________________
निश्चय नय
व्यवहारे नय
निश्चयामास व्यवहाराभास
जो व्यवहार निरपेक्ष निश्चय और निश्चय निरपेक्ष व्यवहार को मोक्षमार्ग जानते ऐसे जीव क्रमशः निश्चयाभासी व व्यवहारभासी हैं ।
-
निरा करोति यो द्रव्यं, व्यवहारश्च सर्वथा । तदाभासोऽभिमन्तव्यः प्रतीतेरपलापकः ||
Jain Education International
जो आत्म प्रतीति रहित अज्ञानी जीव आत्मस्वरूप का विचार न कर केवल बाह्य क्रियाकाण्ड को धर्म मानते हैं वे व्यवहाराभासी हैं । इसी तरह जो बाह्य व्रतादि साधन के बिना शिथिलाचारी बने रह कर आत्मपरिणति को शुद्ध मानने का स्वप्न देखते हैं ऐसे मिथ्यात्वी जीव निश्चयाभासी हैं । तात्पर्य यह कि ज्ञानशून्य क्रिया और क्रिया शून्य ज्ञान दोनों मिथ्यात्व के अंग हैं ।
७५
इसी प्रकार कुलाचार को धर्म मानने वाले, सांसारिक प्रयोजनों को ( ख्याति, लाभ इंद्रिय सुख और पूजा प्रतिष्ठा की इच्छा ) दृष्टि में रखकर धर्माचरण करने वाले जीव आत्मप्रतीति के बिना मोक्षमार्ग से भ्रष्ट रहते हैं ।
इस प्रकार जीव की कर्मनो कर्म भावकर्म सहित अशुद्ध संसार पर्याय एवम् उक्त त्रिविध कर्म मल वर्जित शुद्ध सिद्ध पर्याय का निश्चय तथा व्यवहार नय एवम् इन नयों के अवान्तर भेदों द्वारा सापेक्ष भाव से निर्णय कर जो जीव मोक्षमार्ग में प्रारूढ़ होते हैं वे ही भवसन्तति का नाश कर अक्षय मोक्ष सुख का अनन्त काल तक अनुभव करते हैं ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org