लोरिडा स्टेट के अपराध विज्ञानी सी.रे. जैफ्फरी का जैसे महामनीषी भी धर्म और विज्ञान के प्रबल पक्षधर रहे हैं। | वक्तव्य भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि वजह चाहे कोई भी हो, मस्तिष्क जैन धर्म में अहिंसा का विशद् विवेचन किया गया है तथा में सिरोटोनिन का स्तर कम होते ही व्यक्ति आक्रामक और क्रूर हो वर्तमान विज्ञान के आलोक में एक ओर जहाँ अहिंसक आहार में जाता है। अभी हाल में शिकागो ट्रिब्यून में प्रकाशित अग्रलेख भी अपराध, खाद्य-समस्या, जल-समस्या और रोगों का निदान दिखायी | बताता है कि "मस्तिष्क में सिरोटोनिन की मात्रा में गिरावट आते देता है, वहीं दूसरी ओर अहिंसा के द्वारा जैव-विविधता-संरक्षण एवं | ही हिंसक प्रवृत्ति में ऊफान आता है। कीड़ों का महत्त्व भी दृष्टिगोचर होता है। यहाँ यह बताना उचित होगा कि मांस या प्रोटीनयुक्त भोज्य इस प्रकार अहिंसा की जीव वैज्ञानिक आवश्यकता का अनुभव | पदार्थों से, जिनमें ट्रिप्टोफेन नामक अमीनो अम्ल नहीं होता है, होने पर अहिंसा हेतु विभिन्न वैज्ञानिक उपाय, वृक्ष खेती, ऋषि-कृषि, मस्तिष्क में सिरोटोनिन की कमी हो जाती है एवं उत्तेजक तंत्रिका समुद्री खेती, मशरूम खेती, जन्तु विच्छेदन विकल्प, अहिंसक | संचारकों की वृद्धि हो जाती है। इसी से योरोप के विभिन्न उन्नत देशों उत्पाद विक्रय केन्द्र, इत्यादि हमारे सामने आते हैं। में नींद न आने का एक प्रमुख कारण वहाँ के लोगों का मांसाहारी यह सब देखने पर भारत के कतिपय वैज्ञानिकों के इस विचार होना भी है। उपरोक्त सिरोटोनिन एवं अन्य तंत्रिका संचारकों की क्रिया की पुष्टि होती है कि “आधुनिक विज्ञान का आधार बनाने में प्राचीन | विधि पर काम करने पर श्री पॉल ग्रीन गार्ड को सन् 2000 का नोबल भारत का अमूल्य योगदान रहा है।" इसके साथ प्रसिद्ध गाँधीवादी | पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। चिंतक स्व. श्री यशपाल जैन का अपने जीवनभर के अनुभवों का (2) आहार और खाद्यान्न समस्या- वैज्ञानिकों का मानना निचोड़, मुझको निम्नलिखित रूप में लिखने का औचित्य भी समझ | है कि विश्व भर के खाद्य संकट से निपटने के लिये अगले 25 वर्षों में आता है कि "वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता विज्ञान | में खाद्यान्न उपज को 50 प्रतिशत बढ़ाना होगा। और अध्यात्म के समन्वय की है।" इस समस्या का सुंदर समाधान अहिंसक आहार शाकाहार में (क) अहिंसा का जैनधर्म में महत्त्व ही सम्भव है। एक किलोग्राम जन्तु प्रोटीन (मांस) हेतु लगभग 8 कि.ग्रा. वनस्पति प्रोटीन की आवश्यकता होती है। सीधे वनस्पति जैनधर्म में जीवों का विस्तृत वर्गीकरण कर प्रत्येक जीव की उत्पादों का उपयोग करने पर मांसाहार की तुलना में सात गुना सुरक्षा हेतु दिशा-निर्देश हर कहीं मिलते हैं। जैन शास्त्रों में, मांस के व्यक्तियों को पोषण प्रदान किया जा सकता है। स्पर्श से भी हिंसा बतायी गयी है। त्रस हिंसा को तो बिल्कुल ही त्याज्य किसी खाद्य श्रृंखला में प्रत्येक पोषक स्तर पर 90% ऊर्जा बताया है। निरर्थक स्थावर हिंसा भी त्याज्य बतायी गयी है। धर्मार्थ खर्च होकर मात्र 10 प्रतिशत ऊर्जा ही अगले पोषक स्तर तक पहुँच हिंसा, देवताओं के लिये हिंसा, अतिथि के लिये हिंसा, छोटे जीव पाती है। पादप प्लवक, जन्तु प्लवक आदि से होते-होते मछली तक के बदले बड़े जीवों की हिंसा। पापी को पाप से बचाने के लिये मारना, आने में ऊर्जा का बढ़ा भारी भाग नष्ट हो जाता है और ऐसे में एक दुखी या सुखी को मारना, एक के वध में अनेक की रक्षा का विचार, चिंताजनक तथ्य यह है कि विश्व में पकड़ी जानेवाली मछलियों का समाधि में सिद्धि हेतु गुरु का शिरच्छेद, मोक्ष प्राप्ति के लिये हिंसा, एक चौथाई हिस्सा मांस उत्पादक जानवरों को खिला दिया जाता है। भूखे को मांसदान इन सब हिंसाओं को हिंसा मानकर इनको त्यागने इस प्रकार विकराल खाद्यान्न समस्या का एक प्रमुख कारण का निर्देश है और स्पष्ट कहा गया है कि जिनमतसेवी कभी हिंसा नहीं मांसाहार तथा एकमात्र समाधान शाकाहार ही है। करते। (3) आहार और जल समस्या - विश्व के करीब 1.2 अरब विज्ञान के आलोक में अहिंसा व्यक्ति साफ पीने योग्य पानी के अभाव में हैं। ऐसा अनुमान लगाया (1) आहार और अपराध - सात्त्विक भोजन से मस्तिष्क | गया है कि वर्ष 2025 तक विश्व की करीब 2/3 आबादी पानी की में संदमक तंत्रिका संचारक (न्यूरो इनहीबीटरी ट्रान्समीटर्स) उत्पन्न | समस्या से त्रस्त होगी। विश्व के 80 देशों में पानी की कमी है। इस होते हैं जिनसे मस्तिष्क शांत रहता है, वहीं असात्त्विक (प्रोटीन) मांस समस्या के संदर्भ में "एक किलो ग्राम गेहूँ के लिये जहाँ मात्र 900 भोजन से मस्तिष्क में उत्तेजक तंत्रिका संचारक (न्यूरो एक्साइटेटरी लीटर जल खर्च होता है वहीं गोमांस के उत्पादन में 1.00 लाख ट्रान्समीटर्स) उत्पन्न होते हैं जिससे मस्तिष्क अशांत होता है। लीटर जल खर्च होता है। तथ्य को ध्यान में रखने पर अहिंसक आहार गाय, बकरी, भेड़ आदि शाकाहारी जन्तुओं में सिरोटोनिन की | शाकाहार द्वारा जल समस्या का समाधान भी दिखाई दे जाता है। - फरवरी 2002 जिनभाषित 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524259
Book TitleJinabhashita 2002 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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