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________________ w २80 जैनहितैषी। 1 [भाग १५ चानने में बड़ा सुभीता होगा । परन्तु देखनेसे यह अनुमान करना कठिन न परम्परासे पगड़ीकी जो इज्जत चली होगा कि कपड़ा स्वदेशी ही होगा । '.आई है और उसमें जो परमारागत “स्वराज्य टोपी" का लक्षण यह है कि । जातीय अभिमान है उसकी रक्षा अवश्य उसका वर्ण शुभ्र है और आकार नौकाके होनी चाहिए। इसलिए जो अपने सिरपर समान-मानों पराधीनताके पार ले पगड़ी देते हैं वे पगड़ी ही दें; पर वह जानेवाली यह नौका ही है । खद्दरको पगड़ी शुद्ध हो, शुद्ध स्वदेशी खद्दर की काला रङ्ग देकर उसे खंजड़ीनुमा बना हो, माताके रक्तमें भीगी हुई न हो। यदि लेना इसी लिए हम उतना अच्छा नहीं खद्दरकी पगड़ी न मिले तो ऐसो पगड़ोको समझते। आग लगा दीजिये जो श्रापके दो करोड़ तात्पर्य,तीन श्रेणियों में से किसी श्रेणीभाइयोंको भूखों मारकर श्राब भी आपके का स्वदेशी वस्त्र प्राप परिधान करें, सिरपर सवार है। महत्कार्य के लिए सिरपर आपके खदरकी ही पगड़ी या लोग पगड़ी उतार देते हैं, मानों भीष्म- टोपी होनी चाहिए। जो लोग टोपीसे प्रतिज्ञा करते हैं; और जब तक वह कार्य अपना काम चला लेते हैं उन्हें "स्वराज्य पूरा नहीं होता तब तक सिरपर पगड़ी टोपी" ही सिरपर चाहिए। नहीं देते। आज भारतके लिए स्वदेशीले (भारतमित्र ।) बढ़कर महत्कार्य और क्या होगा ? इसलिए जबतक खहरको पगड़ी न बन जाय, तबतक नहरकी पगड़ीके लिए अपनी त्रुवल्लुव नायनार त्रुकुरल । 'विदेशी पगड़ी उतार दीजिये। थोड़ा कहा ( अनुवादक, स्वर्गीय बाबू दयावन्दजी गोयलीय।) बहुत समझिये, और धर्मकी इस बाझाकी अन्तरात्माके इस वचनकी अवहेलना (अंक ६ भाग १४ से आगे ।) मत कीजिये। :-जो मनुष्य इस लोकमें विद्याजिनका काम टोपीसे चल जाता है, के भण्डारको प्राप्त कर लेता है वह सातों उन्हें यह स्मरण रखना होगा कि “स्व- लोकों में श्रानन्द भोग करता है । राज्य टोपी" ही सबको अपने सिर पर ३६४-यदि मनुष्य एक बार कुछ देनी चाहिए। यह "स्वराज्य टोपी" वही ज्ञान प्राप्त कर लेता है और उसके कारण हैं जिसका शावालेस श्रादि कम्पनियोने प्रतिष्ठा प्राप्त करके श्रानन्द भोग करता तथा मध्यप्रदेशके कुछ उद्दण्ड हाकिमोने है, तो फिर उसे और अधिक ज्ञान प्राप्त अपमान करने का साहस किया है । इस करनेकी उत्कराठा बढ़ जाती है। अपमानका उत्तर यही है कि सब लोग ४००-मनुष्यका वास्तविक धन वही टोपी दिया करें। इसके अतिरिक्त विद्या है जिसे कोई नष्ट नहीं कर सकता। इस टोपीसे इस बातकी पहचान होगी विद्याके सिवाय और कोई चीज धन नहीं कि कौन स्वदेशप्रेमी है और कौन स्वदेश. कही जा सकती। की उपेक्षा करनेवाला है। अब जो लोग देशी मिलोका कपड़ा पहनेंगे, उनका ४१-अज्ञानता। कपड़ादेशी या विदेशी है यह मालूम करना ४०१--जो मनुष्य बोलनेकी योग्यता कठिन होगा। परसिरपर "स्वराज्य टोपी" प्राप्त किये बिना विद्वानोंकी सभामें बोलना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522890
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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