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जैनाहितैषी।
[भाग १५ भंग हुआ कि नहीं, इसका विद्वान् लोग (२) डीग रियासत भरतपुरकी मिथ्याकृपा करके खुलासा करें।
भ्रमनाशिनी सभा द्वारा, उसकी खास प्रामका कृपाकांक्षी- मीटिङमें और २०० मनुष्योंकी उप. शंकर पंढरिनाथ रणदिवे। . स्थितिमें, ता० १५ (जुलाई) को पास
हुधा प्रस्ताव ।
"खण्डेलवाल जैनहितेच्छुमें इसके विविध विषय । सम्पादक पं० पन्नालाल सोनी जातिके
सुधारक, प्रचारक, विद्वान्, त्यागी, ब्रह्म१- खण्डेलवाल जैनहितेच्छुका
चारियों के निन्दापूर्ण द्वेष भरे लेख हर एक विरोध ।
अंकमें प्रकट करते रहते हैं। अतः यह सभा 'स्खण्डेलवाल जैनहितेच्छु' नामका
इस पत्रकी नीति पर खेद प्रकट करती है
नाम और जैनसमाजसे प्रार्थना करती है कि एक पाक्षिक पत्र छः सात महीन हुए, ऐसे पत्रों से सावधान रहे।" दि. जैन खण्डेलवाल महासभाकी तरफसे निकलना प्रारम्भ हुआ है। इसके किसी सभा. या सोसायटी द्वारा सम्पादक हैं पं० पन्नालालजी सोनी। प्रकाशित होनेवाला समाजका शायद यह पत्रकी रीति, नीति और सम्पादनशैली पहला ही पत्र है जिसका जनमते ही इस कुछ ऐसी विलक्षण है कि वह जनताको तरहसे विरोध हुआ हो। इसमें सन्देह बहुत ही कम पसन्द भाई है और इस. नहीं कि इस पत्रके अधिकांश लेख प्रायः लिए पहले अंकके निकलनेके बादसे ही द्वेषसे भरे हुए, शिष्टता और सभ्यतासे इस पत्रका विरोध शुरू हो गया है । जैन- गिरे हुए, कषायसे परिपूर्ण और उद्दण्डता, मित्र आदिकमें इसके विरुद्ध कितने ही छिछोरपन तथा हठधरमीको लिये हुए लेख निकल चुके हैं। खयं खण्डेलवाल होते हैं । एक महासभाके मुखपत्रको भाई भी इसका विरोध कर रहे हैं। कई ऐसी दुर्दशा देखकर चित्तको बड़ा ही सभामोंने इसके विरुद्ध प्रस्ताव भी पास दुःख होता है । सम्पादक महाशयको किये हैं। निम्नलिखित दो प्रस्ताव हम चाहिए कि वे अपने कर्तव्य और उत्तरयहाँ जैनमित्र अंक ३६ (ता. २८ जुलाई दायित्वको समझकर शीघ्र ही इस पत्रकी २१) से उद्धृत करते हैं
चाल ढालको सुधारें। उन्हें इस विषय(१) बंगाल आसाम प्रान्तीय खण्डेलवाल में अधिक गंभीर और विचारशील होने
सभा द्वारा आषाढ़ कृष्ण प्रमीको की ज़रूरत है, और उनका ख़ास कर्तव्य पास हुआ प्रस्ताव। . यह है कि वे इस पत्रको उसकी जन्मदात्री
"यह सभा श्री दि० जैन खण्डेलवाल खण्डेलवाल महासभाकी रीति-नीति महासभाके मुखपत्र 'खडेलवाल जैन- और उद्देश्यों के अनुसार चलावें और हितेछु' की वर्तमान सम्पादनशैलीके प्रति उसे व्यर्थ ही अपने दिली फफोलोके असन्तोष प्रकट करती है और मन्त्रीको फोड़ने या अपने हृदयके गुषारोको अधिकार देती है कि उक्त पत्रकी सम्पा- निकालनेका एक साधन म बनावें। एक दन शैलीको परिवर्तन करानेके लिए महा- महती संस्थाके पत्र सम्पादक होनेकी सभासे पत्र व्यवहार करे।"
हैसियतसे उनकी भाषा बहुत ही संयत
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