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________________ नारीलोक गर्भपात : हमारी शून्य होती संवेदनायें .डॉ. ज्योति जैन जैन धर्म में तीर्थंकरों के पाँच रहे हैं। समय के चक्र की विडंबना कल्याणक मनाने की परंपरा है। __ लड़की पैदा होने और बड़ी होने के साथ-साथ उस पर बढ रही | देखिये कि महावीर, बुद्ध और उनका गर्भ कल्याणक भी मनाया हिंसा, बलात्कार, दहेज आदि से निपटने के लिए उन्हें गर्भ में ही गांधी के इस अहिंसावादी देश जाता है। जैन साहित्य में जहाँ विवाह में निरपराध शिशुओं की गर्भ में संस्कारों की चर्चा की गयी है वहीं समाप्त किया जा रहा है। यह मानव सभ्यता का सबसे अधिक त्रासदी ही हिंसा हो रही है। १९७१ के गर्भाधान संस्कार को भी महत्त्व दिया | भरा पहलू है। इससे समाज का समीकरण भी बिगड़ रहा है, जिसका | पहिले तक भारत में गर्भपात गया है। तीर्थंकर की माता का यही | फल आज नहीं तो कल हम सबको भुगतना पड़ेगा। कानूनन अपराध था पर बदलती सौभाग्य उसे सर्वश्रेष्ठ नारी होने की हुई परिस्थितियाँ, जनसंख्या गरिमापूर्ण स्थिति प्रदान करता है। वृद्धि, स्त्रियों पर बढ़ते अत्याचार जाज भी हम पंचकल्याणक समारोह में समस्त रूप से और गर्भस्थ शिशु शारीरिक रूप से खण्ड- एवं शोषण ने इसे कानूनी मान्यता प्रदान कर दी क्रियायें देखते हैं। हमारे परिवारों में भी कहीं पर खण्ड हो जाते हैं। पाप-पुण्य की जो परिभाषा हमें | और हम सब इसका इतना दुरुपयोग कर रहे हैं कि सातवें और कहीं पर नौवें महीने में अपने-अपने संस्कारों से मिली है वह भी धरी की धरी रह जाती | अहिंसा के पुजारी बनते-बनते हिंसा के पुजारी बन रीति-रिवाजों के अनुसार गर्भवती नारी और उसके | गये हैं। गर्भ की मंगल कामना की जाती है। आज का युग विज्ञान का युग है। विज्ञान ने आधुनिकता की लहर और भोगवादी 'जियो और जीने दो' तथा 'दूधों नहाओ उन्नति कर हर असंभव कार्य को संभव बना दिया | संस्कृति एवं प्रवृत्ति का विकास जिस तेजी से हो पतों फलों' जैसी भावना रखने वाले हमारे देश है पर मानवीय सवेदनाये विज्ञान की पहुच से बाहर | रहा है उसका असर समाज. परिवार तथा व्यक्ति हमारे समाज में गर्भपात जैसी घटनायें सचमुच हैं तभी तो चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन करने वाला | पर भी पड़ रहा है। आज संयुक्त परिवार बिखर रहे २१वीं सदी में प्रवेश करते मानव की शून्य होती विद्यार्थी जो यह शपथ लेता है कि वह प्रत्येक के | हैं और घर की मर्यादाओं की परिभाषा ही बदल संवेदनाओं को ही व्यक्त कर रही हैं। वैसे तो विश्व जीवन की रक्षा करेगा' वही जब गर्भपात के मामले गयी है। सीमित परिवार और कम संतान आधुनिक का कोई भी धर्म भ्रूण हत्या का समर्थन नहीं करता में रक्षककी जगह भक्षक बन जाता है तब क्या | सोच का ही नजरिया है। महिलायें जागरूक हो पर,जैन धर्म तो प्राणी मात्र के जीवन की बात करता कहा जाये। गयी हैं। पर गर्भपात तो हमारे संस्कार और मर्यादा है। निरपराध भ्रूण को निर्दयतापूर्वक खत्म कराना देश के वर्तमान कानून और उनको तर्क की | के अनुकूल नहीं है। आज शिक्षित नारी जब प्रत्येक आज सभ्य समाज का सबसे बड़ा कलंक है और कसौटी पर सही ठहराने वाले अनेक बिंदु मिल | क्षेत्र में अपने अधिकारों के प्रति सजग है अपनी यह अपराध इतना बड़ा है कि शायद ही किसी जायेंगे। आज की बदलती हई परिस्थितियों में रुचि, अपना निर्णय, अपना कैरियर, अपनी पसंद प्रायश्चित से इसका प्रमार्जन किया जा सके। अनेक बार स्थिति ऐसी बन जाती है कि गर्भपात | से अपने घर की सजावट, स्वयं के कपड़े आदि वर्तमान में संसार का प्रत्येक प्राणी किसी कराना आवश्यक हो जाता है, जैसे माँ के स्वास्थ्य का निर्णय करने की क्षमता रखती है तो बच्चा कब न किसी दुःख से दुःखी है लेकिन गर्भपात रूपी को गंभीर खतरा, बलात्कार की शिकार युवती या कितने हों यह भी विवेक रखे ताकि गर्भपात जैसी विषम स्थिति उपस्थित ही न हो और महिलाओं दुःख तो हमारा अपना बनाया हुआ है। हमारा अपना | अन्य गंभीर कारणालेकिन इन सब कारणों की ही खून, जो हमारे अपने ही प्यार का फूल है, हम संख्या नगण्य है। स्वेच्छा से कराये जाने वाले का अपना शरीर विभिन्न दवाओं,और साधनों की गर्भपात के आंकड़े स्थिति की जैसी भयानकता सब स्वयं ही मिलकर उसे मसल देते हैं। कोख में प्रयोगशाला बनने से बच जाये। पल रहे शिशु को मारना सचमुच ही संसार का प्रदर्शित करते हैं उससे तो लगता है कि आज पिछले कुछ वर्षों में जैनों ने गर्भपात से सबसे जघन्य और अमानवीय कार्य है। यह एक गया है, जिसमें डाक्टर भी अपनी भूमिका निभा | गर्भपात विषयक समस्त जानकारी निहित है। यह 16 अप्रैल 2001 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524251
Book TitleJinabhashita 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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