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________________ ११४ विक्रम भूख क्यों लगती है ? शरीर में सबसे महत्वपूर्ण यन्त्र यकृत (लीवर) है। जो भी भोजन किया जाता है यकृत के द्वारा उससे दो कार्य निष्पन्न होते हैं- एलबुमिन का निर्माण तथा शक्ति के रूप में संवर्धन एवम् आम्लतत्व (एसिड) का निर्माण तथा क्षरण। एलबुमिन शरीर के समस्त अवयवों को पुष्ट रखता है तथा प्राम्लतत्व भोजन की पाचन क्रिया करता है। कहना चाहिए, आम्लतत्व के द्वारा पचित भोजन एलबुमिन के रूप में परिणत होता है । दोनों की अनिवार्यता में जब कभी विसंगति हो जाती है, उसी समय अवयव शिथिल हो जाते हैं एवम् किसी रोग की सूचना दे देते हैं। प्राम्लतत्व ही भूख का निमित्त बनता है। शारीरिक अधिक सक्रियता आम्लतत्व के क्षरण में अधिकता कर देती है। शिशुओं में अधिक चंचलता होती है, अतः उन्हें भूख भी शीघ्र लगती है। शारीरिक श्रम करने वाले मजदूरों की खुराक भी इसीलिए अन्य व्यक्तियों के अनुपात में अधिक देखी जाती है। कारण यही है कि शरीर की अधिक सक्रियता से लीवर में से एसिड का अधिक क्षरण होता है और वह सीधा पाकाशय पर टपकता है। जो भी भोजन किया हुआ होगा, उसका शीघ्र ही पाचन हो जायगा। नाभि के चारों ओर वर्तुलाकार बड़ी प्रांतें भी उस समय अधिक सक्रिय हो जाती हैं। उनका स्पन्दन भी बढ़ जाता है। एसिड का लीवर से गिरना तथा बड़ी आँतों की स्पन्दन-क्रिया भूख की निमित्त बनती है। बड़ी प्रांतों का स्पन्दन किए हुए आहार को आगे ठकेलता है और पाकाशय में स्थान रिक्त करता है। तपोनुष्ठान में वही व्यक्ति सफल हो सकता है, जो एसिड को नियंत्रित रख सके तथा प्रांतों के स्पन्दन को ऐच्छिक समय तक रोक सके । जो व्यक्ति अधिक बौद्धिक श्रम करते हैं, पाकाशय में उनके एसिड गिरने की गति या तो मन्द हो जाती है या बहुत अधिक । जिनके एसिड की गति मन्द होती है उनकी भूख क्रमशः कम होती चली जाती है वे बहुधा वायु-विकार के शिकार देखे जाते हैं जिनके एसिड अधिक गिरता है, वे अलसर की बीमारी से पीड़ित रहते हैं, जो व्यक्ति मादक द्रव्यों का असीमित सेवन करते हैं, उनके भी एसिड गिरने की गति तीव्र हो जाती है। मादक द्रव्यों में भी एसिड की मात्रा प्रचुरता में होती है। वे व्यक्ति भी अलसर के रोगी देखे जाते हैं। प्रयोजन यह है कि एसिड की गति में तरतमता शारीरिक दृष्टि से हानिकारक होने के साथ-साथ भूख की उपशान्ति में भी बाधक हो जाती है। उस स्थिति में तपोनुष्ठान नहीं हो सकता। जो व्यक्ति चिन्तन व चिन्ता से सर्वथा दूर रहते हैं और शारीरिक श्रम भी अधिक नहीं करते, उनका शरीर बहुधा उपचित देखा जाता है। उनकी भूख भी अधिक होती है और वे जो कुछ खाते हैं, उचित रूप में परिणत कर लेते हैं। उनके शरीर में एसिड का निर्माण तथा क्षरण पर्याप्त मात्रा में ही होता है। क्या उदर टिफन हो सकता है ? __इस सम्बन्ध में एक तथ्य यह भी पर्यालोच्य है कि किए हुए भोजन को लीवर के एसिड और आंतों के स्पन्दन से भी बचाया जा सकता है या नहीं ? यदि उसे उक्त दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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