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________________ महावीरस्वामी के पूर्व जैनधर्म जैन परम्परा एवम् पुरातत्व विज्ञान : मानव की उत्पत्ति लगभग पैंतीस लाख वर्ष पूर्व अफ्रिका में हुई थी, जबकि भारत मानव का आविर्भाव मध्य प्लायस्टोसिन काल अर्थात् दो लाख वर्ष पूर्व माना जाता है; इसकी पुष्टि भूगर्भशास्त्र और भारत की हैण्डेक्स और सोहन संस्कृतियों के पुरापाषाणयुगीन जरों से होती है । भारत में प्रारम्भिक मानवों के औजार नदीतटों पर मिले हैं, इससे मानव की उत्कर्षमय संस्कृति का क्रमिक विकास ज्ञात होता है । लगभग पच्चीस हजार वर्ष पूर्व मध्यपाषाणयुगीन मनुष्यों ने प्राखेट के साथ-साथ कंदमूल खाना भी सीख लिया था, परन्तु लघुपाषाणकाल तक मनुष्य शिकारी ही थे, यद्यपि लघुपाषाणयुगीन मानवों को मिट्टी के पात्र बनाना ज्ञात नहीं था । भगवान महावीर के तीन हजार वर्ष पूर्व तक भारतीय मानव को मिट्टी के बर्तन बनाना ज्ञात नहीं था । & पाकिस्तान में क्वेटा के निकट कीली गोलमोहम्मद में सम्पन्न पुरातात्विक उत्खनन से मिट्टी के पात्र रहित ग्राम्य संस्कृति का समय कार्बन - १४ की प्रविधि से ३६६० ८५ ई. पू. और ३५१० + ५१५ ई. पू. निश्चित हुआ है, जो कि भारतीय संस्कृति के क्रांतिकारीयुग के प्रथम सोपान की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । यहाँ पर इस समय पशुपालन और कृषि का अस्तित्व विदित होता है, परन्तु मिट्टी के पात्र बनाने की कला अज्ञात थी; इस काल को कीली गोलमोहम्मद का कालखण्ड प्रथम कहा जाता है । यहाँ के कालखण्ड - तृतीय ताँबे का प्रचलन हो चुका था, परन्तु इसके पूर्व प्राक् हड़प्पा ( Pre-Harappan) युगीन संस्कृति के केन्द्र कालीबंगा और कोट्डजी में ई. पू. ३००० वर्ष में व्यवस्थित निवास स्थल और मिट्टी के पात्र का अस्तित्व विदित हुआ है। हड़प्पा संस्कृति का विस्तार सिन्ध में मोहनजोदड़ो और चन्हुदाड़ो, पूर्वी पंजाब में रूपड़, उत्तर राजस्थान में कालीबंगा, गुजरात में रंगपुर, लोथल एवम् सोमनाथ तथा उत्तर प्रदेश में आलमगिरपुर तक विदित है । इस नगरसंस्कृति का समय ई. पू. २५०० से १८०० तक रहा, जिसके बाद राजस्थान, मालवा, दक्खन श्रादि की ताम्राश्मयुगीन संस्कृति, गंगा-यमुना की घाटी में पल्लवित चित्रित सिलेटी पात्रों की संस्कृति, उत्तर पश्चिमी भारत की नवपाषाणयुगीन संस्कृति आदि पर विभिन्न पुरातात्विक उत्खननों और सर्वेक्षणों से प्रकाश गिरा है । भगवान महावीर के पूर्व की इन संस्कृतियों की प्राप्त साधन सामग्री से जैन परम्परा के तुलनात्मक अध्ययन की दिशा में नगण्य शोधकार्य ही हुआ है, इस दिशा में शोधकार्य सम्पादन से जैन इतिहास में नवीन प्रायाम प्रतिष्ठित हो सकेगें । Jain Education International प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के जन्म और राज्य शासन केन्द्र अयोध्या और इक्ष्वाकु भूमि, प्रथम पारणास्थल हस्तिनापुर तथा उपदेश क्षेत्र गंगायमुना के मैदानी प्रदेश की विभिन्न बस्तियों की प्राचीनता ई. पू. १८०० वर्ष से पहले की ज्ञात नहीं होती ; यद्यपि यह तिथि भी आकर - मृद्भाण्डों की है, जबकि प्रार्यों से सम्बद्ध किये जाने वाले चित्रित सिलेटी पात्रों की संस्कृति का समय तो ईसा पूर्व की ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दियाँ ही हैं । बारहवें तीर्थंकर वासपूज्य को छोड़कर शेष द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ से लेकर इक्कीसवें तीर्थंकर नेमिनाथ तक का निर्वाण स्थल सम्मेदशिखर ही रहा है, जो कि तेइसवें तीर्थंकर पार्श्व नाथ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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