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________________ the Vikram Vol. Xvtii No. 2 & 4, 1944 सामाजिक और आर्थिक सन्दर्भ में महावीर का दर्शन डॉ. गोकुलचन्द्र जैन हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी तीर्थकर महावीर के जीवन और दर्शन का अध्ययन अब तक धार्मिक और दार्शनिक सन्दर्भो में होता रहा है। सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से उसके अध्ययन और मूल्यांकन के प्रयत्न नहीं हुए। पहला प्रश्न यही उठता है कि क्या महावीर के जीवन और दर्शन का अध्ययन सामाजिक और आर्थिक सन्दर्भो में किया जा सकता है ? क्योंकि महावीर ने ३० वर्ष तक परिवार में रह कर भी परिवार का संचालन नहीं किया और उसके बाद सन्यस्त होने के कारण स्वतः ही समाज से कट गए। उन्होंने जो उपदेश दिए वे भी निवृत्ति मूलक और मोक्ष प्राप्ति के लिए थे। जबकि सामाजिक और आर्थिक जीवन की आधारशिला प्रवृत्ति है और 'समं यजन्ते' के सिद्धान्त के कारण सामाजिक व्यक्ति समाज से कट कर रह नहीं सकता। पिछले वर्षों में महावीर के जीवन और दर्शन का मैंने जो अध्ययन किया है, उसके प्राधार पर मेरी यह दृढ़ मान्यता है कि कोई भी दर्शन यदि समाज के जीवन से सम्पृक्त नहीं होता तो वह जी नहीं सकता। समय के अन्तराल में वह स्वयम् विलीन हो जाता है। पच्चीस सौ वर्षों के बाद भी महावीर की जो जीवन्त परम्परा विद्यमान है, वह इस बात का स्पष्ट प्रतीक है कि महावीर का दर्शन समान का दर्शन है और उसमें इतना लचीलापन है कि युग के सन्दर्भ में उसकी पुनर्व्याख्या की जा सकती है। प्रस्तुत निबन्ध में हम ऐसे कुछ मुद्दों पर विचार करेंगे। ईसा पूर्व छठी शताब्दी में जब महावीर जन्मे उस समय तक समाज संरचना के लिए चातुर्वर्ण्य व्यवस्था का कठोरता के साथ पालन होने लगा था। प्रारम्भ में इस व्यवस्था की अवधारणा जो भी रही हो, पर इस व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष यह था कि इसने मानव-मानव के बीच में एक गहरी खाई खोद दी थी। वर्ण के आधार पर समाज विभिन्न वर्गों में बट गया था और उसका प्रत्यक्ष प्रभाव व्यक्ति के मौलिक अधिकारों पर पड़ा था। हर वर्ग के मौलिक अधिकार अलग-अलग मान लिए गए थे। शूद्र या अन्त्यज एक ऐसा भी वर्ग था जिसके मौलिक अधिकार कछ न थे। महावीर का जन्म वैशाली गणतन्त्र में हुआ था । गणतन्त्र में सदस्य राजाओं के स्वत्व को अहम् मान्यता प्राप्त थी। महावीर को सामाजिक जीवन के सन्दर्भ में भी यह आवश्यक प्रतीत हुआ। उन्हें लगा कि समाज में हर व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त होना चाहिए। तब उन्होंने पहला आघात जन्मना वर्ण-व्यवस्था पर किया। उत्तराध्यवन सूत्र की गाथा है कम्मुणा बम्मणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिो। वइस्सो कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥ (२५॥३१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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