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________________ केन्द्रीय महिला-परिषद द्वारा पशुचिकित्सा कैम्प का आयोजन शोध-प्रबन्ध संग्रहालय की स्थापना की | एवं भाषा विज्ञान-31 (7) जैनागम-25 जिसमें वर्तमान में लगभग 200 शोध प्रबन्ध (8) जैन न्याय-दर्शन-122, (9) जैन संगृहीत हैं। अपनी तरह का यह पहला पुराण- 38 (10) जैन नीति/आचार/धर्म/ संग्रहालय है। योग-42, (11) जैन इतिहास/संस्कृति/ वर्तमान में लगभग 75 विश्वविद्या- कला/पुरातत्त्व-65 (12) जैन-बौद्ध तुलनालयों से जैन विद्याओं में शोध हो रहा है। त्मक अध्ययन-17, (13) जैन- वैदिक लगभग 35 स्वतंत्र संस्थान जैन विद्याओं पर | तुलनात्मक अध्ययन 21 (14) जैन रामशोध कराने का दम भरते हैं, किन्तु 4-5 को कथा साहित्य-38 (15) व्यक्तित्व एवं छोड़कर कहीं से भी शोध उपाधियाँ नहीं मिली कृतित्व- 60, (16) जैन विज्ञान एवं हैं। सच पूछा जाए तो वहाँ न शोध है न | गणित-09 (17) जैन समाज शास्त्र-13 संस्थान, मात्र कागजी शोध-संस्थान हैं। । (18) जैन अर्थशास्त्र-05, (19) जैन शिक्षा अनेकों के पास न स्वतंत्र भवन हैं, न शास्त्र-06 (20) जैन राजनीति-14, (21) पुस्तकालय, यह कटु सत्य है। पन्द्रह जैन मनोविज्ञान/भूगोल-08 (22) अन्यविश्वविद्यालयों में प्राकृत एवं जैन विद्याओं के 22, (23) विदेशी विश्वविद्यालयों से शोध अध्ययन के लिए स्वतंत्र या संयुक्त विभाग लगभग-80 इस प्रकार हमे देखते हैं कि जैन अब तक लगभग 100 निदेशकों के विद्याओं पर काफी शोध-कार्य हो चुका है, पर नाम हमें मिले हैं, जिनके निर्देशन में जैन | इससे भी कई गुना क्षेत्र आज भी अछूता पड़ा विद्याओं पर शोध कार्य हुए हैं। इनमें अनेक | है। जैन आगम और न्याय/दर्शन पर ही अजैन हैं। जैन विद्याओं पर हुए शोधकार्य में | सहस्रों शोधकार्य हो सकते हैं। जैन संस्कृत महिलाएं भी अग्रणी रही हैं। शोध कार्य करने साहित्य का बहुत सा भाग तो आज अछूता वालों में जैन एवं जैनेतर दोनों तरह के विद्वान ही है, अनेक संस्कृत पुस्तकें है जिनके सम्पादन और आलोचनात्मक या एकपक्षीय विदेशों में भी जैन विद्याओं पर अध्ययन पर शोध कार्य किया जा सकता है। लगभग 50 शोध प्रबंध लिखे जाने की प्राकृत और अपभ्रंश के भी अनेक ग्रन्थ जानकारी है। मुनि सुशील कुमार जी के प्रयास | शोधार्थियों की बाट जोह रहे हैं। जैन साहित्य से 1993 में कोलम्बिया विश्वविद्यालय में में समाज/अर्थ/ मनोविज्ञान/ भूगोल/शिक्षा एक जैन चेयर की स्थापना हुई थी। मुनि श्री आदि के जो तत्त्व हैं उनका आकलन होना सुशील कुमार जी ने ही न्यूयार्क में अहिंसा बाकी है। आवश्यकता है एक समन्वय केन्द्र विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। कनाड़ा एवं की जो इस विषय में शोधार्थियों को मार्गदर्शन यू.एस.ए. में ब्राह्मी सोसायटी नामक संस्था दे सके। कार्यरत है, साथ ही लगभग 40 जैन सेन्टर आज भारत वर्ष में सभी भाषाओं की अपनी शैशवावस्था में हैं। अकादमियाँ हैं परन्तु प्राकृत भाषा की कोई अभी तक जो शोध कार्य जैन विद्याओं अकादमी नहीं। भगवान महावीर की 2600वीं पर हुआ है उसका लगभग बीस प्रतिशत ही जन्म-जयन्ती के उपलक्ष्य में यदि ऐसी प्रकाशित हो सका है। किसी संस्थान को इन अकादमी की स्थापना हो जाय तो वह स्थायी प्रबन्धों को प्रकाशित करने का वीणा उठाना कार्य होगा। विस्तृत अध्ययन के लिये लेखक चाहिए। की 'प्राकृत एवं जैनविद्या शोध संदर्भ' ___ अब तक हुए शोध प्रबन्धों का | द्वितीय संस्करण, पुस्तक तथा 'इक्कीसवीं विषयवार विवरण निम्न रूप में प्रस्तुत किया | सदी में जैन विद्या शोध' (प्राकृत विद्या, जा सकता है। (1) संस्कृत भाषा एवं | अप्रैल-जून 1997) तथा 1991-93 में साहित्य-161 (2) प्राकृतभाषा एवं | जैन विद्या शोध : एक विश्लेषण (अर्हद्वसाहित्य-41, (3) अपभ्रंश भाषा एवं | चन, अप्रैल 1994) लेख द्रष्टव्य है। साहित्य-41, (4) हिन्दी भाषा एवं साहित्य 6, शिक्षक आवास, 94, (5) जैन गुजराती/मराठी/ राजस्थानी/ श्री कुन्दकुन्द जैन कालेज, दक्षिण भारतीय भाषाएँ- 50 (6) व्याकरण खतौली-252201 (उ.प्र.) "प्यार की कोई भाषा नहीं होती। पशु हमारे स्नेह भरे स्पर्श को पहचानता है। निरीह पशु की देखभाल करना, सेवा करना सर्वश्रेष्ठ सेवा है। भगवान महावीर ने भी कहा है 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्'। धरावरा धाम गोशाला में 13 अप्रैल 2001 को आयोजित पशु चिकित्सा केम्प के समय ये विचार प्रगट किये श्रीमती आशा विनायका केन्द्रीय अध्यक्ष महिला परिषद ने। आपने बताया कि अभी तक लसुड़िया, मांगलिया और पालदा ग्रामों में 3000 पशुओं को खूसडा रोग से बचाव हेतु टीके लगाये गए हैं एवं स्वास्थ्य चेकअप करके डीवार्मिंग की दवा भी दी गई है साथ ही 10 मेटाडोर भूसा दिया गया। 21 पानी पीने की हौदें जगह-जगह पर लगाई गईं। डॉ. डी.आर. पाटील जिला चिकित्सक ने बताया कि इस बीमारी से पशु के खुर और मुँह गल कर गिर जाते हैं और वह दो दिन में मर जाता है। यह बीमारी विशेषकर पंजाब और म.प्र. में बहुतायत से फैल गई है। महिला परिषद ने इस बीमारी को रोकने का सराहनीय कार्य किया है। ग्रामवासियों को पानी छानने का महत्त्व बताते हुए कपड़े की थैलियाँ, क्लोरिन आदि बाँटी गई। साथ ही कम-से-कम पानी का उपयोग कैसे किया जाए एवं स्वच्छ स्वास्थ्यवर्धक भोजन से बच्चों एवं परिवार के स्वास्थ्य का ख्याल कैसे रखा जाए इसकी विस्तृत जानकारी दी गई। श्रीमती आशा विनायका, इन्दौर, म.प्र. -जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524254
Book TitleJinabhashita 2001 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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