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उमंग के साथ अभिषेक करने आई थी किन्तु भीड देखकर वह पीछे ही रह गई थी, उस घोषणा से उसे भी अभिषेक का सुअवसर मिल गया। उसके पास मूल्यवान धातु का घड़ा नहीं, नारियल की नरेटी मात्र थी। टिरकले टिरकते मंच पर पहुंची और निष्काम भक्ति के आवेश में भरकर जैसे ही उसने नरेटी के नारिकेल- जल से परम आराध्य बाहुबलिदेव का भक्तिभाव से अभिषेक किया, उससे वह मूर्ति आपादमस्तक सराबोर हो गई। यह देखकर सर्वत्र जयजयकार होने लगा। हर्षोन्मत्त होकर नरनारीगण नृत्य करने लगे।
चामुण्डराय ने उसी समय अपनी गलती का अनुभव किया और सोचने लगा कि सनामुच ही मुझे, सुन्दरतम मूर्ति-निर्माण
तथा उसके महामस्तकाभिषेक में अग्रगामी रहने तथा कल्पनातीत सम्मान मिलने के कारण अभिमान हो गया था। उसी का यह फल है कि सबके आगे आज मुझे अपमानित होना पड़ा है। इतिहास में इस घटना की चर्चा अवश्य आयेगी और मेरे इस अहंकार को भावी पीढ़ी अवश्य कोसेगी। चामुण्डराय का अहंकार विगलित हो गया। वह माता गुल्लिकाज्जयी (10वीं सदी) के पास गया। विनम्र भाव से उसके चरण स्पर्श किये, उसकी बड़ी सराहना की और उसकी यशोगाथा को स्थायी बनाये रखने के लिये उसने आँगन के बाहर, गोम्मटेश के ठीक सामने उसकी मूर्ति स्थापित करा दी। यहीं नहीं गोम्मटेश की मूर्ति के दर्शनों के लिये जाने लगते हैं तब प्रारंभ में ही जो प्रवेशद्वार
गोलगंज 'अहिंसा स्थली' बना
छिंदवाड़ा। वर्ष 2001 को भगवान महावीर स्वामी की 2600 वीं जन्म जयंती 'अहिंसा वर्ष' के रूप में पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। अहिंसा वर्ष में नगर पालिका परिषद् छिंदवाड़ा ने नगर के हृदय स्थली गोलगंज का नामकरण 'अहिंसा स्थली' करने का प्रस्ताव पास किया है। परम पूज्य ऐलक श्री उदारसागर जी महाराज की 14 वें दीक्षा दिवस के पावन अवसर पर शाकाहार परिषद्, जबलपुर के अध्यक्ष सुरेश जैन ने धर्म सभा में गोलगंज को 'अहिंसा स्थली' घोषित किये जाने का प्रस्ताव रखा। जिसे सकल जैन समाज ने हर्ष ध्वनी से पारित किया। ऐलक श्री उदारसागर जी एवं क्षुल्लक श्री नयसागर जी महाराज की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से यह कार्य फलीभूत हुआ है।
गोलगंज का मुख्य नाम गोदगंज हैं, जो कि समय के साथ बदलते हुए गोलगंज हो गया। इस क्षेत्र में रहने वाले परिवारों में बच्चे नहीं बचने या नहीं होने के कारण परिवारों को अपने उत्तराधिकारी के लिये बच्चा गोद लेना पड़ता था। गोल घेरे में होने के कारण वर्तमान में यह क्षेत्र गोलगंज कहलाया । गोलगंज का नामकरण अहिंसा स्थली हो जाने से यहाँ शराब (मदिरा), मांस, अंडा, आदि मांसाहारी वस्तुओं की बिक्री पर प्रतिबंध लग गया है। गोलगंज का नामकरण अहिंसा स्थली हो जाने पर जैन समाज को अति प्रसन्नता हुई। सकल जैन महासभा ने इस कार्य को करने के लिये नगर पालिका परिषद् को साधुवाद एवं धन्यवाद प्रेषित किया। सकल दिगम्बर जैन महासभा, खंडेलवाल समाज, परवार समाज, श्वेतांबर जैन समाज, गुजराती जैन समाज, गोलापूरब समाज, तारण तरण जैन समाज, मुमुक्ष मंडल एवं अन्य जैन संगठनों ने नगर पालिका परिषद् का आभार माना है। सकल दिगम्बर जैन महासभा के अध्यक्ष धन्यकुमार गोयल ने गोलगंज वासियों से अपील एवं निवेदन किया है कि वे अपने पते में गोलगंज के स्थान पर 'अहिंसा स्थली' लिखना प्रारंभ कर दें। संजय जैन 'बज' 10, पाटनी कॉम्प्लेक्स, परासिया रोड, छिंदवाड़ा (म.प्र.)
20 सितम्बर 2001 जिनभाषित
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बनवाया गया, उसका नामकरण भी उसी भक्त महिला की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये नाम रखा गया 'गुल्लिकाज्जयी बागुल अर्थात् बेंगनबाई का दरवाजा
उस दिन चामुण्डराय ने प्रथम बार यह अनुभव किया कि प्रचुर मात्रा में धन-व्यय, अटूट वैभव एवं सम्प्रभुता के कारण उत्पन्न अहंकार के साथ महामस्तकाभिषेक के लिये प्रयुक्त स्वर्णकलश भी सहज स्वाभाविक निष्काम भक्तियुक्त एक नरेटी भर नारिकेलजल के सम्मुख तुच्छ है। यह भी अनुश्रुति है कि वह गुल्लिकाज्जयी महिला, महिला नहीं बल्कि उस रूप में कुष्माण्डिनी देवी ही चामुण्डराय की परीक्षा लेने और निरहंकारी बनने की सीख देने के लिये वहाँ आई थी। महाजन टोली नं. 1 आरा- 802301 (बिहार)
गीत
शहनाई पर गीत कोई अव गाये कैसे
शहनाई पर गीत कोई अब गाए कैसे आपस में टकराते दोनों के कसूल है। तुम डाली पर फुदक रहे उस चिड़िया जैसे हम मिट्टी, कागज, चिन्दी की गुड़िया जैसे तुम हवा पहन कर नील गगन में उड़ने वाले हम मिट्टी की गंध, जाति से जुड़ने वाले कोई सांझा स्वप्न नींद में आए कैसे एक दूसरे की आंखों में हम बबूल है।
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बंदूकों में अमन-चैन तुम कसने वाले हम बारूदी छत के नीचे बसने वाले कहाँ जाए आतंकित हर पल रहने वाले आस-पास में नाग बसे हैं इसने वाले समझौते की छोर हाथ में आए कैसे एक दूसरे को लगते दोनों फिजूल है। 2।
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अशोक शर्मा
चला रहे तुम देश झलकती मगरूरी है और झेलना इसे हमारी मजबूरी है अपना-अपना बोझ लगे दोनों को भारी अपनी-अपनी कैद घुटन भी लगती प्यारी अंधकूप से बाहर कोई आए कैसे अपने-अपने घेरे दोनों को कबूल है। 3।
हैं।3। अभ्युदय निवास, 36, बी मैत्री बिहार, सुपेला, भिलाई-दुर्ग
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