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________________ नारी जीवन के महावीरकालीन सन्दर्भो का पर्यावलोकन एवम् समीक्षण १२६ ग. यह भी सम्भव है कि महावीर के समकालीन धर्मों में नारी को लेकर प्रवेश पर कठोरताएँ रही हों, फलस्वरूप जैन साधु-संघों में नारी की संख्या अधिक रही हो। यह भी सम्भव है कि व्यक्तिवादी चेतना के प्रभाव ने साध्वियों की संख्या में वृद्धि की हो; जो हो इससे यह निष्कर्ष तो लिया ही जा सकता है कि व्यक्ति के विकास की जितनी यहाँ सम्भावनाएँ हैं उतनी अन्यत्र नहीं हैं। इस तरह यह आवश्यक है कि आंकड़ों के इस वैषम्य का सावधान मूल्यांकन और समीक्षण किया जाए। ४. महावीर को इस प्रतिपत्तित ने कि 'सबका निजी व्यक्तित्व है और निजी सत्ताएँ तथा स्वतन्त्रताएँ हैं । न कोई किसी की सत्ता को छीन सकता है, न बदल सकता है, न उसका अतिक्रमण कर सकता है । सब अपने स्वरूप में संचरित हैं नारी के लिए एक नव-सामाजिकता और नव-धार्मिकता को विकसित किया। इन परिवर्तनों के बीच भारतीय नारी की व्यक्तित्व रचना भिन्न स्तर पर हुई। स्त्री जीवन के मूल्यों में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए । ५ भारतीय समाज में विवाह-संस्था एक जटिल संस्था है। मानवीय सम्बन्धों के निर्धारण में इसका सर्वाधिक महत्व है । जैनों की इस सन्दर्भ में कोई पृथक् संहिता नहीं है। बहुधा उनकी इस संस्था पर स्थानीयताओं और सामयिकताओं की ही छाप रही है । प्रार्यकालीन समाज रचना में विवाहों के ८ प्रकार माने गए हैं; किन्तु जैनों ने इनमें से ब्राह्म, देव, आर्ष और प्राजापत्य विवाहों को ही स्वीकार किया है। शेष आसुर गांधर्व, राक्षस, और पशाच अमान्य किए हैं । स्वीकृति-अस्वीकृति की इन मुद्राओं में भी नारी-स्वातन्त्रय की धारणा को पहचाना जा सकता है। गांधर्व विवाह को छोड़कर शेष यानी प्रासुर, राक्षस और पैशाच विवाहों में दहेज देने का प्रचलन है। जैनों ने जिन प्रकारों को मान्य किया उनमें 'दहेज' महत्वहीन है किन्तु स्थानिकताओं के प्रभाव के कारण जैनों में दहेज का प्रात्यन्तिक प्रचलन हो गया है। इन नयी परिस्थितियों के कारण भी जैन नारी को नयी सामाजिकता और धार्मिकता को विकसित करने की प्रेरणा मिली है। ६. जैन विवाह-संस्था ने दो तत्वों को विशेष रूप में विकसित किया है; ये हैं-धार्मिक सहिष्णुता और धर्म-निरपेक्षता। आज भी ऐसे जैन-जनेतर परिवार हैं, जिनमें एकाधिक धर्मों का परिपालन होता है। महावीरकालीन भारतीय परिवारों में तो इस तरह की सामाजिकता अति सामान्य थी। माना इससे कई समस्याएँ उत्पन्न हुई, किन्तु इस विविधता के कुछ लाभ भी थे। पारिवारिकता के इस परिवर्तित सोपान पर नारी का दृष्टिकोण उदार हुप्रा और उसे अपनी स्वतन्त्रा को अभिव्यक्ति देने के मौके मिले । धार्मिक सहिष्णुता और निरपेक्षता की धारणामों ने भी नारी-व्यक्तित्व के उन्नयन में अपनी भूमिकाएं निभायीं। ७. पांच महावतों में अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य महत्व के व्रत हैं। जब इन्हें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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