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हर समस्या सुलझेगी, आप उलझना छोड़ दें
आर्यिका श्री पूर्णमती दिनांक 8 जुलाई 2001 को भोपाल म.प्र. के टी.टी. नगर | आर्यिकाश्री ने प्रबोधित किया कि अभी समय आपके हाथ में स्थित दि. जैन मंदिर में परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी की | है। यदि समय पर चूक गये तो बुढ़ापे में अपने को ठगा हुआ पाओगे। विदुषी शिष्या आर्यिका श्री पूर्णमती
तब पछताने के अलावा और कुछ भी जी के ससंघ वर्षायोग का भव्य
हाथ नहीं लगेगा। आर्यिकाश्री ने कहा शुभारंभ कलशचतुष्टय की स्थापना
कि गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागर जी के साथ हुआ जिसमें निम्नलिखित
ने मुझे यह कहकर भोपाल भेजा है कि कार्य सम्पन्न किये गये
मैं यहाँ के लोगों की तमाम बुराइयाँ, । मंगलाचरण : अजय जैन
परेशानियाँ और संकट अपनी झोली 'अहिंसा' वाकल (कटनी, म.प्र.)
में ले लूँ और बदले में गुरुवर ने अपनी 2. दीप प्रज्ज्वलन : श्री
अमृतवाणी से मुझे अध्यात्म के जो अजित पाटनी
अनमोल मोती दिये हैं वे आपकी 3. ध्वजारोहण : श्री
झोली में डाल दूँ। यह आपके ऊपर विमलचन्द्र जैन, अलंकार वस्त्रालय
है कि आप इस चातुर्मास में इन 4. आचार्य श्री विद्यासागर
मोतियों को लेने के लिये कितना समय जी के चित्र का अनावरण : श्री
निकाल पाते हैं। रवीन्द्र जैन
जिनभाषित को 5. स्थापनाकलश की स्थापना श्री प्रकाशचन्द्र जी जैन,
आशीर्वाद 6. मंगल कलश की स्थापना
आर्यिकारत्न पूर्णमती जी ने श्री संतोष कुमार जी जैन, संगीत
'जिनभाषित' को आशीर्वाद देते हुए सरिता वाले
कहा- "जिनभाषित" में बिन्दु में 7. ज्ञानकलश की स्थापना : श्री रमेशचन्द्र जी मनया
सिन्धु समाया है। यह पत्रिका वर्तमान 8. जीवदयाकलश की स्थापना : श्री वी.के. जैन
भौतिक चकाचौंध के वातावरण में जन-जन की चेतना को अन्तर्मुखी .9. वन्दनीया आर्यिकाओं को शास्त्र भेंट : श्री मनोहरलाल जी बनाने का सामर्थ्य रखती है। वास्तव में मानवमात्र के लिये मानवता टोंग्या आदि दस श्रावकों के द्वारा
का संदेश प्रदान कर सकने में यह पत्रिका पूर्णतः सक्षम है। विभिन्न 10. वन्दनीया आर्यिका पूर्णमती जी को 'जिनभाषित' जन | विषयों से ओतप्रोत 'ज्ञानामृतपान' इसके गम्भीर अध्ययन से संभव 2001 के अंक का समर्पण : प्रो. रतनचन्द्र जैन के द्वारा।
वन्दनीया आर्यिका पूर्णमती जी ने श्रावकों को सम्बोधित करते | यह पत्रिका समाज में व्याप्त अज्ञान एवं कुरीतियों पर नियन्त्रण हए कहा- आज हर घर में समस्याएँ हैं, हर शहर में समस्याएँ हैं. | करने व सम्पूर्ण मानव समूह के लिये उपयोगी एवं आदरणीय बनेगी देश में भी कई समस्याएँ हैं। इन समस्याओं का मूल कारण यह है | एसा आशा ह, क्याक प्रकाशित हान कपूव हा इस अनक सन्ता कि हम अध्यात्म से भटक गये हैं। उन्होंने कहा -
का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। अभी तक कई पत्रिकाएँ निकलीं, उनको हर समस्या सुलझेगी, आप उलझना छोड़ दें।
पढ़ने से लोगों की पत्रिकाओं को पढ़ने की मानसिकता प्रायः समाप्त हर मंजिल मिलेगी, आप भटकना छोड़ दें।।
होती चली जा रही है, क्योंकि उनमें ज्ञानवर्धक सामग्री की बजाय आर्यिकाश्री ने बतलाया कि तमाम समस्याएँ हमने स्वयं पैदा व्यक्तिगत आक्षेपों और विवादों की ही भरमार रहती है।" की हैं। मनुष्य एक-दूसरे से आगे बढ़ने की प्रतिस्पर्धा में अपनी आत्मा आर्यिकाश्री ने आगे कहा - "आज जैसे विश्वभर की जानकारी से दूर होता जा रहा है और जब उसे आत्मा का ज्ञान होता है तब
के लिये घर-घर में टी.वी. की जरूरत महसूस की जाती है वैसे ही बहुत देर हो चुकी होती है, वह बुढ़ापे में हताश होने लगता है कि जिनागम के हृदय को पढ़ने के लिये, रहस्य को जानने के लिये गुरुयह जिन्दगी भी मैंने अपनी आत्मा के कल्याण के बिना ही निकाल आशीष से प्रकाशित इस पत्रिका की जनमानस को आवश्यकता प्रतीत दी। आर्यिकाश्री ने कहा कि एक बार सन्त नानक ने शिष्य से कहा होगी। विशेष यह कि इस पत्रिका में साधु सन्तों या विद्वानों की निन्दा/ कि एक समय आयेगा जब सारी दुनिया ठग हो जायेगी। शिष्य ने आलोचना नहीं है इसलिये यह 'सत्यं शिवं सुन्दरं' की बोलती तस्वीर पछा कि जब सारी दुनिया ठग हो जायेगी तब ठगा कौन जायेगा? | है। अन्त में यही भावना है कि 'जिनभाषित' पत्रिका गुरुकल दीपक नानक जी ने बहुत ही सुन्दर जवाब दिया- 'जो समय पर चुक जायेगा | की तरह जलकर जन-जन के लिये धर्म का प्रकाश देती रहे।' वह ठगा जायेगा।'
जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित 13
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