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________________ पर्व नियति का मोड़ है, पर्व जीवन की साधना का फल है पर्व जीवन की भागमभाग के मध्य सुकून का क्षण है, पर्व वैभवविलासिता के मध्य आत्मा के उत्थान का अवसर है, पर्व शान्ति का सागर है, पर्व मुक्ति का क्षण है, पर्व क्षमा, मृदुता, सरलता जैसे आत्मिक भावों को पहचानने का निमित्त है, पर्व धर्ममय जीवन के संस्कार पाने की पाठशाला है, पर्व आत्मिक बल की पहचान कराने बाला पारदर्शी यंत्र है, पर्व कुरीतियों, कुगुरुओं, कुसंगतियों के विसर्जन का महत् अवसर है, बस चाहिए उसे अपने तन, मन, का निर्मल स्पर्श यदि यह स्पर्श, संगति मिल गयी तो धर्म का सुखद संगीत आपके जीवन में संचरित हो उठेगा। धन धर्म के दशलक्षण उत्तम क्षमा (क्रोध कषाय का अभाव, बैर रहित स्थिति), उत्तम मार्दव (मान कषाय का अभाव, अहंकार रहित स्थिति), उत्तम आर्जव (माया कषाय का अभाव, सरल भाव, सरल परिणति), उत्तम शौच (लोभ कषाय का अभाव, पवित्रता का जीवरक्षा के लये एक लाख इक्कीसहजार की राशि का संचय परमपूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से शिवपुरी (म.प्र.) में पूज्य मुनिश्री क्षमासागर जी एवं पूज्य मुनिश्री भव्यसागर जी का पावन वर्षायोग महती धर्म प्रभावना के साथ सानन्द चल रहा है। रक्षाबन्धन पर्व पर प्राणीमात्र की रक्षा का संकल्प कर जीवरक्षासंकल्पसूत्र बाँधा गया तथा जीवरक्षा के लिये जीवरक्षा कलश की स्थापना भी समाज की ओर से पूज्य मुनिद्वय के सान्निध्य में की गई तथा जीवरक्षा के लिये एक लाख इक्कीस हजार की राशि जीवरक्षा कलश एवं रक्षासूत्र के माध्यम से संचित की गई। शिवपुरी नगरी में जबसे मुनि श्री क्षमासागर जी एवं मुनिश्री भव्यसागर जी का पावन वर्षायोग स्थापित हुआ है, तबसे शिवपुरी के इतिहास में पहली बार इतनी अधिक धर्म प्रभावना हो रही है कि प्रतिदिन महाराज के प्रवचन में समाज के बन्धुओं के अलावा जैनेतर समाज भी धर्मलाभ लेने के लिये दौड़ा आ रहा है। शिवपुरी समाज ऐसे परम उपकारी मुनियों को पाकर धन्य हो गया है। प्रतिदिन महाराजश्री का मंगलप्रवचन हो या सायंकालीन भक्ति एवं शंकासमाधन का अनूठा कार्यक्रम, सम्पूर्ण कार्यक्रमों से समाज में एक धार्मिक वातावरण तैयार हो गया है। मुनिश्री क्षमासागरजी द्वारा श्रावकों की शंकाओं का समाधान सहजता एवं चित्ताकर्षक भाषाशैली के माध्यम से किया जाता है, जो अनूठी है। महाराजश्री के चातुर्मास से समाज को एक नई दिशा मिली है। सुरेश जैन, मारौरा Jain Education International । संरक्षण), उत्तम सत्य (असद् भावों / कार्यों का अभाव, सत्य व्यवहार), उत्तम संयम (आत्म नियंत्रण, इन्द्रिय विषयों पर नियंत्रण, जीव रक्षा का भाव), उत्तम तप (कर्मक्षय केलिये व्रत-उपवास), उत्तम त्याग (राग-द्वेष का त्याग, औषधि-ज्ञान- अभय और आहार रूप चार प्रकार का दान), उत्तम आकिंचन्य (मैं आत्म द्रव्य हूँ, मेरा कुछ भी नहीं है, सम्पूर्ण परिग्रह के प्रति अनासक्ति), उत्तम ब्रह्मचर्य (पूर्ण आत्मरति, आत्मरमण और आत्मविचरण) मानवीय संभावना की सार्थकता मोक्ष तक ले जाने वाले हैं। आपके / सबके जीवन में धर्म का वास हो, आप सबका आचरण धर्ममय हो, इसी भावना के साथ पर्युषण पर्वराज के प्रसंग पर आत्मिक सफलता हेतु कोटिशः शुभकामनाएँ प्रेषित हैं। एल-65, न्यू इंदिरा नगर (ए) अहिंसा मार्ग, बुरहानपुर (म.प्र.) पिन - 45031 गीत पानी बहता जिन आँखों से पर पीड़ा के नाम For Private & Personal Use Only अशोक शर्मा पानी बहता जिन आँखों से पर पीड़ा के नाम उनके नाम सुबह लिखूंगा और लिखूंगा शाम। सबकी पीड़ा बाँट रहे जो, वे नेपथ्य हुए ऐसे लोग मेरी रचना के केवल कथ्य हुए। जो पीड़ा के स्वांग रचाकर, पीड़ादार दिखे हर बारी हर गीतकार ने उनके गीत लिखे। गढ़-गढ़ मीलों के पत्थर जो खुद में रहे अनाम उनके नाम सुबह लिखूँगा और लिखूँगा शाम ॥1॥ जिन प्यासों ने सदा बुझाई कंठ-कंठ की प्यास उनके घर तक आता कोई दिखा नहीं मधुमास । जो खाली गागर दिखलाकर ताक रहे आकाश उनका ही स्वर्णिम अक्षर से युग लिखता इतिहास | इतिहासों ने गहन- उपेक्षा लिख दी जिनके नाम उनके नाम सुबह लिखूँगा और लिखूँगा शाम ॥ 2 ॥ जिनने कंटक बीन पंथ के पथ को सरल किया। उन लोगों को भर-भर प्याली युग ने गरल दिया जिन लोगों ने आग तेजकर लपट बढ़ाई और उन लोगों का वर्तमान में चमक-दमक का दौर जेठ- दुपहरी जिनके तन ने हँस-हँस झेला पाम उनके नाम सुबह लिखूंगा और लिखूंगा शाम ॥3॥ 36- बी, मैत्रीविहार, सुपेला, भिलाई, जिला-दुर्ग (छत्तीसगढ़) - जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित 15 www.jainelibrary.org
SR No.524254
Book TitleJinabhashita 2001 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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